एक पुत्र का विलाप

15-12-2019

एक पुत्र का विलाप

राहुलदेव गौतम (अंक: 146, दिसंबर द्वितीय, 2019 में प्रकाशित)

आप! जगत के स्वामी हैं तात।
आप सब जानते हैं
मैं ऐसा क्योंकि हूँ।
नहीं है यह माता गांधारी का श्राप
मैं तो अपने आप
पश्चताप की अग्नि में जल रहा हूँ।
क्योंकि इतिहास ने 
मुझे इसके लिए चुना।
आप है विश्वविजयी 
महाभारत के कर्त्ता-धर्त्ता
और मैं अपने आप से हारा
एक अन्तहीन मनुष्य।
फिर भी आप कहते हैं तात!
मैं इतिहास से भटक गया हूँ।
अरे! जो कर्त्तव्य न चुन सका,
उसका इतिहास और जीवन पर 
कोई अधिकार नहीं।
फिर भी आप कहते,
मैं ग़लत हूँ।
कितना पीड़ादायक होता है
स्वयं की कोई पहचान का न होना।
क्या इतना काफ़ी होता है
एक पुत्र को उसके 
पिता के नाम से जाने संसार
क्या एक पुत्र का स्वयं का -
कोई अस्तित्व नहीं?
आने वाली पीढ़ी जब पूछेगी,
तुम्हारा क्या योगदान है शाम?
आने वाला इतिहास पूछेगा आप से
माधव! आप के पुत्र का इतिहास क्या है?
क्या कहेंगे?
बस इतना ही न कि मैं आपका पुत्र हूँ।
एक पुत्र को पिता का नाम
जन्म से मिल जाता है 
इसमें कोई इतिहास नहीं
कोई आश्चर्य नहीं।
लेकिन मैंने अपने जीवन में
क्या अर्जित किया?
इसका उत्तर क्या देंगे तात?
आप ने श्री अर्जुन को 
अक्षय गीता का ज्ञान दिया
अभिमन्यु को सर्वश्रेष्ठ योद्धा बनाया।
और मेरे जीवन की थाती में
केवल और केवल पुत्र होने का नाम।
कल मेरा मित्र इतिहास की कोख से पूछेगा,
मैंने उसके लिए क्या किया?
तात! मेरा वो मित्र!
जिसने मेरे प्रारब्ध के लिए
अपने पिता पर बाण चलाये।
मेरा मित्र विश्वसेन!
जिसने महाभारत में अकेला 
लड़ते वीरगति पाई।
और मैं असहाय उसकी 
सहायता न कर सका।
उसके वीरता को प्रणाम न कर सका।
तात!आपने धर्म स्थापना के लिए,
असीमित अधर्म का नाश किया।
और मैं पिता जी!
अपने अस्तित्व की स्थापना भी न कर सका।
मैं अपनी पत्नी को क्या उत्तर दूँगा।
जिसकी आँखें पूछती हैं मुझसे,
आर्य! इस युद्ध में,
आप ने क्या त्याग किया?
क्या मुझे विकल्प चुनने का 
कोई अधिकार नहीं था?
क्या मेरे पास कोई अवसर नहीं था?
मुझे क्षमा करें तात!
मुझे क्षमा करें!
न मैं आपका प्रतिभावान 
पुत्र बन सका,
न मैं भावी इतिहास बन सका।
न मैं मित्र का कर्त्तव्य निर्वाह कर पाया,
न मेरा योद्धाओं में कोई मूल्य हो पाया।
इसीलिए मैंने अपने जीवन को,
लक्ष्यहीन कर लिया है तात!
और पश्चताप की अग्नि में,
मैं क्षण-क्षण जल रहा हूँ।
शायद अब यही मेरा औचित्य है,
तो मैं कहाँ ग़लत हूँ तात!
अगर ग़लत हूँ
तो मेरा यही सत्य है तात।
यही सत्य है तात।
यही सत्य है।

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