प्रांत-प्रांत की कहानियाँ (रचनाकार - देवी नागरानी)
उम्दा नसीहतकश्मीरी कहानी
मूल लेखक: हमरा ख़लीक
किसी ज़माने में कश्मीर में एक बादशाह रहता था जो शिकार का बहुत शौक़ीन था। एक दिन वह जंगल में शिकार खेलने गया और एक हिरन पर उसकी नज़र पड़ी। उसने हिरन का पीछा किया लेकिन वह इस तरह तेज़ रफ़्तार से भाग रहा था कि बादशाह उसे पकड़ न सका। हिरन उसकी नज़रों से ओझल हो गया। राजा ने वापस जाने का इरादा किया, लेकिन जब उसने इधर-उधर नज़र दौड़ाई तो वह बौख़ला गया।
“ओ ख़ुदाया! शायद मैं रास्ता भूल गया हूँ।”
वह रास्ता तलाश करता रहा लेकिन जंगल में और फँसता चला गया। भटकते-भटकते उसे जंगल में शाम हो गई थी, इसलिये राजा ने जंगल में ही ठहरने का इरादा किया। अचानक उसकी नज़र एक साधु पर पड़ी जो एक दरख़्त के नीचे ध्यान में बैठा हुआ था।
“यहाँ जंगल में किसी इन्सान का मिलना निहायत ख़ुशनसीबी है। शायद यह मेरी कुछ रहनुमाई कर सके।” राजा यह सोचकर साधु के पास पहुँचा।
साधु ने जब उसकी कहानी सुनी तो वह फ़ौरन उसके साथ चल पड़ा, क्योंकि वह जंगल से अच्छी तरह वाक़िफ़ था।
“जनाब आपने इतनी मदद की है, मैं ज़िन्दगी भर शुक्रगुज़ार रहूँगा। मेहरबानी करके आप मेरी सल्तनत में कुछ अरसा मेरे साथ गुज़ारें। आपके पधारने से मेरी इज़्ज़त अफ़ज़ाई होगी।” पहले तो साधु ने इनकार कर दिया लेकिन बादशाह के बार-बार इसरार करने पर वह राज़ी हो गया।
बादशाह ने फ़ौरन उसके लिये एक छोटा-सा मकान तैयार करवाया और उसका नाम ‘महाराज का मंदिर’ रखा। हर शाम बादशाह उसकी ख़िदमत में हाज़िर होता और उसकी नसीहत भरी वार्तालाप सुनता।
उसके मुल्क और दरबारियों को उसकी यह बात बिलकुल पसंद नहीं थी। उनका ख़याल था कि बादशाह की ज़रूरत साधु से ज़्यादा दरबार को है। लेकिन बादशाह उनकी बात बिलकुल नहीं सुनता था।
“मैं साधु के पास जाकर सुकून और चैन महसूस करता हूँ,” वह कहता था। एक दिन जब बादशाह साधु के पास पहुँचा तो उसे महसूस हुआ कि साधु कुछ परेशान और मायूस-सा है।
“महाराज जी क्या बात है?” बादशाह ने साधु से सवाल किया।
“मेरे बच्चे, यह वक़्त तुम्हारे लिये अच्छा नहीं है। तुम किसी आफ़त से घिरने वाले हो। तुम्हारे दरबारी तुम्हारे खिलाफ़ साज़िश कर रहे हैं। तुम्हारी ज़िन्दगी ख़तरे में है, तुम फ़ौरन दरबार छोड़ कर चले जाओ। जितनी रक़म और क़ीमती सामान साथ ले जा सकते हो, ले जाओ, लेकिन फ़ौरन महल छोड़ दो।”
बादशाह बेहद परेशान हुआ और साधु के क़दमों में झुक गया। साधु ने एक काग़ज़ उसे दिया, “यह कागज़ ले जाओ। उसमें कुछ उसूल दर्ज हैं उन पर अमल करना। ये बहुत महत्त्वपूर्ण हैं, और तुम्हारे लिये कारगर सिद्ध होंगे। किसी अनजानी जगह चले जाओ, वहाँ तुम महफूज़ रहोगे। ख़ुदा तुम्हारी हिफ़ाज़त करे।”
बादशाह फ़ौरन महल में वापस आया और जाने की तैयारी करने लगा। उसने मुसाफ़िरों का लिबास पहन लिया। उसके ऊपर एक गरम लिबास पहना जिसे ‘पैरहन’ कहा जाता है।
उसने क़ीमती नगीने अपने लिबास की जेबों में टाँक लिये, सिक्के थैले में रख लिये। अगली सुबह जल्दी ही वह महल से निकलकर झेलम दरिया की तरफ़़ चल पड़ा। रास्ते में उसकी उत्सुकता बढ़ी और उसने साधु का दिया हुआ कागज़ निकाल कर पढ़ना शुरू कर दिया।
“अजनबी इलाक़े में किसी पर भरोसा न करो। सिर्फ़ उन दोस्तों पर ऐतबार करो जिन्होंने परेशानी में तुम्हारा साथ दिया है। बुरे वक़्त में रिश्तेदार भी अपने नहीं होते।” बादशाह ने सोचा कि उसे साधु की नसीहतों को याद कर लेना चाहिये। वह उन्हें याद करता हुआ चलता रहा। अगली सुबह होने तक वह अपनी सल्तनत से बाहर निकल चुका था और पहाड़ के दूसरी तरफ़ पहुँच गया। उसने देखा कि पहाड़ पर हरियाली थी और हल्के गुलाबी फूल खिले थे। चारों तरफ़ बड़े-बड़े दरख़्त लगे थे और सुबह के सूरज की मद्धिम रोशनी फूलों और हरियाली पर पड़ रही थी।
‘वाक़ई कश्मीर जन्नत है’ उसने सोचा और आराम करने वहीं बैठ गया। साथ लाया हुआ खाना खाने लगा। खाने के पश्चात् वह थोड़ी देर लेट गया। जब उठा तो काफ़ी ताज़गी महसूस की। बादशाह ने अपने भविष्य के बारे में ग़ौर किया और एक ऐसे रास्ते पर चल पड़ा जो उसे हुकूमत और फ़रमान के अमल के दूसरी तरफ़ ले जाए। वह चलता रहा। चलते-चलते एक क़स्बे में पहुँचा। दूरी पर एक मकान नज़र आया जो शायद सराय थी।
बत्तियाँ जल रहीं हैं, इसका मतलब है अब तक कोई जाग रहा है। मेरा ख़याल है मुझे यहाँ रात गुज़ारनी चाहिए।” सोचते हुए उसने दरवाज़े पर पहुँचकर दस्तक दी।
दरवाज़ा निहायत ही बदसूरत औरत ने खोला, जिसे देखकर बादशाह ने बड़ी नफ़रत महसूस की, लेकिन वह इतना थक गया था कि आगे जाने की हिम्मत नहीं रही। उसने बड़ी मुश्किल से सवाल किया, “क्या मैं यहाँ रात बसर कर सकता हूँ?”
“अंदर आओ,” औरत ने मुस्कराकर जवाब दिया और एक कमरे की तरफ़ ले गई। कमरा बेहद छोटा-सा था लेकिन बहुत साफ़-सुथरा था।
“तुम यहाँ सो सकते हो, मुझे यक़ीन है कि तुम्हें आराम मिलेगा। मेरी सराय इसी बात के लिये मशहूर है,” वह औरत मुस्कुराते हुए बोली और कमरे से चली गई।
बादशाह बिलकुल बेहोश होने वाला था, लेकिन उसे अचानक साधु की नसीहत याद आ गई। उसने पलंग से चादर उठाकर देखी तो वह देखकर हैरान रह गया। पलंग के नीचे एक संदूक-सा था जो ताबूत लग रहा था।
“ओ ख़ुदा! अगर मैं इस बिस्तर पर लेट जाता तो मर जाता, शुक्र है कि मैंने अपने उस्ताद की बात पर अमल किया और बिस्तर उठाकर देख लिया। मैं उस मनहूस औरत को नहीं छोड़ूँगा।”
उसने ग़ुस्से से सोचा और दाँत पीसते हुए अपना ख़ंजर बाहर निकाला। वह ख़ंजर लेकर उस औरत पर झपटा और उसे क़त्ल कर दिया। थोड़ी देर वहाँ आराम करके वह आगे चल पड़ा।
दो दिन बाद वह एक गाँव में पहुँचा जहाँ उसके बचपन का दोस्त रहता था। उसने अपने दोस्त को पैग़ाम भेजा था कि वह उससे मिलना चाहता है। उसका दोस्त यह सुनते ही बादशाह से मिलने आया।
“ओ मेरे ख़ुदा, मैं तुम्हें बिलकुल नहीं पहचान सकता था। तुम इतने दुबले, कमज़ोर और थके लग रहे हो। चलो मेरे घर चलकर आराम करो।”
बादशाह अपने दोस्त के घर चला गया जहाँ उसकी बहुत आवभगत हुई। दोनों दोस्त अपने बचपन की बातें करते रहे। फिर बादशाह ने उसे सारी बात बताई।
“लेकिन तुम्हें इस तरह नहीं करना चाहिए, हमें कुछ और सोचना चाहिए,” उसके दोस्त ने कहा।
“मैं क़रीब की सल्तनत में जाकर मदद लेना चाहता हूँ ताकि अपने वज़ीरों की साज़िशों से लड़ सकूँ,” बादशाह ने अपने दोस्त को बताया।
इसी तरह तीन महीने गुज़र गए। अब बादशाह ने जाने का इरादा किया।
“तुम पैदल मत जाओ, मेरा घोड़ा ले लो,” दोस्त ने आग्रह किया।
बादशाह घोड़े पर सवार होकर रवाना हुआ। रास्ते में उसे फिर साधु की नसीहत का ख़याल आया कि सिर्फ़ उन दोस्तों पर भरोसा करो जो मुश्किल में काम आए हों।” उसने सोचा कि यह दोस्त ऐसा ही है और मैं उस पर हमेशा भरोसा कर सकता हूँ।
थोड़ी देर बाद वह अपने चाचा की सल्तनत में पहुँच गया। जब वह बादशाह के दरबार में गया तो बादशाह ने उसके हुलिये को देखकर गर्दन हिलाई, “तुम मेरे भतीजे नहीं हो। मेरे भतीजे तो बहुत रईस हैं,” कहकर बादशाह को बाहर निकलवा दिया।
‘यह मेरा अपना चाचा था जिसने इतनी बेहूदा हरक़त की है। साधु ने कितनी सच्ची बातें की हैं’, बादशाह ने सोचा। उसने हिम्मत नहीं हारी और पड़ोस की रियासत में गया। वहाँ के बादशाह ने उसके साथ बहुत अच्छा सुलूक किया और कहा, “आपकी मदद करके मुझे बहुत ख़ुशी होगी और मेरी इज्ज़त अफ़ज़ाई होगी। मेरी पूरी फ़ौज आपकी मदद के लिये हाज़िर है। ख़ुदा करे आप विजयी हों।”
बादशाह ने फ़ौरन उस फ़ौज की मदद से कश्मीर पर हमला किया। घमासान जंग हुई जो सात दिन तक जारी रही। आख़िरकार बाग़ियों को शिकस्त मिली। उसने बादशाह की फ़ौज को इनाम और इज्ज़त से नवाज़ा और वापस भेज दिया।
बादशाह ने मददगार दोस्त को अपना वज़ीर बनाया और अपने गुरु के पास आशीर्वाद लेने पहुँचा। बदक़िस्मती से गुरु सख़्त बीमार था और आख़िरी साँसें ले रहा था।
“बच्चे! ख़ुदा करे तुम्हें लंबी उम्र मिले और आराम व सुकून की ज़िन्दगी गुज़ारो। मैं तुम्हारी पुर-अमन और पुरसुकूँ सल्तनत में मरना पसंद करूँगा।” यह कहकर साधू ने आख़िरी हिचकी ली और आँखें मूँद ली।
बादशाह ने उसकी एक यादगार इमारत बनवाई जो वहाँ के लोगों के लिये एक पवित्र स्थान बन गई।
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