गाँधी: महात्मा एवं सत्यधर्मी (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)
9. इज़राइल में गाँधी की दोस्ती का स्मृति-चिह्न
मध्य पूर्व में इज़राइल की राजधानी तेल अबीब में बेंगुरियन विमान के उतरने के समय मूसलाधार बारिश ने थमकर बूँदाबाँदी का रूप ले लिया था। जैसे ही विमान घाटी से बाहर निकला, तो अचानक सूरज की किरणें तेल अबीब शहर पर फैलने लगीं थीं।
उस समय आकाश में रंग-बिरंगा इंद्रधनुष दिखाई देने लगा था। सामने खड़ी थी इज़राइली भारतीय दूतावास में काम करने वाली इज़राइली महिला आना। जहाज़ से उतरते समय अपना परिचय देते हुए आना कहने लगी, “इज़राइल में बारिश बहुत कम होती है . . . आप भारत से बारिश लेकर आए हैं . . . यह हमारे लिए ख़ुशी की बात है।”
तेल अबीब से लगभग 80 किलोमीटर दूर एक छोटा शहर है। समुद्र तट पर बसे हुए इस शहर का नाम है हाइफ़ा। हाइफ़ा में मेरे रहने की व्यवस्था की गई थी। एक दिन शाम के समय जॉर्जिया और तमार बगरडिआक के साथ शहर के दर्शनीय स्थलों की यात्रा पर निकला तो अचानक तमार ने एक घर की ओर इशारा करते हुए कहा, “देखो . . . महात्मा गाँधी के दोस्त का घर।” महात्मा गाँधी का नाम सुनते ही भौचक रह गया। मैंने घर के पास जाकर देखा तो एक जगह लिखा हुआ था ‘डॉ. हेरमेन कालेनबेक’, महात्मा गाँधी के दोस्त का समाधि-घर।
मेरे मन में ख़ुशी की एक बड़ी लहर दौड़ पड़ी। फिर मन में अनेक सवाल उठने लगे कि महात्मा गाँधी के घनिष्ठ सहयोगी और अंतरंग मित्र सिंह डॉ. हेरमेन कालेनबेक इज़राइल के हाइफ़ा शहर कैसे पहुँच गए?
डॉ. कालेनबेक का जन्म यूरोपियन देश लिथुआनिया में हुआ था और उन्होंने म्यूनिख में वास्तुकला का अध्ययन किया। अपने पेशेवर जीवन की शुरूआत उन्होंने दक्षिण अफ़्रीका से की। जब मोहनदास करमचंद गाँधी 1893-94 में दक्षिण अफ़्रीका में अपना व्यावसायिक जीवन शुरू कर रहे थे, तब उनकी मुलाक़ात डॉ. हेरमेन कालेनबेक से हुई। वे बहुत अमीर थे, लेकिन मोहनदास करमचंद गाँधी से मुलाक़ात होने के बाद उनमें बहुत बड़ा बदलाव आया। और वह मोहनदास करमचंद गाँधी के घनिष्ठ मित्र और उनके अनुयायी बन गये थे। गाँधी के ‘सत्याग्रह’ और ‘सभी मनुष्य समान हैं’ के सिद्धांतों ने उन्हें सबसे अधिक प्रभावित किया था।
डॉ. हरमन कालेनबेक बहुत भाग्यशाली थे। जब दक्षिण अफ़्रीका में मोहनदास करमचंद गाँधी से महात्मा गाँधी में तब्दील हो रहे थे, तो वे उस महान प्रक्रिया के प्रत्यक्षदर्शी साक्षी थे। मोहनदास करमचंद गाँधी से महात्मा गाँधी बनने की प्रक्रिया ऐतिहासिक और असाधारण थी। और वह प्रक्रिया थी “चेतना के उर्ध्वगामी होने की यात्रा।”
मोहनदास से महात्मा गाँधी बनने की प्रक्रिया को बहुत क़रीब से देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था, डॉ. कालेनबेक, कस्तूरबा गाँधी, हेनरी पोलक और उनकी धर्मपत्नी मिली पोलक को। 1910 में गाँधीजी के लियो टॉलस्टाय के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध हो गए थे। ‘सत्याग्रह’, ‘अहिंसा’ के ऊँचे आदर्शों को व्यावहारिक रूप देने के लिए गाँधीजी ने जोहान्सबर्ग के पास एक आश्रम खोला, जिसका नाम था टॉलस्टाय फार्म। और फार्म के लिए हज़ारों एकड़ ज़मीन ख़रीदकर डॉ. हरमन कालेनबेक ने महात्मा गाँधी के हाथों में उपहारस्वरूप दे दी थी। इसके अलावा, गाँधीजी के सपनों के आश्रम का नाम टॉल्स्टॉय फार्म रखा था ख़ुद डॉ. कालेनबेक ने।
1914 के अंत में जब गाँधीजी ने कस्तूरबा गाँधी के साथ दक्षिण अफ़्रीका से भारत के लिए रवाना हुए तो डॉ. कालेनबेक स्वयं दक्षिण अफ़्रीका से लंदन तक उन्हें छोड़ने आये थे। और फिर दक्षिण अफ़्रीका लौटकर वहाँ रहकर रचनात्मक कार्यों में लगे गए।
गाँधीजी और डॉ. कालेनबेक के पारस्परिक घनिष्ठ सम्बन्ध भी उस समय चर्चा का विषय था। डॉ. कालेनबेक 1937 और 1939 में गाँधीजी को मिलने भारत आये थे। उसके बाद वे किसी सामाजिक और राजनीतिक कार्य के लिए इज़राइल पहुँचे। इज़राइल की राजधानी तेलअबीब से 80 किलोमीटर दूर हाइफ़ा में रहने लगे। महात्मा गाँधी के सहयोगी एवं अनुयायी डाॅ. कालेनबेक पर लिखी हुई दो पुस्तकों में उनके और गाँधीजी के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध को उजागर किया गया है। जिसमें एक अच्छी किताब है, ‘ग्रेट सोल: महात्मा गाँधी एंड हिज़ स्ट्रगल विद इंडिया’ थी, जिसके लेखक है त्रिदीप सुहुर्ड। दूसरी किताब है, साइमन लेवक की, ‘सोलमेट्स: द स्टोरी ऑफ़ महात्मा गाँधी एंड हेरमेंन कालेनबेक’। ये दोनों पुस्तकें इतिहास के अनछुए पहलू को सामने लाती हैं। दक्षिण अफ़्रीका से लेकर पूरे जीवन गाँधी जी को मानने वाले अनलोचित व्यक्ति थे हेरमेंन कालेनबेक। गाँधीजी भी उनके प्रति बहुत सम्मान रखते थे। कुछ मुद्दों पर दोनों के बीच मतभेद थे, लेकिन उनकी दोस्ती के आगे वे मतभेद फीके पड़ गए।
इज़राइल के हाइफ़ा में रहकर डॉ. कालेनबेक ने इज़रायली सामाजिक जीवन में महत्त्वपूर्ण काम किया था। वहाँ अपनी बेटी हन्ना लज़ार के साथ रहते थे। और 1945 में उनका जीवन दीपक हमेशा के लिए बुझ गया।
बहुत वर्षों तक उनके जीवन के बारे में पता नहीं चला। उनकी नातिन ईसा सारिद ने डॉ. हेरमेन कालेनबेक की जीवनी लिखकर गाँधीजी और उनके अनन्य सम्बन्धों को दुनिया के सामने लाया।
2015 में डॉ. कालेनबेक और गाँधीजी की जुड़वाँ मूर्ति उनके जन्म स्थान लिथुआनिया में लोकार्पित हुई। पूरे विश्व में यह इकलौती युग्म मूर्ति है। जेरूसलम के हिब्रू विश्वविद्यालय में डॉ. कालेनबेक का बहुत बड़ा पुस्तकालय है।
सन् 2009 में, मैंने इज़राइल के हाइफा शहर में गाँधी जी के ऐतिहासिक दक्षिण अफ़्रीकी जीवन के प्रत्यक्षदर्शी रहे डॉ. हेरमेन कालेनबेक का समाधि-स्थल देखा। वहाँ दो मिनट हाथ जोड़कर मैंने गाँधीजी और कालेनबेक की युगलमूर्ति को प्रणाम किया। लौटते समय मन में अनोखी शान्ति महसूस हो रही थी।
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- समर्पित
- कई सवालों के बीच महात्मा गाँधी
- गाँधी: एक अलीक योद्धा
- मोहनदास से महात्मा की यात्रा
- 1. गाँधीजी: सत्यधर्मी
- 2. मोहन दास से महात्मा गाँधी: चेतना के ऊर्ध्वगामी होने की यात्रा
- 3. सत्यधर्मी गाँधी: शताब्दी
- 4. गाँधीजी: अद्वितीय रचनाकार
- 5. “चलो, फुटबॉल खेलते हैं” : गांधीजी
- 6. सौ वर्ष में दो अनन्य घटनाएँ
- 7. महात्मा गाँधी की क़लम
- 8. गाँधीजी और डॉ. कालेनबेक: अध्यात्म-रज्जु पर चलने वाले दो पथिक
- 9. इज़राइल में गाँधी की दोस्ती का स्मृति-चिह्न
- 10. मंडेला की धरती पर भीम भोई एवं गाँधी जी
- 11. एक किताब का जादुई स्पर्श
- 12. गाँधीजी के तीन अचर्चित ओड़िया अनुयायी
- 13. लंडा देहुरी, फ़्रीडा और गाँधीजी
- 14. पार्वती गिरि: ‘बाएरी’ से ‘अग्नि-कन्या’
- 15. गाँधीजी के आध्यात्मिक शिष्य: विनोबा
- 16. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम: विदेशी संग्रामी
- 17. अँग्रेज़ पुलिस को पीटने वाली बरगढ़ की सेनानी बहू: देमती देई शबर
- 18. ‘विद्रोही घाटी' के सेनानी चन्द्रशेखर बेहेरा के घर गाँधी जी का रात्रि प्रवास
- 19. रग-रग में शौर्य:गाँधीजी के पैदल सैनिक और ग्यारह मूर्तियाँ
- 20. पल-दाढ़भाव और आमको-सिमको नरसंहार: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक अनन्य घटना
- 21. “राजकुमार क़ानून” और परिपक्व भारतीय लोकतंत्र
- 22. गंगाधर की “भारती भावना“: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सारस्वत आलेख
- 23 अंतिम जहलिया: जुहार
लेखक की कृतियाँ
- साहित्यिक आलेख
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- अमेरिकन जीवन-शैली को खंगालती कहानियाँ
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की ‘विज्ञान-वार्ता’
- आधी दुनिया के सवाल : जवाब हैं किसके पास?
- कुछ स्मृतियाँ: डॉ. दिनेश्वर प्रसाद जी के साथ
- गिरीश पंकज के प्रसिद्ध उपन्यास ‘एक गाय की आत्मकथा’ की यथार्थ गाथा
- डॉ. विमला भण्डारी का काव्य-संसार
- दुनिया की आधी आबादी को चुनौती देती हुई कविताएँ: प्रोफ़ेसर असीम रंजन पारही का कविता—संग्रह ‘पिताओं और पुत्रों की’
- धर्म के नाम पर ख़तरे में मानवता: ‘जेहादन एवम् अन्य कहानियाँ’
- प्रोफ़ेसर प्रभा पंत के बाल साहित्य से गुज़रते हुए . . .
- भारत के उत्तर से दक्षिण तक एकता के सूत्र तलाशता डॉ. नीता चौबीसा का यात्रा-वृत्तान्त: ‘सप्तरथी का प्रवास’
- रेत समाधि : कथानक, भाषा-शिल्प एवं अनुवाद
- वृत्तीय विवेचन ‘अथर्वा’ का
- सात समुंदर पार से तोतों के गणतांत्रिक देश की पड़ताल
- सोद्देश्यपरक दीर्घ कहानियों के प्रमुख स्तम्भ: श्री हरिचरण प्रकाश
- पुस्तक समीक्षा
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- उद्भ्रांत के पत्रों का संसार: ‘हम गवाह चिट्ठियों के उस सुनहरे दौर के’
- डॉ. आर.डी. सैनी का उपन्यास ‘प्रिय ओलिव’: जैव-मैत्री का अद्वितीय उदाहरण
- डॉ. आर.डी. सैनी के शैक्षिक-उपन्यास ‘किताब’ पर सम्यक दृष्टि
- नारी-विमर्श और नारी उद्यमिता के नए आयाम गढ़ता उपन्यास: ‘बेनज़ीर: दरिया किनारे का ख़्वाब’
- प्रवासी लेखक श्री सुमन कुमार घई के कहानी-संग्रह ‘वह लावारिस नहीं थी’ से गुज़रते हुए
- प्रोफ़ेसर नरेश भार्गव की ‘काक-दृष्टि’ पर एक दृष्टि
- वसुधैव कुटुंबकम् का नाद-घोष करती हुई कहानियाँ: प्रवासी कथाकार शैलजा सक्सेना का कहानी-संग्रह ‘लेबनान की वो रात और अन्य कहानियाँ’
- सपनें, कामुकता और पुरुषों के मनोविज्ञान की टोह लेता दिव्या माथुर का अद्यतन उपन्यास ‘तिलिस्म’
- बात-चीत
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- अनूदित कहानी
- अनूदित कविता
- यात्रा-संस्मरण
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- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 2
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 3
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