रहते हैं 

01-05-2022

रहते हैं 

डॉ. जियाउर रहमान जाफरी (अंक: 204, मई प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

हमारे जितने हैं रिश्ते उदास रहते हैं 
मैं फूल हूँ मेरे पत्ते उदास रहते हैं 
 
हमारी नस्ल को ये कैसी बदगुमानी है 
ज़रा सी बात पे बेटे उदास रहते हैं 
 
वो सारी उनकी शिकायत हमीं से रहती है 
भला ये क्यों मेरे बच्चे उदास रहते हैं 
 
उसे पता ही नहीं है कि कौन अपना है 
यही है डर कि परिंदे उदास रहते हैं 
 
कभी तो आके मेरी उस गली को देखो भी 
जो तुम नहीं तो दरीचे उदास रहते हैं 
 
ये और कुछ न महज़ क़ातिलों की बस्ती है 
यहाँ पे प्यार के क़िस्से उदास रहते हैं 
 
वहाँ पे कैसे पढ़ें प्यार की ग़ज़ल कोई 
जहाँ पे लड़कियाँ-लड़के उदास रहते हैं

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