मुनव्वर राना को याद करते हुए

01-02-2024

मुनव्वर राना को याद करते हुए

डॉ. जियाउर रहमान जाफरी (अंक: 246, फरवरी प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

14 जनवरी की देर रात उर्दू के मशहूर शायर मुनव्वर राना का निधन दिल का दौरा पड़ने से हो गया। 26 नवंबर 1952 को बरेली में पैदा हुए राना की उम्र 71 साल की थी। वह पिछले कुछ दिनों से लखनऊ के एक निजी अस्पताल में भर्ती थे। उनके परिवार में उनकी पत्नी चार बेटियाँ और एक बेटा है। 

मुनव्वर राना पूरी दुनिया में माँ पर शायरी के लिए जाने जाते हैं:

“किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई”

यह उनका वह शेर है जिससे राना पूरी दुनिया में रातों-रात मशहूर हो गए। उनके कई शेर लोगों की ज़ुबाँ पर ज़िन्दा हैं। हर तरह की महफ़िल में उनके लिखे हुए शेर मिल जाते हैं। उनके बहुत सारे अशआर ऐसे हैं जिसमें मृत्यु का वर्णन अमरता के साथ दिखलाई देता है, पर ऐसे समय में भी माँ उनकी ताक़त हिम्मत और भरोसा बनकर सामने आती है:

“अभी ज़िन्दा है मेरी माँ मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है”

शाहदाबा के लिए 2014 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। ‘ग़ज़ल गाँव’, ‘पीपल छाँव’, ‘बदन सराय’ आदि उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। वह ग़ालिब अवार्ड से भी 2005 में नवाज़े गए थे। मुनव्वर राना का विवादों से भी बड़ा गहरा रिश्ता रहा। कभी वह साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटाने को लेकर चर्चा में रहे तो कभी संसद भवन को गिराकर खेत बना देने की बात लोगों को नागवार लगी। उनकी जिन्ना और पलायनवाद की बात को भी कुछ ज़्यादा तूल दिया गया। 

बहर-कैफ़ इसमें कोई दो राय नहीं कि वह ग़ज़ल के मायनाज़ शायर थे। उनकी शायरी एक बड़े ख़ित्ते को पसंद आती थी। कोई भी कामयाब मुशायरा उनके बिना नहीं होता था। उनकी निज़ामत भी आला पैमाने की थी। लगातार बीमार रहने के बावजूद भी उनकी शायरी से निस्बत बनी रही। उर्दू हिंदी को पूरी दुनिया में पहचान उनकी शायरी से मिली। उन्होंने ग़ज़ल को एक पहचान दी ग़ज़ल को महबूबा की गली से निकाल कर माँ के क़दमों तक पहुँचाया। उन्होंने मज़दूरों के हक़ की बात की। सियासत के दोहरे चरित्र पर प्रश्न उठाए। उनकी संजीदा शायरी सुनने के लिए लोगों का एक हुजूम बना होता था। यह भी अजब इत्तिफ़ाक़ है कि जब उनकी मृत्यु हुई तो उन्होंने अपनी आख़िरी साँस अदब की नगरी लखनऊ में ली। मुनव्वर राना अपनी ज़िन्दगी में भी क़ब्र, दर्द और मिट्टी से प्यार के रिश्ते लिखते रहे। उन्होंने कहा:

“मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
अब इससे ज़्यादा मैं तेरा हो नहीं सकता”
 . . . . . . . . . . . . 
“जिस्म पर मिट्टी मिलेंगे पाक हो जाएँगे हम
 ए ज़मीं इक दिन तेरी ख़ुराक हो जाएँगे हम”

जब कभी माँ, मोहब्बत और मयार की बात होगी मुनव्वर राना का नाम इज़्ज़त के साथ लिया जाएगा। 

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