कैसे आ गई है
डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफरीवो लड़की घर पे कैसे आ गई है
शिकन बिस्तर पे कैसे आ गई है
कभी जो प्यार ही बस चाहती थी
वो अब ज़ेवर पे कैसे आ गई है
ज़रा सी बात हो जाती है घर में
ये तू खंजर पे कैसे आ गई है
यहाँ हर बूँद इससे है परेशां
नदी पत्थर पे कैसे आ गई है
मोहब्बत मिट गई दुनिया से आख़िर
सियासत सर पे कैसे आ गई है
मुझे बदनाम करने पर तुली है
वो फिर छप्पर पे कैसे आ गई है
ग़ज़ल पनघट पे शरमाती थी कल तक
वो अब शावर पे कैसे आ गई है
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