प्रांत-प्रांत की कहानियाँ

प्रांत-प्रांत की कहानियाँ  (रचनाकार - देवी नागरानी)

विश्व कथा-साहित्य का सहज अनुवाद

 

कहानी की बात जब-जब उठती है, तो मुझे बचपन में सुनी हुई दादी-नानी की किस्सागोई और बच्चों को बहलाने-सिखलाने के लिए जीवन के किसी स्मरणीय, प्रेरणादायी, रोमांचक या रोचक प्रसंग/घटनाओं को अपने ढंग से कहने के दिन याद आते हैं। साहित्य जब पढ़ना प्रारम्भ किया था तो लगता था कहानी की परम्परा कुछ इसी तरह से प्रारम्भ हुई होगी, घटनाओं को इस तरह प्रस्तुत करना कि वह कलात्मकता के साथ रुचिपूर्ण-सुरुचिपूर्ण संवेदनात्मकता के साथ हो जाए और साथ ही धीरे-धीरे उनसे कुछ वैचारिक प्रेरणा भी मनुष्य ग्रहण कर सके।

 साहित्य और विधाओं की सैद्धान्तिकी पर काव्य-शास्त्रियों की गम्भीर मीमांसाएँ और गवेषणाएँ लगभग प्रत्येक समुन्नत भाषा में कमोबेश उपलब्ध हो जाएँगी/जाती हैं। प्रकारान्तर से जीवन की जटिलताओं के बढ़ने के साथ-साथ विधाओं के विषय, शैली व कला रूपों में भी परिवर्तन हुए। किन्तु निस्सन्देह गद्य की सर्वाधिक प्रिय विधा के रूप में कहानी विश्व साहित्य की धुरी बनी हुई है। अन्तर यह आया है कि कल्पना या काल्पनिक जीवन की अटारी से हटकर कथा-साहित्य यथार्थ जीवन के धरातल पर अधिक दृढ़ता से आ खड़ा हुआ है। इस यथार्थ के प्रतिरूपण के मध्य, मूल्य और यथार्थ का द्वंद्व कहानीकार को कितना व कैसे घेरता है अथवा यथार्थ के चित्रण में वह अपनी कृति के लिए सीमा बाँधता है अथवा जानबूझ कर विद्रूप और मूल्यहीनता की चौहद्दियों को लाँघने में इसे चौंकाने वाले तत्व के रूप में सम्मिश्रित करने की भरसक चेष्टा से उसे ‘हटकर सबसे अनोखा किया’ का आनन्द आता है, यह विचारणीय है। आलोचना का ध्यान इस पर कितना जाता है और दूसरी ओर लेखक का हाशिए पर जीने वालों, अशक्तों तथा वंचितों के प्रति लगाव शिल्प में कितनी सहजता और अनौपचारिकता से रूपाकार पाता है, यह भी ज्ञातव्य होना चाहिए। कहानी के प्रचलित प्रतिमानों या तत्वों की औपचारिक उपस्थिति मात्र किसी घटना के कलात्मक निरूपण को कहानी बना सकने के लिए पर्याप्त नहीं रह गए हैं। कथावस्तु की प्रासंगिकता और कालोत्तरता कहानी को विशिष्टता देते हैं। 

अनूदित कहानियों को पढ़ने पर मूल लेखक की भाषा की संरचनात्मक विशिष्टताओं तथा भाषिक व्यञ्जना का अनुमान लगाना सम्भव नहीं होता। यह कार्य अनुवादक की स्रोत भाषा पर पकड़ के स्तर के परिमाण में उसी के द्वारा सम्भव हो सकता है। अनुवादक से अपने प्राक्कथन में इसे इंगित करने की अपेक्षा पाठकों व आलोचकों को बनी रहती है। 

देवी नागरानी द्वारा विश्व की विविध भाषाओं की हिन्दी में अनूदित कहानियों की पाण्डुलिपि मेरे हाथ में है। ये कहानियाँ पश्तो, बलूची, ईरानी, सिन्धी, कश्मीरी उर्दू, रूसी, पंजाबी, मराठी, मेक्सिकन, अंग्रेज़ी आदि भाषायी अंचलों का प्रतिनिधित्व करती हैं। विविध देशों, सभ्यताओं और भाषाओं में लिखी होने बावजूद एक बात इनमें समान है कि ये सभी मानव जीवन की दुरुहताओं और जटिलताओं को व्यक्त करती हैं। सम्वेदना के स्तर पर विश्वमानव और विश्वमानस समान हैं, उसके सुख-दुःख, आवश्यकता-अभाव, संवेग-पीड़ाएँ एक समान हैं; परिस्थितियाँ, घटनाक्रम, स्थान, काल और नाम भले भिन्न-भिन्न होते हैं। 

संकलन की पहली कहानी के रूप में बलूची कहानी ‘आबे-हयात’ सन्तान शोक से कई बार गुजर चुकी इकलौते पुत्र की डरी हुई माँ की कहानी है, जो पुत्र को मृत्यु के स्थायी भय में पालती है और उस भय से पार होने का जो नुस्खा पुत्र अपनाता है, वह केवल वीरों की माँ जान सकती है। बलूचिस्तान के समाज पर निरन्तर होते अत्याचारों के समाचारों से परिचित होने के कारण पाठक की संवेदना कथा पढ़ते हुए विशेषतया अंत तक आते-आते विगलित-सी हो जाती है।

दूसरी कहानी भी बलूची कहानी ही है, पश्तो भाषा में कही गई ‘आखिरी नजर’ ; जो पुरुष के मन की सन्देह वृत्ति घातक परिणाम की सम्भावना को पुष्ट करती है। साधारण जीवन जीने वाले नागरिकों के जीवन के ऊहापोह की कहानी है। स्त्रियों को लेकर पुरुषों का मन आधुनिक समय में भी कुछ खास बदला नहीं है। 

एक और बलूची कहानी ‘बारिश की दुआ’ झोंपड़ी में रहने वाली निर्धन बच्ची की कथा है जिसका निश्छल मन और स्मृति तथा संसार सब अभावग्रस्त जीवन की यातना से त्रस्त और आप्लावित है। लेखक ने मौलवी और प्रार्थना के बरक्स निरपराध बाल-मन की आस्था को रख कर, उसे बड़ा बताया है। 

ईरानी कहानी ‘बिल्ली का खून’ अपने आसपास घटने वाली कुछ बहुत ही सामान्य-सी प्रतीत होती घटनाओं में से एक को लेकर बुनी हुई कहानी है जिसे एक सम्वेदनशील ही भली प्रकार पकड़ सकता है। बिल्ली या किसी भी पशु को लेकर लिखी गई ऐसी कहानियाँ बहुधा पढ़ने में नहीं आतीं। जिस काल में मनुष्य अपने साथ रहने वाले व्यक्ति की वेदना और पीड़ा से अनजान है, उस काल में पशु के जीवन को कथावस्तु के रूप में पढ़ना पाठक की मनोभूमि को उमगा सकता है। 

कश्मीरी कहानी ‘चोरों का सरदार’ बचपन में पढ़ी कहानियों की तरह की कहानी प्रतीत होती है। इस कहानी को पढ़ते हुए कश्मीर को वहाँ के साहित्य में देखने की इच्छा-सी पैदा हुई, एक अपेक्षा-सी कहानी से जगी किन्तु कहानी वैसा कुछ यथार्थ प्रस्तुत नहीं कर पाई। 

पंजाबी कहानी ‘द्रौपदी जाग उठी’, संकलन की अन्य कहानियों की तुलना में कुछ लम्बी है और वर्णानात्मकता के चलते साहित्यिक कहानी जैसा भाव तो जगाती है, किन्तु पटाक्षेप पंजाब की पृष्ठभूमि पर लिखी गयी स्त्री की एक ख़ास प्रकार की कहानियों के दौर की कहानी का आभास देती है। 

उर्दू कहानियों के रूप में त्रासद यथार्थ की मार्मिक कथा ‘घर जलाकर’ के साथ ही खुशवंत सिंह की उर्दू कहानी ‘दोषी’ भी इसमें सम्मिलित है। ‘कर्नल सिंह’ पर्याप्त रोचक व विवरणात्मक शैली में लिखी गयी कहानी है। संकलन की एक अन्य उर्दू कहानी ‘सराबों का सफर’ एकदम समकालीन मुद्दों की नवीनतम कहानी है, जिसमें राजनीति का गन्दला रूप अपने यथार्थ के साथ उकेरने का यत्न किया गया है। इसी विषय पर केन्द्रित बलूची कहानी ‘तारीक राहें’ राजनीति के अपराधीकरण को मुद्दा बनाती हैं। मेक्सिकन कहानी ‘ओरलियो एस्कोबार’ भी मूलतः राजनीति, प्रशासन और सत्ता के कलुष की ही कहानी है। अलग-अलग भाषाओं और अलग देश-काल की इन कहानियों में एक समानता है। 

ताशकंद की कहानी ‘गोश्त का टुकड़ा’ गाँव के तथाकथित पढ़े-लिखे व्यक्ति की कहानी है जो हाथ के काम को कमतर और मजदूर बन कर जीवन खो देता है। कथावस्तु का यह पक्ष ‘गोदान’ की एक विसंगति का अनायास स्मरण करवाता है। 

 एक अन्य बलूची कहानी ‘क्या यही जिंदगी है’ की बिम्बात्मकता इसे अन्य कहानियों से अलगाती है&

‘‘हवाएँ तलवार की तरह काट पैदा कर रही थीं। तेज़ झोकों ने तूफ़ान बरपा कर रखा था। दरख़्तों ने ख़िज़ाँ की काली चादर ओढ़ ली थी। यूँ लगता था जैसे गए मौसमों का सोग मना रहे हैं।

कोई क्या जाने ये क्यों दुखी हैं? रातों की स्याही अब दिन में भी नज़र आती है। परिंदे, हवाओं में उड़ते सारे समूह अपने घोंसलों में पनाह लेकर, अपनी जमा की हुई पूँजी पर ज़िन्दगी बसर कर रहे थे।’’ 

‘‘सूरज ढलकर क्षितिज पर झुक रहा था। दक्षिण की तरफ़ से काले-काले बादल झूम-झूम कर बढ़ रहे थे, थोड़ी ही देर में सूरज गायब हो गया। अंधेरा बढ़ गया। बादलों ने बढ़कर सारे आसमान को ढाँप लिया। एक तो रात का अंधेरा, ऊपर से बादलों की स्याही। घोर अंधेरे में हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहा था। खूब बूंदा-बांदी और मूसलाधार बारिश हुई। ओले तड़तड़ाने लगे। बारिश ने यूँ समाँ बाँधा कि जैसे आज ही टूट कर बरसना है। भेड़-बकरियों ने सहमकर जोर-जोर से मिमियाना और डकरना शुरू कर दिया। अमीर अपने पक्के घरों में और ग़रीब अपने बेहाल झोपड़ों में फटे-पुराने कपड़ों में दांत बजा रहे थे। बारिश रुक गई। जानवरों की आवाज़ें आनी बंद हो गईं मगर अब भी कहीं कहीं से अभी पैदा हुए बच्चों के कराहने की आवाज़ आती तो अपनी गिरी हुई झोंपड़ियों से आग की तमन्ना लिये दांत बजाते, बगलों में हाथ दे, सहमे हुए सर्दी का दुख झेल रहे थे। यूँ लगता था कि ये कहावत सही है&‘गुलाबी जाड़ा भूखे-नंगे लोगों की रज़ाई है।’

यह कथा सम्भवतः इस संकलन की सर्वाधिक मार्मिक, यथार्थ और विडम्बनात्मक कहानी है। 

मैक्सिम गोर्की की रूसी कहानी ‘महबूब’ मानव मन की तहें खोलती है, प्रेम के अभाव में व्यक्ति का रुक्ष और कठोर हो जाना या कठोर व्यक्ति के निजी जीवन का अकेलापन और अभाव दोनों एक के दो पक्ष हैं। 

मराठी कहानी ‘मुझपर कहानी लिखो’ का कथ्य रोचक है और इन अर्थों में विशेष है कि यह एकसाथ कई मूलभूत प्रश्नों को छूती है। 

 इंग्लैण्ड की कहानी ‘उलाहना’ (ग्राहम ग्रीन) में प्रेम विवाह के बावजूद गृहस्थ जीवन की विसंगतियों का चित्रण है। प्रेम के अभाव में निभती गृहस्थियाँ भारतीय समाज के लिए मानो सामान्य-सी घटना है।

कुल मिलाकर संकलन की अधिकांश कहानियाँ पारिवारिक-सामाजिक जीवन के मार्मिक विघटन तथा मनुष्य की सम्वेदन-हीनता की कहानियाँ हैं। अनुवाद बहुत सहज व मूल भाषा में कहानी पढ़ने का-सा आनन्द देता है, जिसके लिए अनुवादक देवी नागरानी बधाई की पात्र हैं। कुछ स्थलों पर वर्तनी व व्याकरण पर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता अनुभव होती है। जिस अनुवादक के पास विभिन्न भाषाओं से अनुवाद का सामर्थ्य है, सहज ही उस अनुवादक से श्रेष्ठ समकालीन कथा-साहित्य के अनुवाद की अपेक्षा जगती है। आशा है, वे भविष्य में उत्तरोत्तर अधिक गम्भीर वैश्विक साहित्य से हिन्दी के पाठकों का परिचय करवाती रहेंगी। इस संकलन के लिए उन्हें बधाई और शुभ कामनाएँ देते हुए मैं हर्ष का अनुभव कर रही हूँ। 

(डॉ.) कविता वाचक्नवी 
(ह्यूस्टन, अमेरिका)

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