गाँधी: महात्मा एवं सत्यधर्मी (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)
16. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम: विदेशी संग्रामी1925 का नवंबर महीना। एक सर्द सुबह। अहमदाबाद रेलवे स्टेशन पर गुलाबी धूप खिल रही थी। ट्रेन अहमदाबाद स्टेशन पहुँचने पर एक विदेशी तरुणी ने ट्रेन की खिड़की से बाहर झाँका। सभी अपरिचित, सभी नए-नए चेहरे। प्लैटफ़ॉर्म पर उतरकर उसने देखा कि कुछ लोग उसका स्वागत करने आए हुए थे। परिचय आदान-प्रदान करने के बाद लंदन से आई हुई उस विदेशी तरुणी को अहमदाबाद के साबरमती नदी के किनारे बने एक घर में सम्मानपूर्वक ले जाया गया। वहाँ किसी खपरीले घर के सामने कुछ समय इंतज़ार करने के बाद उसका प्रणम्य पुरुष उसके सामने खड़ा हो गए।
वह पुरुष थे महात्मा गाँधी। जिनकी वार्ता, विचारों और चेतना से प्रेरित होकर, लंदन के रियर एडमिरल की इकलौती बेटी मेडेलीन स्लेड अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में पहुँचीं। गाँधीजी ने उसकी ओर देखा और कहा, “आज से तुम मेरी दत्तक पुत्री हो . . . नाम रहेगा मीराबेन।”
सरदार पटेल और महादेव देसाई ने उसे गाँधीजी के आदेश पर अहमदाबाद रेलवे स्टेशन से लेकर आए थे। उसी दिन से गाँधीजी की मेडेलीन स्लेड दत्तक पुत्री मीराबेन बनकर गाँधीजी की अनुयायी और सेविका बन गईं। गाँधीजी का अनुयायी होना मीराबेन के लिए किसी तपस्या से कम नहीं था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई विदेशी महिलाओं और पुरुषों ने जेल की यातना झेली थी अथवा विदेशों में दंड भोगा था, उनमें अन्यतम थी इंग्लैंड की एक युवती मैडलिन स्लेड, जो बाद में मीराबेन के रूप में विख्यात हुई।
भारतवर्ष के सम्मानीय विचारक लेखक रामचंद्र गुहा की सबसे महत्त्वपूर्ण पुस्तक है ‘रिबेल्स अगेंस्ट द राज’। 1 सन् 2022 में एक अत्यंत ही प्रतिष्ठित प्रकाशन गृह पेंगुइन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक के लेखक रामचंद्र गुहा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कुछ अनछुए चरित्रों और घटनाओं को रोचक ढंग से पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया है। विषयवस्तु है महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर, जो विदेशी पुरुष और महिलाएँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने हेतु विदेशों से भारत आए थे, प्रसिद्ध लेखक रामचंद्र गुहा ने अपनी नवीनतम पुस्तक ‘रिबेल्स अगेंस्ट द राज’ में उनकी अनूठी कहानियों को आधार बनाया है। रामचंद्र गुहा आधुनिक समय के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में से एक हैं।
मीराबेन को भी ब्रिटिश सरकार ने गिरफ़्तार कर लिया था। बॉम्बे आर्थर रोड जेल में वह बंदी हुई थी। उसके साथ जेल में थी सरोजिनी नायडू और कमला देवी चट्टोपाध्याय। आजीवन गाँधी के सिद्धांतों का पालन करते हुए भारतीय जनजीवन को सुवासित किया था मीराबेन ने।
एक और विदेशी महिला ने भारत को स्वाधीन देखने का सपना देखा था। वह 1893 में भारत पहुँची और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को ज़ोरदार समर्थन किया था। आयरलैंड से आकर भारत में ‘पेरिअम्मा’ के नाम से मशहूर हुई थी एनी बेसेंट।
अपने वाक्पटु भाषण और सुदृढ़ नेतृत्व के कारण एनी बेसेंट ने 1917 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार सँभाला। भारत तो क्या पूरी दुनिया के इतिहास में पहली घटना थी कि जब किसी महिला ने एक राजनीतिक दल का नेतृत्व सँभाला था। सन् 1917 के कलकत्ता सम्मेलन में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में एनी बेसेंट के दो घंटे की दीर्घ अवधि वाले भाषण ने भारत के प्राचीन इतिहास, ऐहित्य, वैभव और भविष्य में एक गौरवशाली पहचान के निर्माण की दिशा में संग्राम करने हेतु प्रेरित किया। सन् 1917 में एनी बेसेंट ने एक सुविचारित राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी तैयार की। मद्रास में रह रही एनी बेसेंट के बढ़ते प्रभाव और लोकप्रियता से चिंतित होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें क़ैद कर लिया। सन् 1918 एनी बेसेंट ने अहमदाबाद आकर महात्मा गाँधी का खुले आम समर्थन किया।
महात्मा गाँधी के आदर्शों, विचारों और चेतना से प्रभावित होकर सुदूर अमेरिका से भारत खींचे आए सैमुअल इरानस स्टोक्स। हिमाचल प्रदेश के केमाटगढ़ में पहुँचकर उन्होंने भारत वर्ष को हृदय से ग्रहण कर लिया। ग़रीबों के इलाज को प्राथमिकता देते हुए स्टोक्स ने कृषि के ज़रिए किसानों की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने का भी काम किया। सन् 1920 में स्टोक महात्मा गाँधी से मिले और कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में भी भाग लिया। सन् 1921 में इलाहाबाद में आयोजित जनसभा में स्टोक्स के हिंदी भाषण ने गाँधीजी को बहुत प्रभावित किया। ब्रिटिश सरकार ने स्टोक्स के गाँधी के प्रति प्रेम और उनके सशक्त लेखन से परेशान होकर क़ैद कर लिया था। अमेरिका के पेन्सिलवेनिया से भारत आकर स्ट्रोक ने गाँधी के आदर्शों को अपनाते हुए रचनात्मक कार्यों में प्रवृत होकर एक शानदार मिसाल क़ायम की।
गाँधी जी की विचारधारा इतनी प्रभावशाली थी कि ब्रिटेन के एक कम्युनिस्ट नेता भी भारत की ओर खींचे चले आए। ब्रिटिश कम्युनिस्ट फिलिप्स स्पार्ट गाँधी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर दक्षिण भारत पहुँचे। उन्होंने ‘गाँधीज़्म: ए एनालायसिस’ नामक पुस्तक भी लिखी। सीता नामक एक तमिल महिला से शादी कर “माइस इंडिया” नामक एक रुचिपूर्ण पत्रिका की शुरूआत की। इस पत्रिका में उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध करते हुए गाँधी के संदेशों और कार्यों पर प्राथमिकता दी। फिलिप्स को भी जेल में डाल दिया गया। जीवन में कभी कम्युनिस्ट विचारधारा के समर्थक रहे फिलिप्स स्पार्ट परवर्ती समय में गाँधीवाद के प्रशंसक और अनुयायी बन गए। 1964 में स्वतंत्रता के बाद, फिलिप्स ने भारतीय अर्थव्यवस्था विषय पर समालोचना का काम करना शुरू किया। उन्हें चक्रवर्ती राजगोपलाचारी का समर्थन प्राप्त था। फिलिप्स स्पार्ट ने राजाजी की पत्रिका ’स्वराज’ के लिए कुछ लेख भी लिखे थे। 1970 में फिलिप्स स्वराज पत्रिका के संपादक भी बने। आज़ादी से पहले फिलिप्स को मेरठ साज़िश मामले में गिरफ़्तार किया गया था और बाद में वह गाँधीवाद के समर्थक बनकर स्वतंत्र भारत में नए विचारों के प्रतिपादन में अग्रदूत बन गए।
गाँधीजी के सत्याग्रह, अहिंसा से प्रभावित होकर एक और महियषी महिला इंग्लैंड से भारत आई। नाम था कैथरीन, लेकिन बाद में वह सरलाबेन के नाम से विख्यात हुई। 1932 में वह भारत आई थी और उन्होंने भारतीय जीवन शैली, भारतीय संस्कृति को आत्मसात कर लिया। राजस्थान के उदयपुर में कुछ समय अध्यापन करने के बाद वह आठ वर्ष महात्मा गाँधी के सेवाग्राम आश्रम में रही। स्वयं गाँधी जी ने उनका नाम सरलाबेन रखा था। वह गाँधीजी की बुनियादी शिक्षाओं पर आधारित “नई तालीम” की प्रत्यक्ष पर्यवेक्षक थे। भारत छोड़ो आंदोलन का संदेश को उत्तराखंड में व्यापक रूप से फैलाने की वजह से वह ब्रिटिश सरकार की कोपभाजन बनी। गाँधीजी के अनुयायी सरलाबेन को ब्रिटिश सरकार ने दो बार अल्मोड़ा और लखनऊ जेलों में बंद कर दिया। 1941 से 1942 के बीच उन्होंने कसौनी में एक स्कूल की स्थापना की, जहाँ स्वतंत्रता सेनानियों की बेटियाँ पढ़ती थीं। भारत के स्वाधीन होने के बाद पर्यावरण आंदोलन को जन-जन तक पहुँचाने में सरलाबेन की उल्लेखनीय भूमिका है। प्रख्यात पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा, विमला भट्ट थे गाँधीवादी सरलाबेन द्वारा प्रशिक्षित पर्यावरणविद्। ब्रिटेन से आई मीराबेन महात्मा गाँधी के दत्तकपुत्री के रूप में और सरलाबेन थीं गाँधीवाद के मूर्तिमान प्रतीक। उन दोनों ने आश्रम स्थापित कर गाँधीवाद के रचनात्मक और व्यावहारिक पहलुओं को सफलतापूर्वक लागू करते हुए भारतीय समाज में परिवर्तन का सूत्रपात किया था।
गाँधीजी के आदर्शों से प्रेरणा पाकर एक और विदेशी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गया। वे थे, ब्रिटेन से आए हुए एक प्रतिष्ठित संपादक बेंजामिन हर्नमेन। जलियावाला बाग़ हत्याकांड की कुछ संवेदनशील तस्वीरें और दस्तावेज़ गुप्त रूप से ब्रिटेन भेजकर उन्होंने भारत में ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ वहाँ मज़बूत जनमत तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। इस वजह से ब्रिटिश सरकार ने उन्हें भारत से निर्वासित कर दिया। सन् 1906 में कलकत्ता में प्रकाशित ’द स्टेट्समैन’ के लिए काम करने के लिए भारत पहुँचे। बाद में 1913 में, उन्होंने बॉम्बे से प्रकाशित ‘द क्रॉनिकल’ के संपादन का कार्यभार सँभालते हुए ब्रिटिश सरकार की समालोचना करना शुरू किया। गाँधीवाद से ओत-प्रोत निडर संपादक, हर्नमेन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बहादुर सैनिक का काम किया।
महात्मा गाँधी के अहिंसक संग्राम के आह्वान से प्रेरित होकर सन् 1925 में सुदूर अमेरिका से राल्फ रिचर्ड कैथहान भारत आकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। उन्होंने दक्षिण भारत में मदुरै के पास अध्यापन का कार्य शुरू किया। सन्1929 में साबरमती आश्रम में महात्मा गाँधी का उन्हें प्रत्यक्ष आशीर्वाद मिला। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए उनके समर्थन के कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हें भारत से निर्वासित कर दिया। कैथहान ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन और उसके बाद में सर्वोदय आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। तमिलनाडु के डिंडीगुल में कैथहान के स्मारक पर बाइबिल से दो पंक्तियों के साथ ख़ुदा हुआ है: ओम शान्ति, ओम शान्ति। उनका जन्म अमेरिका में हुआ था, लेकिन उन्होंने भारत को कर्मभूमि बनाकर गाँधीवाद से प्रेरित होकर भारतीय मुक्ति संग्राम में अतुलनीय योगदान दिया।
उपर्युक्त सात विदेशी संग्रामियों ने गाँधीजी के आदर्शों का आजीवन समर्पण भाव से अनुसरण किया। भले ही, उनका जन्म विदेश की भूमि पर हुआ था, लेकिन उन्होंने भारत भूमि के आध्यात्मिक विचारों अपनाते हुए अपना समग्र जीवन उसकी स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया। जेल गए या निर्वासित हुए। महात्मा गाँधी ने 1946 में कहा था, “सभी विदेशियों का हार्दिक स्वागत, जब वे भारतीयों के साथ तल्लीन भाव से दूध में पानी की तरह से घुलमिल जाएँगे।”
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ये गाँधीवादी विदेशी सेनानी भारतीय मुक्ति यज्ञ में समिधा के लकड़ी की तरह थे।
सकाल
23 फरवरी 2022
विषय सूची
- समर्पित
- कई सवालों के बीच महात्मा गाँधी
- गाँधी: एक अलीक योद्धा
- मोहनदास से महात्मा की यात्रा
- 1. गाँधीजी: सत्यधर्मी
- 2. मोहन दास से महात्मा गाँधी: चेतना के ऊर्ध्वगामी होने की यात्रा
- 3. सत्यधर्मी गाँधी: शताब्दी
- 4. गाँधीजी: अद्वितीय रचनाकार
- 5. “चलो, फुटबॉल खेलते हैं” : गांधीजी
- 6. सौ वर्ष में दो अनन्य घटनाएँ
- 7. महात्मा गाँधी की क़लम
- 8. गाँधीजी और डॉ. कालेनबेक: अध्यात्म-रज्जु पर चलने वाले दो पथिक
- 9. इज़राइल में गाँधी की दोस्ती का स्मृति-चिह्न
- 10. मंडेला की धरती पर भीम भोई एवं गाँधी जी
- 11. एक किताब का जादुई स्पर्श
- 12. गाँधीजी के तीन अचर्चित ओड़िया अनुयायी
- 13. लंडा देहुरी, फ़्रीडा और गाँधीजी
- 14. पार्वती गिरि: ‘बाएरी’ से ‘अग्नि-कन्या’
- 15. गाँधीजी के आध्यात्मिक शिष्य: विनोबा
- 16. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम: विदेशी संग्रामी
- 17. अँग्रेज़ पुलिस को पीटने वाली बरगढ़ की सेनानी बहू: देमती देई शबर
- 18. ‘विद्रोही घाटी' के सेनानी चन्द्रशेखर बेहेरा के घर गाँधी जी का रात्रि प्रवास
- 19. रग-रग में शौर्य:गाँधीजी के पैदल सैनिक और ग्यारह मूर्तियाँ
- 20. पल-दाढ़भाव और आमको-सिमको नरसंहार: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक अनन्य घटना
- 21. “राजकुमार क़ानून” और परिपक्व भारतीय लोकतंत्र
- 22. गंगाधर की “भारती भावना“: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सारस्वत आलेख
- 23 अंतिम जहलिया: जुहार
लेखक की कृतियाँ
- साहित्यिक आलेख
-
- अमेरिकन जीवन-शैली को खंगालती कहानियाँ
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की ‘विज्ञान-वार्ता’
- आधी दुनिया के सवाल : जवाब हैं किसके पास?
- कुछ स्मृतियाँ: डॉ. दिनेश्वर प्रसाद जी के साथ
- गिरीश पंकज के प्रसिद्ध उपन्यास ‘एक गाय की आत्मकथा’ की यथार्थ गाथा
- डॉ. विमला भण्डारी का काव्य-संसार
- दुनिया की आधी आबादी को चुनौती देती हुई कविताएँ: प्रोफ़ेसर असीम रंजन पारही का कविता—संग्रह ‘पिताओं और पुत्रों की’
- धर्म के नाम पर ख़तरे में मानवता: ‘जेहादन एवम् अन्य कहानियाँ’
- प्रोफ़ेसर प्रभा पंत के बाल साहित्य से गुज़रते हुए . . .
- भारत के उत्तर से दक्षिण तक एकता के सूत्र तलाशता डॉ. नीता चौबीसा का यात्रा-वृत्तान्त: ‘सप्तरथी का प्रवास’
- रेत समाधि : कथानक, भाषा-शिल्प एवं अनुवाद
- वृत्तीय विवेचन ‘अथर्वा’ का
- सात समुंदर पार से तोतों के गणतांत्रिक देश की पड़ताल
- सोद्देश्यपरक दीर्घ कहानियों के प्रमुख स्तम्भ: श्री हरिचरण प्रकाश
- पुस्तक समीक्षा
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- उद्भ्रांत के पत्रों का संसार: ‘हम गवाह चिट्ठियों के उस सुनहरे दौर के’
- डॉ. आर.डी. सैनी का उपन्यास ‘प्रिय ओलिव’: जैव-मैत्री का अद्वितीय उदाहरण
- डॉ. आर.डी. सैनी के शैक्षिक-उपन्यास ‘किताब’ पर सम्यक दृष्टि
- नारी-विमर्श और नारी उद्यमिता के नए आयाम गढ़ता उपन्यास: ‘बेनज़ीर: दरिया किनारे का ख़्वाब’
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- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 2
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