बच्चों की बाल सुलभ चेष्टाओं का ज़िक्र करती हुई किताब— मेरी सौ बाल कविताएँ

15-03-2022

बच्चों की बाल सुलभ चेष्टाओं का ज़िक्र करती हुई किताब— मेरी सौ बाल कविताएँ

डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफरी (अंक: 201, मार्च द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

समीक्षित पुस्तक: मेरी सौ बाल कविताएँ
कवि: डॉ. अभिषेक कुमार
प्रकाशन: जिज्ञासा प्रकाशन, गाजियाबाद
प्रकाशन वर्ष: 2021
मूल्य:199/-
पृष्ठ:126

बिहार की औद्योगिक राजधानी बेगूसराय की सर-ज़मीन पर जो लोग पाबंदी से साहित्य सृजन कर रहे हैं, उसमें एक नाम डॉ. अभिषेक कुमार का भी है। डॉ. अभिषेक कुमार का सम्बन्ध चिकित्सा के क्षेत्र से है, लेकिन उन्होंने हिंदी गद्य-पद्य की कई विधाओं में भी पाबंदी से लेखन किया है। उनका पीडोफिलिक नागार्जुन वाली किताब तो काफ़ी चर्चा में है। 

मेरी सौ बाल कविताएँ लेखक की सद्यः प्रकाशित कृति है, जिसे जिज्ञासा प्रकाशन गाजियाबाद ने पूरे मनोयोग से प्रकाशित किया है। इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह बाल कविताएँ किसी कल्पना लोक में जाकर नहीं लिखी गई हैं, बल्कि स्नेहिल पुत्र रुद्रांश के जन्म पर लिखी गई पहली कविता से शनैः-शनैः बढ़ रहे रुद्रांश की तमाम क्रियाकलापों, बाल सुलभ व्यवहारों भावों-अनुभवों का इसमें सांगोपांग वर्णन किया गया है। इसलिए इस कविता की भाषा भी सहजता, सरलता, बोधगम्यता और सादापन लिए हुए हैं, जो बाल कविता के लिए आवश्यक शर्तें भी है। बाल साहित्य के बारे में कहा गया है कि बाल साहित्य बच्चों को ध्यान में रखकर लिखा गया साहित्य है। ऐसे साहित्य में बच्चे खेल-खेल और मनोरंजन के साथ जीवन की सच्चाइयों से अवगत हो जाते हैं। साथ ही उनके भाषागत कौशल का विकास भी होता है। यह बाल कविताएँ और कहानियाँ बच्चों के जीवन पर अमिट छाप छोड़ती हैं इसलिए बचपन में पढ़ी गई उन्हें बहुत सारी कविताएँ याद होती हैं। चंदा मामा से लेकर ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार, मछली जल की रानी है—जैसी कविताएँ इसके उदाहरण हैं। बाल साहित्य लिखना सहज काम नहीं है क्योंकि इसमें बच्चों की उम्र, उनकी फ़िक्र और उनके क्रियाकलाप का ध्यान रखना होता है। इस तरह की कविता में एक ऐसे मैसेज की ज़रूरत होती है जो बच्चों को सच्चा ज्ञान प्रदान कर सके। डॉ. अभिषेक कुमार की बाल कविताएँ इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हैं कि इसमें तुकांत और अतुकांत दोनों बाल कविताएँ शामिल हैं। यद्यपि बच्चों के लिए छंद विहीन बाल कविताएँ कम लिखी गई हैं। डॉ. कुमार की वह कविताएँ जो छंद से प्रेय हैं उसमें भी संगीतात्मकता, प्रवाह और भाषायी लालित्य का पूरा ख़्याल रखा गया है। संकलन में उनकी बाल कविताएँ तितली से शुरू होती हैं और नई शुरूआत पर ख़त्म होती है। ज़ाहिर है वह बच्चों को ख़ूबसूरती के रास्ते से ले जाकर एक नए जीवन की तालीम देते हैं। बच्चों के लिए सबसे ज़्यादा कविताएँ तितली, कोयल, मछली और फल-फूल पर लिखी गई हैं। कवि ने भी यही किया है:

मुझको बेहद अच्छी लगती
रंग बिरंगी तितली रानी

उनकी बंदर मामा कविता में बंदर के केले खाने से लेकर बच्चों के डर जाने तक का स्वाभाविक वर्णन है। यह कविताएँ पुत्र के बाल सुलभ क्रियाकलापों पर लिखी गई हैं। इसलिए इसमें बुआ के आने से दादा-दादी, चाचा-चाची के आने तक का वर्णन किया गया है, इसमें दिखाया गया है कि दादा-दादी के आने से बच्चे कैसे खिल जाते हैं। आज हम जिस एकल परिवार में रहते हैं, वहाँ बच्चे दादा-दादी को जान भी नहीं पाते। ऐसी स्थिति में कवि की इस कविता का मूल्य बढ़ जाता है:

मैं हूँ दादा जी का
राज दुलारा
कहते मुझको
अपनी आँखों का तारा॥

आज के बच्चों का परिवेश अलग है। कभी गुड्डे-गुड़ियों से खेलने वाले बच्चे अब टैडी बियर से खेल रहे हैं। खाने के लिए अब उनके पास पिज़्ज़ा और बर्गर है। हाथ में मोबाइल की दुनिया है इसलिए उनके पास अनगिनत सवाल भी हैं। ये ऐसे सवाल हैं जो उसकी उम्र से काफ़ी बड़े हैं। बच्चा कहता है:

मैं हँसता हूँ तो मेरा टैडी बियर भी हँसता है
मैं रोता हूँ तो मेरा टैडी बियर भी रोता है

ऐसा नहीं है कि संस्कृति पूरी तरह बदल गई है आज भी भालू वाला आता है, और उसका नाच देख कर सब मोहित हो जाते हैं तभी तो कवि कहता है:

एक मदारी गाँव में आया
संग अपने एक भालू लाया (पृष्ठ61) 

आज भी मेले की रौनक़ बची हुई है, जिसे देखकर कवि कहता है:

सज गया ठेला
लग गया मेला (पृष्ठ88) 

बच्चों की शिकायत बहुत प्यारी होती है उसका रूठना और मनाना एक अलग ही आनंद देता है। सूर के वात्सल्य वर्णन में यशोदा बालकृष्ण के रूठे हुए चेहरे देखकर मोहित हो जाती हैं। इस किताब में भी बच्चों के रूठने मनाने का वर्णन है:

एक तो दादाजी लेट से आए
दूसरा बिस्किट चॉकलेट कुछ नहीं लाए

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि डॉ. अभिषेक कुमार की लिखी गई ’मेरी सौ बाल कविताएँ’ बाल साहित्य की दुनिया में सराही और स्वीकारी जाएँगी, क्योंकि बच्चों की ज़रूरतों उसकी प्रवृत्तियों, बाल सुलभ चेष्टाओं, उनके क्रियाकलापों, अनुभवों, विचारों और व्यवहारों का बड़े ही मनोवैज्ञानिक ढंग से सजीव चित्रण किया गया है। 

डॉ. जियाउर रहमान जाफरी
स्नातकोत्तर हिंदी विभाग
 मिर्ज़ा ग़ालिब कॉलेज गया, बिहार803107
9934847941

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