पंद्रह सिंधी कहानियाँ (रचनाकार - देवी नागरानी)
उलझे धागे
लेखक: नसीम खरल
अनुवाद: देवी नागरानी
नसीम खरल
जन्म: 29 जून 1939 खरलाबाद, खैरपुर ज़िले में हुआ। मृत्यु 14 जुलाई 1978 को हुई। उन्होंने बी.ए. करने के बाद क़ानून की परीक्षा दी, किन्तु इस पेशे को न अपनाकर अपने पिता के ज़मींदारी पेशे को चुना। वे सिंधी के बेहतरीन कथाकार थे। उनकी दमक आज भी साहित्य-संसार में है। उनकी यादगार कृतियाँ हैं: पहली मुराद, काफ़िर, चौंतीसवाँ दरवाज़ा। उनकी अन्य प्रकाशित कृतियाँ हैं: शबनम-शबनम, कँवल-कँवल (1966), आँखें आईने (1968) और डमी।
पैराडाइज़ सिनेमा को लाँघकर जब वह ‘चार्ली हेयर कटिंग सैलून’ के सामने से गुज़रा तो उसका हाथ बेअख़्तियार अपने माथे से होता हुआ गर्दन की तरफ़ बढ़ा। उसके बाल बड़े हो गए थे। कटवाने के ख़्याल से वह दुकान में दाख़िल हुआ। बाक़ी थोड़ी कुर्सियाँ ख़ाली पड़ी थीं। कारीगर अपने काम में व्यस्त थे। कभी-कभार बीच में कैंची की ‘टड़क-टड़क’ बंद करके आपस में संभाषण कर रहे थे। वह एक कुर्सी पर बैठ गया। एक कारीगर साफ़-सुथरा कपड़ा लेकर उसकी ओर बढ़ आया।
“मैं नंबर आठ से बाल बनवाता हूँ,” उसने आए हुए कारीगर को मायूस किया। वैसे भी नंबर आठ से उसकी एक तरह से जोड़ी बन गई थी। वह हमेशा साफ़-सुथरा रहता था। सबसे बड़ी बात तो बाल बनाने के साथ-साथ वह क़िस्से भी सुनाता जाता। ये आदतें उसे पसंद थीं।
“वह ख़ाली नहीं है। ऊपर एक लेडी के बाल ‘कर्ल’ कर रहा है,” कारीगर ने कुछ झुकते हुए कहा।
“मैं उसका इंतज़ार करूँगा,” उसने आए हुए कारीगर को निराश कर दिया। वह अपना-सा मुँह लेकर चला गया। उसके दिल में ख़ुशी का अहसास जाग उठा कि उसका कारीगर होशियार है और अपने चुनाव पर भी गर्व महसूस किया। उसके हुनर के कारण एक लेडी के बाल कर्ल करने के लिए उसकी सेवाएँ ली जा रही हैं। इसके सिवा उसके मन में गुदगुदी-सी होने लगी कि वह कारगीर एक हसीना के ख़ूबसूरत ज़ुल्फ़ों को हाथ लगाकर फिर उसके काम को लग जाएगा।
वह सोचने लगा कि वह नंबर आठ से उस हसीना के बारे में कुछ सवाल भी करेगा। जैसे कि वह कहाँ की रहने वाली है? हमेशा इस दुकान से बाल ‘कर्ल’ कराती है या औरों से भी? टिप कितना दिया और इस प्रकार दो चार और भी सवाल। समय व्यतीत करने के लिए उसने पत्रिका उठा ली और तस्वीेरें देखने लगा। वह पूरी करते ही उसने दूसरी उठा ली। उसी समय सीढ़ियों से उतरने की आवाज़ आई। वह खटखट की आवाज़ से जान गया कि हसीना ने बड़ी ऐड़ी वाली सैंडल पहन रखी है। गर्दन मोड़कर देखना उसे मुनासिब न लगा। शीशे में से देखने लगा। पहले काला सेंडल पहने छोटे-छोटे सुंदर पैर ज़ाहिर हुए। काले सैंडल में भूरे-भूरे सुंदर पैरों को देखकर उसके होंठ मुस्कराने लगे। पर उस ख़्वाहिश को नामुमकिन समझकर उसने अपने-आपको सँभाल लिया। अब आँखें चौड़ी करके देखने लगा। ख़ूबसूरत भरा हुआ जिस्म और फिर सुंदर चेहरा सामने आया।
पहले तो उसे संदेह-सा हुआ। पर फिर उसने पहचान लिया। वह ज़रीना थी। उसके दोस्त ख़ालिद की बहन। उसकी कमर तक लटकते लंबे बाल अब ‘कर्ल’ होकर उसके कंधों तक आ गए। वह बहुत ख़ुश नज़र आ रही थी। उसने भी पत्रिका को अपने चेहरे के सामने पकड़े रखा, जैसे वह उसे देख न पाए। जब वह उसकी कुर्सी के पास से गुज़र गई तो उसने फिर पत्रिका से मुँह निकालकर उसे जाते हुए देखा। उसकी चाल में आज एक नए क़िस्म की नज़ाकत थी।
आख़िर उसे अपने बाल ‘कर्ल’ कराने की कौन-सी ज़रूरत पड़ गई? उसके बाल तो पहले ही बहुत अच्छे थे। पाँच साल पहले की बात उसे याद हो आई।
वह शाम के वक़्त चाय पी रहा था। तब ख़ालिद उसके पास आया था।
“मेरा एक काम तो कर दो मसूद,” उसने अनुरोध किया।
“कौन सा?” उसने चाय की प्याली उसकी ओर सरकाते हुए कहा था।
“वही!” ख़ालिद ने उसे आँख मारी।
“हूँ . . . कौन है?”
“मिस रोज़ा,” ख़ालिद ख़ुशी से पागल हो रहा था। मिस . . . रोज़ी क्लब की हसीन, मोहक मेंबर थी। नौजवान उससे बात करने को तरसते थे। वह और ख़ालिद भी उन लोगों में से थे। उसे तो कभी लिफ़्ट नहीं मिली थी, पर ख़ालिद और रोज़ी के बारे में उसने दूसरे सदस्यों से बहुत सारी अफ़वाहें सुनी थीं। पर उसे ऐतबार नहीं आया था। रोज़ी के घुँघराले बालों को देखकर उसे ऐसा महसूस होता था जैसे वे ‘कर्ल’ ही इसलिए कराए गए, जैसे वे रोज़ बिगड़ते रहें और फिर कर्ल होते रहें।
“ऑल राइट,” उसने ठंडी साँस लेते हुए कहा था।
“थैंक्यू।”
नौ बजे के क़रीब वे आए। रोज़ी बहुत सुंदर लग रही थी . . . वह बड़े ही नाज़ुक अंदाज़ से अपने कर्ल किए हुए बालों को पीछे करती रही। उसे देखकर वह नीचे उतर गया . . . घंटे-भर के बाद वह लौट आया। ख़ालिद ड्राइंग रूम में सोफ़े पर बैठकर फल खा रहा था और रोज़ी ड्राइंग टेबल के आगे अपने बालों को ब्रश कर रही थी। उसके घुँघराले बाल ऐसे खुलकर बड़े हो गए थे जैसे किसी ने उलझे धागों का रेशा-रेशा सुलझाया हो। ख़ालिद ने उसे देखते ही एक अर्थपूर्ण मुस्कान के साथ कहा, “आओ बैठो। फल खाओ।”
वह बैठा और ख़ालिद के कान के पास जाकर धीमे से कहा, “और तो छोड़ो पर बिचारी के बाल भी ख़राब कर दिए। जब सौ रुपये के नोट से हाथ उठाएगी, तब ही फिर से ऐसे बनवा पाएगी।”
“हूँ . . .” खालिद ने ठहाका मारते हुए कहा। “तुम पागल हो। ये लड़कियाँ अपने बालों को इसलिए ‘कर्ल’ करवाती हैं।” . . .और आज ख़ुद उसकी बहन ने बाल कर्ल करवाए थे। उसके दिल में रह-रहकर एक अजीब क़िस्म का ख़्याल आ रहा था, पर दोस्त की बहन का ख़्याल आते ही गर्दन झटककर उस ख़्याल को झटक दिया।
नंबर आठ ने साफ़-सुथरा कपड़ा लेकर उसकी गर्दन के आगे रखा और धीमे से कहने लगा, “आज मेरे पास परी का एक बच्चा आया था, पर ‘फ़्लर्ट’ दिखाई दे रहा था।”
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