गाँधी: महात्मा एवं सत्यधर्मी (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)
13. लंडा देहुरी, फ़्रीडा और गाँधीजी
1910 की कड़ाके की सर्दी ख़त्म होने के बाद संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया में बसंत की नवकोपलें खिलने लगी थी। परिवेश में सूर्य की नवकिरणों की ऊष्मा सभी को सुखद लगती है। कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के कुछ भारतीय छात्रों ने भारत में ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीय समाज पर अन्याय, अराजकता और उसके प्रभाव पर एक लघु चर्चा बैठक का आयोजन किया था। चर्चा के अंत में एक उज्ज्वल तनु होनहार युवक ने शान्ति और दृढ़ता से कहा, “भारत को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए, हमें अपनी अर्थव्यवस्था की रीढ़ को मज़बूत करना होगा . . . इसलिए हमें कृषि अर्थव्यवस्था पर ध्यान देना होगा . . .। जब मैं यहाँ से भारत लौटूँगा, तो मैं ख़ुद खेती करूँगा . . . गन्ने से चीनी पैदा करके पैसा कमाऊँगा, और मुनाफ़े से स्कूल और अस्पताल चलाऊँगा।”
उस समय भारतीय छात्रों के साथ बैठी हुई थी, स्विट्ज़रलैंड से आई हुई स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ रही रूपसी युवती। भारतीय साहित्य में रुचि रखने वाली वह युवती खड़ी होकर अपने चेहरे पर मुस्कान लिए कहने लगी, “इन्हें देखो . . . आपका युवा उद्यमी . . . शुगर किंग।”
उस दिन की पहली मुलाक़ात में ही उस युवा भारतीय छात्र और उस युवा स्विट्ज़रलैंड की छात्रा के बीच कैलिफ़ोर्निया के आद्य बसंत के ख़ूबसूरत माहौल में प्रेम-बीज अंकुरित हो उठे।
भारतीय युवक ओड़िशा के ढेंकानाल से आकर कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय में कृषि विज्ञान की पढ़ाई करने वाला छात्र सारंगधर दास और युवती थी फ़्रीडा हर्थ, जो स्विट्ज़रलैंड से आकर स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में ललित कला की पढ़ाई कर रही थी। 1917 में फ़्रीडा हर्थ अमेरिका में सारंगधर दास के साथ परिणय सूत्र में बँध गई। फ़्रीडा हार्थ शादी के बाद ओड़िया घर की बहू बन गई। फ़्रीडा और सारंगधर दास ने सुदूर हवाई द्वीप पर अपने घर-संसार की शुरूआत की। अपनी कड़ी मेहनत और अध्यवसाय के बाल पर सारंगधर दास हवाई द्वीप में बहुत जल्दी ही कृषि उद्योग के विशेषज्ञ के रूप में पहचाने जाने लगे। लेकिन उनके मन के एक निभृत कोने में अपने देश के लिए कुछ करने की इच्छा की लहर उछाल मार रही थी। सन् 1920 में सारंगधर दास जापान और अमेरिका में उच्च शिक्षा प्राप्त कर भारत लौट आए थे।
भारत लौटने के बाद कृषि उद्योग विशेषज्ञ सारंगधर दास ने अपनी जन्मभूमि ढेंकनाल के पास कामाख्या नगर में 1800 एकड़ ज़मीन ख़रीदकर, उस पर एक कृषि फार्म और गन्ना आधारित उद्योग शुरू किया। ओड़िया घर की बहू फ़्रीडा हर्थ दास ने इसमें उल्लेखनीय योगदान दिया। उस समय पूरे देश में स्वतंत्रता संग्राम की उत्ताल पवन बह रही थी। आम आदमी के साथ-साथ किसानों का उत्पीड़न सारंगधर को व्यथित कर रहा था। बाद में सारंगधर दास ने ‘लंडा देहुरी’ नाम से ‘किसान’ पत्रिका में किसानों की शिकायतों और समस्याओं पर कई उपादेय और प्रभावशाली निबंध लिखे। सारंगधर दास बाद में प्रसिद्ध प्रजामंडल आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते हुए उसके अग्रणी नेता के रूप में उभरे।
दूसरी ओर ओड़िया घर की बहू फ़्रीडा हर्थ दास महिलाओं की शिक्षा और स्वास्थ्य के बारे में चिंतन कर रही थीं। अमेरिका में रहते हुए फ़्रीडा की प्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस के परिवार के साथ नज़दीकियाँ बढ़ीं। फिर शान्ति निकेतन में विश्वकवि रवींद्रनाथ की व्यावहारिक शिक्षाओं पर ज्ञान प्राप्त करने के बाद फ़्रीडा हर्थ दास ने ओड़िया महिलाओं और लड़कियों को प्रशिक्षण देना शुरू किया।
फ़्रीडा हर्थ स्वाधीन चेतना से ओत-प्रोत थी। ललित कला विशारद और सुलेखिका। भारत आने के बाद महात्मा गाँधी के नेतृत्व और अहिंसक लड़ाई ने फ़्रीडा हर्थ दास को काफ़ी प्रभावित किया। उसके मन में जाग उठी थी महात्मा गाँधी के दर्शन और उनके साथ कुछ समय तक तात्विक विषयों पर विचार-विमर्श करने की इच्छा।
सुलेखिका फ़्रीडा हर्थ दास की अंग्रेज़ी भाषा में सृजनशील दक्षता अद्भुत थी और साथ ही साथ भारतीय साहित्य में अभिरुचि भी। उनके रचनात्मक लेखनी की एक अनूठी अभिव्यक्ति अंग्रेज़ी में प्रकाशित हुई ‘ए मैरिज टू इंडिया’ नामक पुस्तक से। इस पुस्तक में तत्कालीन भारतीय और ओड़िशा की जीवन-शैली का अद्भुत वर्णन है, महात्मा गाँधी के साथ उनकी मुलाक़ातें, साक्षात्कार और वार्तालाप का मार्मिक चित्रण। महात्मा गाँधी के चिंतन पर भगवद गीता के प्रभाव ने फ़्रीडा को अचंभित कर दिया था। सुलेखिका फ़्रीडा के शब्दों में, “भारतवर्ष के महान महाकाव्यों, ‘महाभारत’ और ‘रामायण’ ने मुझे पूरी तरह से अभिभूत कर दिया था। जो मेरी जन्मभूमि के महाकाव्यों ‘निबेलुंजेन’ और ‘बउव्लफ’ से बहुत ऊपर है . . . भारतीय महागाथा हृदय को छूती है और आत्मा को झकझोर देती है . . . ‘गीता’ का निष्काम कर्म अध्यात्म की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति है।”
ओड़िशा में अपने प्रवास के दौरान फ़्रीडा अंतरंग भाव से तत्कालीन ओड़िया जनजीवन पर महात्मा गाँधी के अहिंसक लड़ाई का प्रभाव देख रही थी। उन्हें गाँधी जी के दर्शन और उनके साथ बातचीत करने का अवसर मिला। 1927 में महात्मा गाँधी आध्यात्मिक चेतना की भूमि ओड़िशा में तीसरी बार आए थे। 4 से 21 दिसंबर, 1927 के बीच गाँधीजी ओड़िशा में थे और उन्होंने ओड़िशा के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम और रचनात्मक कार्यों का संदेश दिया। 16 दिसंबर 1927 को गाँधी जी कटक पहुँचे। फ़्रीडा अपने मन में गाँधीजी के दर्शन की इच्छा से कटक पहुँची। गाँधी जी के दर्शन, उनके साथ वार्तालाप और उनका चित्र खींचने की महत्वाकांक्षा लिए चारुकला में पारंगत फ़्रीडा कटक में गाँधीजी के निवास स्थान पर पहुँची। फ़्रीडा के साथ थी, स्वतंत्रता सेनानी चित्तरंजन दास की बहन उर्मिला, जो महात्मा गाँधी के लिए खाने-पीने की व्यवस्था के लिए ओड़िशा आई हुई थीं।
वह दिन गाँधी जी का मौन दिवस था। फिर भी फ़्रीडा ने उर्मिला को गाँधीजी के साथ उसकी तस्वीर बनाने की इच्छा ज़ाहिर कर दी थी। उर्मिला ने समझाया, “गाँधीजी की तस्वीर बनाने के लिए ज़्यादा देर तक बैठाना ठीक नहीं होगा। बल्कि गाँधीजी जब पहिया घुमाने बैठेंगे तो तुम उनका चित्र बना लेना।”
फ़्रीडा निराश नहीं हुई और यथाशक्ति अपना काम करने लगी।
तभी फ़्रीडा के जीवन का महेंद्र मुहूर्त आया, लंबे समय के लिए बहुत नज़दीक से गाँधीजी के दर्शन के साथ। सही समय पर गाँधीजी चरखा घुमाने बैठ गए। उस कमरे के अंदर गाँधीजी की दत्तक पुत्री मीरा बेन और मैडलिन स्लेड नामक एक युवा अँग्रेज़ लड़की, जो गाँधीजी की अनुयायी बन गई थी। कोठारी में और थी उर्मिला, जो गाँधीजी को फल और दूध परोस रही थी। ठीक उसी समय फ़्रीडा ने बहुत डरते हुए कमरे में प्रवेश किया और गाँधीजी को पहली बार व्यक्तिगत रूप से अपनी आँखों के सामने देखा। फ़्रीडा के शब्दों में, “घुटने तक लंबी धोती और कंधे पर लटके हुए अंगरखा वाले क्षीण शरीरधारी दिव्य पुरुष के चेहरे पर अल्प मुस्कान थी, करुणात्मक और अद्वितीय . . . उनके चारों तरफ़ शान्ति की आभा छाई हुई थी और दाँत झड़ने के बाद कम दाँतों वाले उनेक सुंदर चेहरे पर प्रखर तेज फैला हुआ था।
फ़्रीडा ने जल्दी से सूत कातते हुए गाँधीजी का चित्र बनाया। कुछ देर बाद गाँधीजी ने उस छवि को देखा और मुस्कुराते हुए सिर हिलाया। उस रात फ़्रीडा ने बिना सोए तस्वीर को पूरा करके अगले दिन गाँधीजी को दिखाया। गाँधीजी ने मुस्कुराते हुए फ़्रीडा से कहा, “तुम्हें मुझे पारिश्रमिक देना होगा, और वह होगा तुम स्वयं सूत कातोगी और कपड़ा बुनोगी।” गाँधीजी ने फिर से फ़्रीडा से ओड़िशा में महिलाओं को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम करने का अनुरोध किया था। ओड़िया परिवार की बेटी फ़्रीडा हर्थ दास के लिए यह एक बड़े गर्व और सम्मान की बात थी।
ओड़िया परिवार की बहू फ़्रीडा हर्थ दास ने गाँधीजी के बारे में अपनी पुस्तक में अद्भुत वर्णन किया है, “जिस तरह भगवान बुद्ध की चेतना ने हज़ारों साल पहले भारत की भूमि को प्रबुद्ध किया था, उसी तरह गाँधीजी की चेतना ने भारत में आध्यात्मिक जागृति की एक नई लहर शुरू की है।”
गाँधी जी को अपने सामने देखकर बनाई गई उनकी जीवंत तस्वीर अनूठी और ख़ूबसूरत लग रही थी। ओड़िया परिवार की बहू फ़्रीडा हर्थ दास द्वारा बनाई गई वह दुर्लभ छवि, ओड़िशा माटी और ओड़िया जाति के साथ गाँधीजी के संबंधों का सर्वोत्तम स्नेहसिक्त संतक है।
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दास, फ़्रीडा हर्थ (1930। 2006) ए मैरिज टू इंडिया, प्रफुल्ल, जगतसिंहपुर, पृष्ठ 16
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दास, फ़्रीडा हर्थ (1930। 2006) ए मैरिज टू इंडिया, प्रफुल्ल, जगतसिंहपुर, पृष्ठ–171
संवाद
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- समर्पित
- कई सवालों के बीच महात्मा गाँधी
- गाँधी: एक अलीक योद्धा
- मोहनदास से महात्मा की यात्रा
- 1. गाँधीजी: सत्यधर्मी
- 2. मोहन दास से महात्मा गाँधी: चेतना के ऊर्ध्वगामी होने की यात्रा
- 3. सत्यधर्मी गाँधी: शताब्दी
- 4. गाँधीजी: अद्वितीय रचनाकार
- 5. “चलो, फुटबॉल खेलते हैं” : गांधीजी
- 6. सौ वर्ष में दो अनन्य घटनाएँ
- 7. महात्मा गाँधी की क़लम
- 8. गाँधीजी और डॉ. कालेनबेक: अध्यात्म-रज्जु पर चलने वाले दो पथिक
- 9. इज़राइल में गाँधी की दोस्ती का स्मृति-चिह्न
- 10. मंडेला की धरती पर भीम भोई एवं गाँधी जी
- 11. एक किताब का जादुई स्पर्श
- 12. गाँधीजी के तीन अचर्चित ओड़िया अनुयायी
- 13. लंडा देहुरी, फ़्रीडा और गाँधीजी
- 14. पार्वती गिरि: ‘बाएरी’ से ‘अग्नि-कन्या’
- 15. गाँधीजी के आध्यात्मिक शिष्य: विनोबा
- 16. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम: विदेशी संग्रामी
- 17. अँग्रेज़ पुलिस को पीटने वाली बरगढ़ की सेनानी बहू: देमती देई शबर
- 18. ‘विद्रोही घाटी' के सेनानी चन्द्रशेखर बेहेरा के घर गाँधी जी का रात्रि प्रवास
- 19. रग-रग में शौर्य:गाँधीजी के पैदल सैनिक और ग्यारह मूर्तियाँ
- 20. पल-दाढ़भाव और आमको-सिमको नरसंहार: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक अनन्य घटना
- 21. “राजकुमार क़ानून” और परिपक्व भारतीय लोकतंत्र
- 22. गंगाधर की “भारती भावना“: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सारस्वत आलेख
- 23 अंतिम जहलिया: जुहार
लेखक की कृतियाँ
- साहित्यिक आलेख
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- अमेरिकन जीवन-शैली को खंगालती कहानियाँ
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की ‘विज्ञान-वार्ता’
- आधी दुनिया के सवाल : जवाब हैं किसके पास?
- कुछ स्मृतियाँ: डॉ. दिनेश्वर प्रसाद जी के साथ
- गिरीश पंकज के प्रसिद्ध उपन्यास ‘एक गाय की आत्मकथा’ की यथार्थ गाथा
- डॉ. विमला भण्डारी का काव्य-संसार
- दुनिया की आधी आबादी को चुनौती देती हुई कविताएँ: प्रोफ़ेसर असीम रंजन पारही का कविता—संग्रह ‘पिताओं और पुत्रों की’
- धर्म के नाम पर ख़तरे में मानवता: ‘जेहादन एवम् अन्य कहानियाँ’
- प्रोफ़ेसर प्रभा पंत के बाल साहित्य से गुज़रते हुए . . .
- भारत के उत्तर से दक्षिण तक एकता के सूत्र तलाशता डॉ. नीता चौबीसा का यात्रा-वृत्तान्त: ‘सप्तरथी का प्रवास’
- रेत समाधि : कथानक, भाषा-शिल्प एवं अनुवाद
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- सोद्देश्यपरक दीर्घ कहानियों के प्रमुख स्तम्भ: श्री हरिचरण प्रकाश
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