प्रांत-प्रांत की कहानियाँ (रचनाकार - देवी नागरानी)
अहसास के दरीचे . . .
मुख्तलिफ मुल्कों, मुख्तलिफ सूबों की मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबू समेटकर देवी नागरानी जी ने एक नया गुलशन सजा दिया जिसमें बलूची, कश्मीरी, पंजाबी, हिंद-सिंध की सिंधी कहानियाँ, मराठी, ताशकंद, ईरान, इंग्लैंड, मेक्सिको, रूस व् लैटिन की महक से पाठकों को सरशार करने की भरपूर कोशिश की है। किसी ज़ुबान के अदब को पढ़ना समुद्र में गोता खाने से कम नहीं और फिर उस समुद्र से मोती चुन कर उसे उसकी असली सूरत को कायम रखते हुए हिंदी पाठकों के सामने पेश करना जो उस ज़बान के अदब से बिल्कुल नावाकिफ़ है, इस हुनर में देवी नागरानी को महारत हासिल है। अब तक उनके आठ कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं& ‘‘और मैं बड़ी हो गई, सिंधी कहानियाँ, सरहदों की कहानियाँ, पंद्रह सिन्धी कहानियाँ, अपने ही घर में, दर्द की एक गाथा, (सिन्धी से हिंदी, और बारिश की दुआ व् अपनी धरती (हिंदी से सिन्धी)। एक अच्छी कहानीकार और शायरा होने के साथ साथ देवी जी एक माहिर तर्जुमानिगार भी हैं, यह मैं नहीं कह रही, इस बात की गवाही उनका काम देता है।
इस संग्रह में उनकी 18 कहानियाँ शामिल हैं, जो भिन्न भाषाओं के परिवेश से परिचित करवा रही हैं। ‘आखिरी नज़र’ वहीद ज़हीर की ऐसी कहानी है जो चौकीदार की नफसीयात को बहुत खूबसूरती से बयान करती है। चौकीदारी की आदत से मजबूर बाप, अपनी जवान बेटी पर शक़ करने लगता है और उसकी चौकीदारी शुरू कर देता है। ‘मुझ पर कहानी लिखो’, मराठी के मशहूर कहानीकार मोकाशी की कहानी है। एक लड़की की ज़िन्दगी में कैसे कैसे उम्र और हालात के साथ सोच बदलती है, उसे बहुत दिलचस्प अंदाज में पेश किया है। ‘उलाहना’ ग्राहम ग्रीन इंग्लैंड की कहानी दो बुजुर्गों के ज़िन्दगी के हालात और उनकी ख्वाइशात का मुजाहरा करती है। मगरबी तहजीब का रंग भी इस में नुमायाँ है।
‘खँडहर’ गुनो सामतानी की सिंधी कहानी है जो दो बिछड़े हुए प्रेमियों को एक अरसे बाद आमने सामने कर उनके हालात और जज्बात की अक्काशी करती है। कहानी खूबसूरत भी है और उसका असलूब भी निराला है।
‘बारिश की दुआ’ आरिफ जिया की बलूची कहानी, एक मासूम बच्ची की मासूम कहानी है जिसकी सच्चे दिल से की हुई ‘बारिश न पड़ने की दुआ’ कबूल हो जाती है। ‘चोरों का सरदार’ हमारा खलीक़ की कश्मीरी कहानी है जो खासतौर से बच्चों के लिए लिखी गई है। ‘गोश्त का टुकड़ा’ जगदीश द्वारा लिखी ताशकंद की उर्दू कहानी है जिसमें इंसान की गरीबी, पेट की आग बुझाने की ज़रूरत, खानदान की जिम्मेदारी की भागदौड़ उसके सभी जज़बात खत्म कर देती है और धीरे-धीरे वह सिर्फ़ चलता फिरता गोश्त का टुकड़ा ही रह जाता है। कहानी की चन्द पंक्तियाँ दिल को छू जाती हैं।
‘अब माँ की ममता, बीवी के आँसू और बच्चे का प्यार उसके दिल की हरकत को तेज़ नहीं कर सकते थे। वह अब कटे हुए जानवर के गोश्त के टुकडे की तरह था जिस पर स्पर्श का कोई असर नहीं होता।’
‘कर्नल सिंह’ बलवंत सिंह की लिखी खूबसूरत उर्दू कहानी है जिसमें पंजाब की मिट्टी की खुशबू आती है, गांव की जिंदगी इस अंदाज से बयान की है कि सारी तस्वीरें आँखों के सामने घूमने लगती हैं। कहानी की पहली दो पंक्तियाँ ‘‘सिख जाट की दो चीजों में जान होती है&उसकी लाठी और उसकी सवारी की घोड़ी या घोड़ा।’’ इस कहानी का सार बहुत दिलचस्प अंदाज़ में कर्नल सिंह की खोई हुई घोड़ी की तलाश से शुरु होकर चोर तक पहुँच जाती है, और कर्नल सिंह मूछों को ताव देने के बजाय मूछों की छांव तले एक मासूम मुस्कुराहट बिखेरने पर मजबूर हो जाता है।
कहानियाँ चाहे किसी भी मुल्क की हों, किसी भी प्रांत की हों, जब तक वे आम जिंदगी से जुड़ी रहेंगी, लोगों के जज़्बात, उनकी परेशानियाँ, उनकी महरूमियाँ और मजबूरियाँ, उनकी मोहब्बत और उनकी नफरतों को बयान करती रहेंगी।
कहानियाँ इंसान की बनाई हुए सरहदों से परे हैं। इनकी मिटटी की महक मुख्तलिफ हो सकती है, मगर इनकी रूह की सरशरी एक सी ही है। देवी नागरानी जी को मेरी तरफ से ढेरों शुभकामनायें और दुआ करती हूँ कि वे इसी तरह पाठकों को अपनी साहित्य सफ़र की यात्रा में साथ साथ हमसफ़र बना कर आगे बढती रहेंगी।
डॉ. रेनू बहल
संपर्कः 1505, सैक्टर 49-बी,
चंडीगढ़-160047
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- अहसास के दरीचे . . .
- विश्व कथा-साहित्य का सहज अनुवाद
- देश में महकती एकात्मकता
- ओरेलियो एस्कोबार
- आबे-हयात
- आख़िरी नज़र
- बारिश की दुआ
- बिल्ली का खून
- ख़ून
- दोषी
- घर जलाकर
- गोश्त का टुकड़ा
- कर्नल सिंह
- कोख
- द्रोपदी जाग उठी
- क्या यही ज़िन्दगी है
- महबूब
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- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
- अनूदित कविता
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- बाल साहित्य कविता
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