पंद्रह सिंधी कहानियाँ

पंद्रह सिंधी कहानियाँ  (रचनाकार - देवी नागरानी)

कलात्मक अनुवाद

 

अनुवाद करना एक ऐसी कला है, जो सबमें नहीं होती। देवी नागरानी में यह गुण कूट-कूट कर भरा है और सिंधीभाषा के प्रति उनका समर्पण सराहनीय है।

पंद्रह सिंधी कहानियाँ पढ़ने का मौक़ा मिला, जिनका अनुवाद देवी नागरानी ने सिंधी से हिंदी में किया है। कथ्य-शिल्प और क़िस्सागोई में बहुत सशक्त हैं ये कहानियाँ। कहनियाँ पढ़ते हुए ऐसा लगा कि मेरे ही यहाँ की
कहानियाँ हैं। बुशरा रहमान, वाजिदा तब्बसुम को जब पढ़ती हूँ तो लगता है कि सोच, सरोकार, विसंगतियाँ दोनों देशों की एक सी हैं। कामगारों, मज़दूरों, ग़रीबों के संघर्ष एक से हैं। पितृसत्ता और राजनीति की सत्ता एक सी है। विद्रूपताओं का स्वरूप एक सा है। स्त्री-विमर्श एक सा है। अलग है तो बस परिवेश, देश से जुड़े दबाव। जाति-धर्म की सीमाएँ। पीड़ा-दर्द तो पूरी मानव-जाति का एक सा है। बस सरहद की रेखा ने विचारों और जीवन-दर्शन को बाँट दिया है, जिससे बहुत कुछ बँट गया है।

देवी नागरानी दो भाषाओं का ही आदान-प्रदान नहीं कर रहीं, बल्कि दो देशों के साहित्य में भी पुल का काम कर रही हैं। पंद्रह सिंधी कहानियों में ‘ज़िंदिली’ कहानी एक ऐसे चंचल, चुलबुले महिला चरित्र को चित्रित करती है, जो हमारे आस-पास से आते हैं। इस कहानी में प्रेम का वह रूप है, जो अंत में आँसुओं में बह जाता है। ‘बिल्लू दादा’ कहानी एक ऐसे चरित्र को लेकर बुनी गई है, जिसे लोग बुरा समझते हैं, पर वह इंसानियत से भरा है। हाँ, दुखियों की मदद करने का उसका तरीक़ा ग़लत है, उसी की सज़ा उसे मिलती है। ‘सीमेंट की पुतली’ मज़दूर और मिल मालिक का अंतर दर्शाती नारी-शोषण की कथा है। ‘यह शहर कोई तो पियेगा’ कहानी नशे के ख़िलाफ़ लिखी एक अच्छी कहानी है। इसकी बुनावट बहुत सुलझी हुई है। इस संग्रह की बाक़ी कहानियाँ उलझे धागे, सूर्याेदय के पहले, घाव, काला तिल, होंठों पर उड़ती तितली, अलग रंग-रूप लिए हैं। इन कहानियों की सबसे बड़ी ख़ूबी यह है कि ये कहानियाँ सहज रूप में यह प्रतीति देती हैं कि कथाकारों के पास कहानी कहने का न केवल शऊर है, अपितु वे अपनी कहानियों को सिद्धहस्त कलाकार के रूप में प्रस्तुत भी करते हैं।

बीमार आकांक्षाओं की खोज, हृदय कच्चे रेशे सा, मजाक, किस-किस को ख़ामोश करोगे, अलगाव की अग्नि, जड़ों से उखड़े कहानियों की भाषा अपनी निजता लिए हुए है, जिसमें क़िस्सागोई का सहज संस्कार, ग़ज़ब की संप्रेषण-क्षमता, एक ताज़ा तराश है। एक वृहत् कोलाज रचती हैं ये कहानियाँ और अनजाने सत्यों से परिचित भी करवाती हैं।

आशा करती हूँ कि पाठक इन कहानियों के सत्यों तक ज़रूर पहुँचेंगे। ये कहानियाँ प्रेमचंदयुग की कहानियों सा सुख और स्वाद देती हैं। देवी नागरानी ने अनुवाद इतने कलात्मक ढंग से किया है कि ये कहानियाँ अनूदित नहीं लगतीं।

मुझे विभिन्न भाषाओं में लिखी कहानियाँ पढ़ने का बहुत शौक़ है। सिंधी कहानियों से परिचय करवाने के लिए मैं देवी नागरानी का धन्यवाद करती हूँ। शुभकामनाओं के साथ—

—सुधा ओम ढींगरा
संपादक हिंदी चेतना
101 Guymon Ct.
Morrisville-NC-27560
USA

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