गाँधी: महात्मा एवं सत्यधर्मी

 

मध्य पूर्व में इज़राइल की राजधानी तेल अबीब में बेंगुरियन विमान के उतरने के समय मूसलाधार बारिश ने थमकर बूँदाबाँदी का रूप ले लिया था। जैसे ही विमान घाटी से बाहर निकला, तो अचानक सूरज की किरणें तेल अबीब शहर पर फैलने लगीं थीं। 

उस समय आकाश में रंग-बिरंगा इंद्रधनुष दिखाई देने लगा था। सामने खड़ी थी इज़राइली भारतीय दूतावास में काम करने वाली इज़राइली महिला आना। जहाज़ से उतरते समय अपना परिचय देते हुए आना कहने लगी, “इज़राइल में बारिश बहुत कम होती है . . . आप भारत से बारिश लेकर आए हैं . . . यह हमारे लिए ख़ुशी की बात है।”

तेल अबीब से लगभग 80 किलोमीटर दूर एक छोटा शहर है। समुद्र तट पर बसे हुए इस शहर का नाम है हाइफ़ा। हाइफ़ा में मेरे रहने की व्यवस्था की गई थी। एक दिन शाम के समय जॉर्जिया और तमार बगरडिआक के साथ शहर के दर्शनीय स्थलों की यात्रा पर निकला तो अचानक तमार ने एक घर की ओर इशारा करते हुए कहा, “देखो . . . महात्मा गाँधी के दोस्त का घर।” महात्मा गाँधी का नाम सुनते ही भौचक रह गया। मैंने घर के पास जाकर देखा तो एक जगह लिखा हुआ था ‘डॉ. हेरमेन कालेनबेक’, महात्मा गाँधी के दोस्त का समाधि-घर। 

मेरे मन में ख़ुशी की एक बड़ी लहर दौड़ पड़ी। फिर मन में अनेक सवाल उठने लगे कि महात्मा गाँधी के घनिष्ठ सहयोगी और अंतरंग मित्र सिंह डॉ. हेरमेन कालेनबेक इज़राइल के हाइफ़ा शहर कैसे पहुँच गए? 

डॉ. कालेनबेक का जन्म यूरोपियन देश लिथुआनिया में हुआ था और उन्होंने म्यूनिख में वास्तुकला का अध्ययन किया। अपने पेशेवर जीवन की शुरूआत उन्होंने दक्षिण अफ़्रीका से की। जब मोहनदास करमचंद गाँधी 1893-94 में दक्षिण अफ़्रीका में अपना व्यावसायिक जीवन शुरू कर रहे थे, तब उनकी मुलाक़ात डॉ. हेरमेन कालेनबेक से हुई। वे बहुत अमीर थे, लेकिन मोहनदास करमचंद गाँधी से मुलाक़ात होने के बाद उनमें बहुत बड़ा बदलाव आया। और वह मोहनदास करमचंद गाँधी के घनिष्ठ मित्र और उनके अनुयायी बन गये थे। गाँधी के ‘सत्याग्रह’ और ‘सभी मनुष्य समान हैं’ के सिद्धांतों ने उन्हें सबसे अधिक प्रभावित किया था। 

डॉ. हरमन कालेनबेक बहुत भाग्यशाली थे। जब दक्षिण अफ़्रीका में मोहनदास करमचंद गाँधी से महात्मा गाँधी में तब्दील हो रहे थे, तो वे उस महान प्रक्रिया के प्रत्यक्षदर्शी साक्षी थे। मोहनदास करमचंद गाँधी से महात्मा गाँधी बनने की प्रक्रिया ऐतिहासिक और असाधारण थी। और वह प्रक्रिया थी “चेतना के उर्ध्वगामी होने की यात्रा।” 

मोहनदास से महात्मा गाँधी बनने की प्रक्रिया को बहुत क़रीब से देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था, डॉ. कालेनबेक, कस्तूरबा गाँधी, हेनरी पोलक और उनकी धर्मपत्नी मिली पोलक को। 1910 में गाँधीजी के लियो टॉलस्टाय के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध हो गए थे। ‘सत्याग्रह’, ‘अहिंसा’ के ऊँचे आदर्शों को व्यावहारिक रूप देने के लिए गाँधीजी ने जोहान्सबर्ग के पास एक आश्रम खोला, जिसका नाम था टॉलस्टाय फार्म। और फार्म के लिए हज़ारों एकड़ ज़मीन ख़रीदकर डॉ. हरमन कालेनबेक ने महात्मा गाँधी के हाथों में उपहारस्वरूप दे दी थी। इसके अलावा, गाँधीजी के सपनों के आश्रम का नाम टॉल्स्टॉय फार्म रखा था ख़ुद डॉ. कालेनबेक ने। 

1914 के अंत में जब गाँधीजी ने कस्तूरबा गाँधी के साथ दक्षिण अफ़्रीका से भारत के लिए रवाना हुए तो डॉ. कालेनबेक स्वयं दक्षिण अफ़्रीका से लंदन तक उन्हें छोड़ने आये थे। और फिर दक्षिण अफ़्रीका लौटकर वहाँ रहकर रचनात्मक कार्यों में लगे गए। 

गाँधीजी और डॉ. कालेनबेक के पारस्परिक घनिष्ठ सम्बन्ध भी उस समय चर्चा का विषय था। डॉ. कालेनबेक 1937 और 1939 में गाँधीजी को मिलने भारत आये थे। उसके बाद वे किसी सामाजिक और राजनीतिक कार्य के लिए इज़राइल पहुँचे। इज़राइल की राजधानी तेलअबीब से 80 किलोमीटर दूर हाइफ़ा में रहने लगे। महात्मा गाँधी के सहयोगी एवं अनुयायी डाॅ. कालेनबेक पर लिखी हुई दो पुस्तकों में उनके और गाँधीजी के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध को उजागर किया गया है। जिसमें एक अच्छी किताब है, ‘ग्रेट सोल: महात्मा गाँधी एंड हिज़ स्ट्रगल विद इंडिया’ थी, जिसके लेखक है त्रिदीप सुहुर्ड। दूसरी किताब है, साइमन लेवक की, ‘सोलमेट्स: द स्टोरी ऑफ़ महात्मा गाँधी एंड हेरमेंन कालेनबेक’। ये दोनों पुस्तकें इतिहास के अनछुए पहलू को सामने लाती हैं। दक्षिण अफ़्रीका से लेकर पूरे जीवन गाँधी जी को मानने वाले अनलोचित व्यक्ति थे हेरमेंन कालेनबेक। गाँधीजी भी उनके प्रति बहुत सम्मान रखते थे। कुछ मुद्दों पर दोनों के बीच मतभेद थे, लेकिन उनकी दोस्ती के आगे वे मतभेद फीके पड़ गए। 

इज़राइल के हाइफ़ा में रहकर डॉ. कालेनबेक ने इज़रायली सामाजिक जीवन में महत्त्वपूर्ण काम किया था। वहाँ अपनी बेटी हन्ना लज़ार के साथ रहते थे। और 1945 में उनका जीवन दीपक हमेशा के लिए बुझ गया। 
बहुत वर्षों तक उनके जीवन के बारे में पता नहीं चला। उनकी नातिन ईसा सारिद ने डॉ. हेरमेन कालेनबेक की जीवनी लिखकर गाँधीजी और उनके अनन्य सम्बन्धों को दुनिया के सामने लाया। 

2015 में डॉ. कालेनबेक और गाँधीजी की जुड़वाँ मूर्ति उनके जन्म स्थान लिथुआनिया में लोकार्पित हुई। पूरे विश्व में यह इकलौती युग्म मूर्ति है। जेरूसलम के हिब्रू विश्वविद्यालय में डॉ. कालेनबेक का बहुत बड़ा पुस्तकालय है। 

सन् 2009 में, मैंने इज़राइल के हाइफा शहर में गाँधी जी के ऐतिहासिक दक्षिण अफ़्रीकी जीवन के प्रत्यक्षदर्शी रहे डॉ. हेरमेन कालेनबेक का समाधि-स्थल देखा। वहाँ दो मिनट हाथ जोड़कर मैंने गाँधीजी और कालेनबेक की युगलमूर्ति को प्रणाम किया। लौटते समय मन में अनोखी शान्ति महसूस हो रही थी। 

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