गाँधी: महात्मा एवं सत्यधर्मी (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)
7. महात्मा गाँधी की क़लम
मई 1932
पूरे भारत में ब्रिटिश शासन की अराजकता के विरुद्ध जन आंदोलन निर्णायक रूप लेने लगा था। गाँधीजी ने अपने ‘नमक सत्याग्रह’ की सफलता के आधार पर, ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ भारतीय विरोध की आवाज़ को तेज़ करना शुरू कर दिया। कहा जा सकता है कि महात्मा गाँधी के नेतृत्व में ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ हवा गर्म होने लगी थी। इसी समय गाँधीजी की अनुयायी मीराबेन को गाँधीजी का एक पत्र मिला। गाँधीजी का पत्र मिलना किसी देवता के आशीर्वाद से कम नहीं था। मीराबेन गाँधीजी की दत्तक पुत्री थीं। मीराबेन का जन्म इंग्लैंड में हुआ था, उनके पिता ब्रिटिश नौसेना के सर्वोच्च पद पर आसीन थे। उनकी इकलौती बेटी मीराबेन थी। ब्रिटिश नौसेना के सर्वोच्च अधिकारी की इस बेटी का मूल नाम मैड्रिन स्लेड था। गाँधीजी के साबरमती आश्रम में पहुँचने के बाद, स्लेड के प्रणम्य पुरुष, महात्मा गाँधी ने उसे अपनी बेटी के रूप में अपनाया और उसका नाम मीराबेन रखा।
गाँधीजी की चिट्ठी का तोहफ़ा पाकर मीराबेन ख़ुशी से झूम उठीं। और फिर पत्र की विषय-वस्तु को देखकर वह पुलकित हो गई थी।
गाँधी जी ने मीराबेन को लिखा था, “यदि आप अपने फ़ाउंटेन पेन से लिखना बंद कर देंगे, तो यह बहुत अच्छा होगा।” मीराबेन द्वारा लिखे गए कई पत्रों में इस्तेमाल की गई स्याही और अक्षरों को देखकर गाँधीजी ने सही अनुमान लगाया कि मीराबेन फ़ाउंटेन पेन का इस्तेमाल करती थीं।
गाँधीजी एक अद्वितीय व्यक्तित्व और लेखक थे। पत्रिका के संपादक होने के नाते गाँधीजी संपादकीय तथा अन्य पत्र-पत्रिकाएँ अपने हाथ से लिखते थे। गाँधीजी फ़ाउंटेन पेन के प्रबल विरोधी थे। गाँधीजी व्यावहारिक एवं बुनियादी सोच वाले व्यक्ति थे। गाँधीजी अपनी राजनीतिक और आर्थिक सोच में भिन्न और अद्वितीय थे। भारत की आज़ादी से कुछ दिन पहले 28 अप्रैल 1947 को गाँधीजी द्वारा लिखा गया एक लेख का शीर्षक था ‘छात्रों को सलाह’।
गाँधीजी ने छात्रों के उद्देश्य से लिखा था:
(1) सुबह उठते ही अपना बिस्तर ठीक कर लें
(2) सुबह का नाश्ता तैयार करने में अपनी माँ की मदद करें,
(3) घर में झाड़ू-पोंछा करें,
(4) अपनी किताबें साफ़ सुथरा रखें
(5) 50 रुपए के फ़ाउंटेन पेन की जगह आप दो आने के सरकंडे वाली क़लम (होल्डर पेन) और स्याही की बोतल का ही इस्तेमाल करें।
गाँधीजी के आर्थिक चिंतन में ‘स्वदेशी’ और ‘आत्मनिर्भरता’ प्रमुख बिंदु थे। उनके विचार में, अधिक आबादी वाले देश में हर किसी को जीवन यापन की आवश्यकता होती है, इसलिए उन्होंने छोटे व्यवसायों पर ज़ोर दिया उसमें एक फ़ाउंटेन पेन था। क्योंकि उस समय फ़ाउंटेन पेन देश में बाहर से आयात किये जाते थे। लेकिन सरकंडे वाली क़लम और दवात (पुनर्चक्रण योग्य बोतलें) भारत में बनाई जाती थी। गाँधीजी का दृढ़ विश्वास था कि सरकंडे वाली क़लम और दवात का उपयोग भारतीय अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाएगा। परक़लम और दवात के उपयोग पर गाँधीजी के मूल विचारों को उनके ‘झरक़लम (फ़ाउंटेन पेन) बनाम परक़लम (सरकंडे की क़लम)’ शीर्षक निबंध में देखा जा सकता है। गाँधीजी लिख रहे थे, “फ़ाउंटेन पेन केलिग्राफिस्ट जैसे कुछ लोगों की जीविका छीन ले लेगा। और धातु से बने निब का उपयोग ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नष्ट कर देगा।”
गाँधीजी हर दिन कुछ न कुछ लिखते रहते थे। लेखन उनके जीवन का प्रमुख हिस्सा था। गाँधीजी जी एक स्वदेशी क़लम का इस्तेमाल करते थे। चूँकि यह स्वदेशी था और फ़ाउंटेन पेन होते हुए भी गाँधीजी ने इसके प्रयोग की अनुमति दी। यह ‘रत्नम क़लम’ थी, जिसका निर्माण 1932 में केवी रत्नम नामक व्यक्ति द्वारा राजमहेंद्रा में स्वदेशी रूप से किया गया था। चूँकि ‘रत्नम क़लम’ स्वदेशी रूप से बनाया गया था, इसलिए गाँधीजी को दो क़लम भेजे गए। 1935 में गाँधीजी ने स्वदेशी क़लम प्राप्त करने के बाद ‘रत्नम क़लम’ के मालिक को एक पत्र लिखा था—‘मुझे रत्नम से बना एक पेन मिला है, जो विदेशी फ़ाउंटेन पेन का एक मज़बूत विकल्प है।’
यह आश्चर्य की बात है कि गाँधीजी स्वदेशी क़लम बनाने की प्रक्रिया के प्रमुख समर्थक थे। 1921 तक गाँधीजी अपने वर्धा आश्रम में थे। उस समय, केवी रत्नम नामक एक सफल और प्रमुख सोना व्यापारी गाँधीजी से मिलने आया करते थे। उस समय, गाँधीजी ने केवी रत्नम से कुछ ऐसा बनाने के लिए कहा, जिसका उपयोग सभी भारतीय बहुत कम लागत पर कर सकें। केवी रत्नम ने स्वयं गाँधीजी से प्रेरणा लेकर शुरूआत की थी, 1932 में रत्नम पेन वर्क्स। वहाँ से स्वदेश निर्मित ‘रत्नम क़लम’ गाँधीजी को भेजा गया। अर्थशास्त्री जे.सी. कुमार ने 1935 में गाँधीजी को ‘रत्नम पेन’ दिया था। इससे पहले गाँधीजी कुछ परक़लम और दवात रखते थे। गाँधीजी जी को अपनी क़लम को दवात में डुबाकर लिखने में बहुत आनंद आता था। ऐसा कहा जाता था कि यदि आप परक़लम को दवात में डुबाकर लिखते हैं, तो लिखते समय विरक्ति की भावना पूरी तरह से ख़त्म हो जाती है।
गाँधीजी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख पुरोधा थे, फिर भी छोटी-छोटी बातों को प्राथमिकता देना उनकी बुनियादी और व्यावहारिक सोच को दर्शाता है। उन छोटी-सी चीज़ के अंदर एक क़लम थी। यह आश्चर्य की बात है कि गाँधीजी ने साधारण क़लम से भी अपने बुनियादी आर्थिक विचारों को अभिव्यक्त किया।
गाँधीजी और क़लम का अनोखा रिश्ता था। इसी सिलसिले में एक ख़ूबसूरत और छोटी सी किताब आँखों के सामने से गुज़री है। सेवाग्राम द्वारा प्रकाशित ‘बेसिक पेन शॉर्ट स्टोरीज़ फ़ॉर एवरीवन’ नामक पुस्तक में गाँधीजी के जीवन की घटनाओं का उल्लेख किया गया है . . . दवात को लकड़ी की मेज़ पर रखा जाता है। एक छोटी मलहम की बोतल का उपयोग करने के बाद, गाँधीजी इसे साफ़ करते हैं, और उसमें दवात या स्याही डालते हैं, और इसे लकड़ी की मेज़ पर रखते हैं। गाँधीजी लकड़ी की मेज़ में पेन और पेंसिल रखने की अलग से विशेष व्यवस्था करते हैं।
गाँधीजी अद्वितीय संपादक थे और एक ऐसे लेखक थे जो बुनियादी विचारों को बहुत ही सरल तरीक़े से समझा सकते थे। और गाँधी जी उनको मिलने वाले पत्रों का उत्तर अपने हाथ से लिखकर देते थे। इन सभी कार्यों का सुचारु रूप से संपादन स्वदेशी क़लम के प्रवर्तक महात्मा गाँधी जी कर रहे थे।
विषय सूची
- समर्पित
- कई सवालों के बीच महात्मा गाँधी
- गाँधी: एक अलीक योद्धा
- मोहनदास से महात्मा की यात्रा
- 1. गाँधीजी: सत्यधर्मी
- 2. मोहन दास से महात्मा गाँधी: चेतना के ऊर्ध्वगामी होने की यात्रा
- 3. सत्यधर्मी गाँधी: शताब्दी
- 4. गाँधीजी: अद्वितीय रचनाकार
- 5. “चलो, फुटबॉल खेलते हैं” : गांधीजी
- 6. सौ वर्ष में दो अनन्य घटनाएँ
- 7. महात्मा गाँधी की क़लम
- 8. गाँधीजी और डॉ. कालेनबेक: अध्यात्म-रज्जु पर चलने वाले दो पथिक
- 9. इज़राइल में गाँधी की दोस्ती का स्मृति-चिह्न
- 10. मंडेला की धरती पर भीम भोई एवं गाँधी जी
- 11. एक किताब का जादुई स्पर्श
- 12. गाँधीजी के तीन अचर्चित ओड़िया अनुयायी
- 13. लंडा देहुरी, फ़्रीडा और गाँधीजी
- 14. पार्वती गिरि: ‘बाएरी’ से ‘अग्नि-कन्या’
- 15. गाँधीजी के आध्यात्मिक शिष्य: विनोबा
- 16. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम: विदेशी संग्रामी
- 17. अँग्रेज़ पुलिस को पीटने वाली बरगढ़ की सेनानी बहू: देमती देई शबर
- 18. ‘विद्रोही घाटी' के सेनानी चन्द्रशेखर बेहेरा के घर गाँधी जी का रात्रि प्रवास
- 19. रग-रग में शौर्य:गाँधीजी के पैदल सैनिक और ग्यारह मूर्तियाँ
- 20. पल-दाढ़भाव और आमको-सिमको नरसंहार: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक अनन्य घटना
- 21. “राजकुमार क़ानून” और परिपक्व भारतीय लोकतंत्र
- 22. गंगाधर की “भारती भावना“: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सारस्वत आलेख
- 23 अंतिम जहलिया: जुहार
लेखक की कृतियाँ
- साहित्यिक आलेख
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- अमेरिकन जीवन-शैली को खंगालती कहानियाँ
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की ‘विज्ञान-वार्ता’
- आधी दुनिया के सवाल : जवाब हैं किसके पास?
- कुछ स्मृतियाँ: डॉ. दिनेश्वर प्रसाद जी के साथ
- गिरीश पंकज के प्रसिद्ध उपन्यास ‘एक गाय की आत्मकथा’ की यथार्थ गाथा
- डॉ. विमला भण्डारी का काव्य-संसार
- दुनिया की आधी आबादी को चुनौती देती हुई कविताएँ: प्रोफ़ेसर असीम रंजन पारही का कविता—संग्रह ‘पिताओं और पुत्रों की’
- धर्म के नाम पर ख़तरे में मानवता: ‘जेहादन एवम् अन्य कहानियाँ’
- प्रोफ़ेसर प्रभा पंत के बाल साहित्य से गुज़रते हुए . . .
- भारत के उत्तर से दक्षिण तक एकता के सूत्र तलाशता डॉ. नीता चौबीसा का यात्रा-वृत्तान्त: ‘सप्तरथी का प्रवास’
- रेत समाधि : कथानक, भाषा-शिल्प एवं अनुवाद
- वृत्तीय विवेचन ‘अथर्वा’ का
- सात समुंदर पार से तोतों के गणतांत्रिक देश की पड़ताल
- सोद्देश्यपरक दीर्घ कहानियों के प्रमुख स्तम्भ: श्री हरिचरण प्रकाश
- पुस्तक समीक्षा
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- उद्भ्रांत के पत्रों का संसार: ‘हम गवाह चिट्ठियों के उस सुनहरे दौर के’
- डॉ. आर.डी. सैनी का उपन्यास ‘प्रिय ओलिव’: जैव-मैत्री का अद्वितीय उदाहरण
- डॉ. आर.डी. सैनी के शैक्षिक-उपन्यास ‘किताब’ पर सम्यक दृष्टि
- नारी-विमर्श और नारी उद्यमिता के नए आयाम गढ़ता उपन्यास: ‘बेनज़ीर: दरिया किनारे का ख़्वाब’
- प्रवासी लेखक श्री सुमन कुमार घई के कहानी-संग्रह ‘वह लावारिस नहीं थी’ से गुज़रते हुए
- प्रोफ़ेसर नरेश भार्गव की ‘काक-दृष्टि’ पर एक दृष्टि
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- बात-चीत
- ऐतिहासिक
- कार्यक्रम रिपोर्ट
- अनूदित कहानी
- अनूदित कविता
- यात्रा-संस्मरण
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- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 2
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