गाँधी: महात्मा एवं सत्यधर्मी (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)
मोहनदास से महात्मा की यात्रा
साहित्यकारिता के प्रमुख हस्ताक्षर डॉ. सुधीर सक्सेना के संपादन में विगत दो दशकों से प्रकाशित हो रही राष्ट्रीय स्तरीय पत्रिका ‘दुनिया इन दिनों’ का अतिथि संपादकीय लिखना मेरे लिए अपने आप में गर्व और गौरव का विषय है। इस मासिक पत्रिका की पाठ्य सामग्री चाहे राजनीति हो, चाहे समाज-साहित्य-संस्कृति आदि की विधाएँ हो, उनमें नवीनता, मौलिकता, चित्र-कल्प और परिमार्जित भाषा-शैली में आकर्षक प्रस्तुतीकरण हिन्दी जगत के विपुल पाठकों को बाँधकर रखता है।
कोविड-काल के दौरान पाठकों का प्यार-स्नेह और श्रद्धा भाव देखते हुए भी भारी आर्थिक क्षति सहन करने के बावजूद भी पीडीएफ फॉर्मेंट में पत्रिका दीर्घ अवधि तक अपना योगदान देती रही, यह ‘दुनिया इन दिनों’ के प्रबंधन का समर्पण, लग्न, भाषायी प्रेम के साथ-साथ देश-प्रेम और देशसेवा का अनूठा संकल्प है। यही कारण है कि उनका हर अंक संग्रहणीय है।
इस अंक में विशेष प्रस्तुति है इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेशन, न्यू दिल्ली के प्रोफ़ेसर सुजीत पृषेठ के संबलपुरी और ओड़िया अख़बारों जैसे ‘संवाद’, ‘समाज’, ‘प्रतिलिपि’ आदि में ओड़िशा में गाँधी जी के अविस्मरणीय स्मृतियों और उनकी जीवनी के अनछुए पहलुओं को अक्षुण्ण रखने के लिए लिखे गए आलेखों को संगृहीत कर उनके हिंदी अनुवाद प्रकाशित होने का गौरव इस पत्रिका के माध्यम से मुझे मिला है। एक साधारण व्यक्ति किस तरह सत्य और अहिंसा जैसे आदर्श मानवीय मूल्यों को अपने जीवन में अपनाकर और आध्यात्मिक अग्नि में तपकर खरे सोने की तरह निखरकर महात्मा बनकर समाज के सामने आता है! आज जब नई पीढ़ी जब गाँधीजी के आदर्शों को भूलती जा रही है, राजनेता उनकी उपेक्षा कर रहे हैं, हमारे देश में जो उनका स्थान होना चाहिए, वह उन्हें नहीं दे रहे हैं, जहाँ उनकी मूर्ति लगानी चाहिए, वहाँ नहीं लगाकर सच में उनके मूल्यों को धूमिल और नज़रअंदाज़ करने का प्रयास कर रहे है। अपनी अंतरात्मा से पूछें कि क्या गाँधी-दर्शन को ताक पर रखकर विश्व-शान्ति की परिकल्पना की जा सकती है? नहीं, गाँधीजी जैसे विश्व महापुरुष चाहते थे कि मानव-मानव में प्रेम हो, धर्म-जाति-संप्रदाय से ऊपर उठकर अखिल विश्व में अमन, शान्ति और भाईचारे का व्यवहार हो, सभी धर्मों में समन्वय हो और किसी भी देश में सामरिक सामग्री का निर्माण न हो, परमाणु आयुध न बने, बल्कि निशस्त्रीकरण को महत्त्व दिया जाए। मगर आज उनकी बातों को कोई नहीं मानता, कोई नहीं सुनता। सम्पूर्ण वसुधा को अपना कुटुम्ब मानने वाले विश्व-बंधुत्व का संदेश देने वाले महापुरुष की जयंती पर हमें उनके व्यक्तित्व के हर मानवीय पहलू से गहरी पड़ताल के साथ बार-बार परिचित होने की ज़रूरत है, ताकि यह धरा भविष्य में भी फिर से दूसरे गाँधी को पैदा कर सके और आज जहाँ रूस-यूक्रेन में युद्ध हो रहा है, जहाँ चीन अपनी साम्राज्यवादी नीति में विस्तार कर रहा है और धर्म के नाम पर दुनिया भर में दंगे हो रहे हैं—सभी का निदान ‘गाँधीवाद’ में सन्निहित है। सारे ब्रह्मांड में शान्ति की कल्पना गाँधीवाद से ही की जा सकती है।
सन् 1893 की बात थी। एक भारतीय युवक वकालत पास कर लंदन से दक्षिण अफ़्रीका की यात्रा पर जा रहा था। जहाज़ में जाते-जाते वह काले बादलों से घिरे हुए आकाश की ओर देख रहा था और उसके मस्तिष्क में घूम रहे थे उन अनिश्चितताओं के भँवर, जो उसे सुदूर दक्षिण अफ़्रीका की विदेशी भूमि में झेलने पड़ेंगे। जब वह दक्षिण अफ़्रीका पहुँचे तो उनके मन की आशंका सही निकली और उन्हें सेंट पीटरमैरिट्जबर्ग रेलवे स्टेशन पर न केवल नस्लीय भेदभाव, बल्कि मानवीय अन्याय और क्रूर अत्याचार आदि का भी सामना करना पड़ा। यह दूसरी बात है कि उन्होंने दृढ़ विश्वास और साहस के साथ उन बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई। वह युवक और कोई नहीं, बल्कि मोहनदास करमचंद गाँधी थे।
नस्लीय-भेदभाव और अन्याय के ख़िलाफ़ सत्य, अहिंसा पर आधारित उनके संघर्ष ने उन्हें महात्मा गाँधी में बदल दिया था। साधारण व्यक्ति से महान आत्मा तक की ऐसी यात्रा मानव इतिहास और सभ्यता के इतिहास में अद्वितीय है।
महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व पर अल्बर्ट आइंस्टीन का कथन अद्वितीय है। उन्होंने कहा था कि, “भविष्य की पीढ़ियाँ शायद ही विश्वास कर पाएगी कि रक्त, मांस और मज्जा युक्त शरीर वाला ऐसा इंसान कभी इस पृथ्वी पर अवतरित हुआ था।” यह कथन अपने आप में पश्चिमी शिक्षा में प्रशिक्षित एक सरल स्वभाव वाले व्यक्ति के शुद्ध और महान आत्मा में अविश्वसनीय परिवर्तन की गाथा का प्रतीक है। परिवर्तन का आधार सत्य, करुणा और अहिंसा के शाश्वत सिद्धांतों के प्रति उनकी ईमानदार और दृढ़ प्रतिबद्धता थी।
बचपन से ही महात्मा गाँधी बहुत चंचल और अस्थिर रहते थे, यद्यपि वह साधारण और माता-पिता-से प्यार करने वाले और भगवान से डरने वाले लड़के थे। लेखक गोपालकृष्ण गाँधी ने अपनी किताब ‘मोहनदास करमचंद गाँधी: रेस्टलेस एज मर्करी’ (अलेफ, नई दिल्ली, 2020) में महात्मा गाँधी की बहन रालियात की राय को उद्धृत किया है कि “मोनिया (उनके परिवार के सदस्यों द्वारा उनके घर में महात्मा गाँधी का नाम) हमेशा पारे की तरह इधर-उधर हिलता-डुलता अस्थिर रहता था।” शिशु महात्मा गाँधी दुनिया को हिंसा, अन्याय और झूठ से मुक्त करने और देखने के लिए हर समय बेचैन रहते थे और इसके लिए उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन की आहुति दे दी।
डरबन की रेल यात्रा के दौरान मोहनदास करमचंद गाँधी के जीवन में एक ऐसी घटना घटी, जिसने उसे महात्मा गाँधी में बदल दिया, वह थी उनके मित्र द्वारा दी गई जॉन रस्किन की पुस्तक ‘अनटू दि लास्ट’ का गहन अध्ययन। उन्होंने उस पुस्तक के कड़ी मेहनत जैसे अनेक आदर्शों को आत्म-सात कर लिया और उन्हें आजीवन निभाने का दृढ़-संकल्प लिया।
दक्षिण अफ़्रीका में रहते समय गाँधीजी ने अहिंसा, सत्य आदि जैसे कुछ महान आदर्शों का व्यावहारिक तरीक़े से प्रयोग किया था। आदर्श जीवन जीते हुए उन आदर्शों को अनुभव करने के लिए उन्होंने फोनिक्स सेटलमेंट और टॉलस्टॉय फार्म की स्थापना की। उन्होंने उन महान आदर्शों को न केवल अपने जीवन में, बल्कि अखिल समाज में लागू करना शुरू कर दिया था। उन्होंने आध्यात्मिकता की गहरी अनुभूति के साथ-साथ कड़ी मेहनत पर आधारित सरल और संयमी जीवन जीने पर ज़ोर दिया।
गाँधीजी के जीवन में अनेक नए-नए मोड़ आए। सत्य और अहिंसा के प्रबल पैरोकार होने के नाते, आबादी के एक बड़े हिस्से को यह संदेश पहुँचाने के लिए वह तन-मन-धन से समर्पित हो गए थे। और इस हेतु काम आया उनका रचनात्मक लेखन। गाँधीजी की सरल लेखन शैली आम आदमी को प्रभावित करने वाले मुद्दों को उजागर करने में बहुत काम आई। साथ ही, उन्होंने सीधी-साधी सरल भाषा का अनोखे तरीक़े से प्रयोग किया। ‘यंग इंडिया’; ‘हरिजन’, ‘इंडियन ओपिनियन’ आदि कई पत्रिकाओं के संस्थापक होने का अनूठा गौरव गाँधीजी को जाता है। मोहनदास करमचंद गाँधी से महात्मा गाँधी तक की अद्भुत यात्रा इन्हीं पत्रिकाओं में साक्षीस्वरूप देखी जा सकती है। और यह यात्रा निश्चित रूप से उच्च चेतना के उत्थान की कहानी है।
बहुत कम लोग जानते है कि गाँधीजी ने दक्षिण अफ़्रीका में कुछ फुटबॉल क्लबों की स्थापना की थी, ‘पैसिव रेसिस्टर्स क्लब’ के नाम से। यह अज्ञात पहलू उनके अभूतपूर्व कल्पनाशील नेतृत्व को उजागर करता है, जिसने तत्कालीन जन-मानस पर गहरा प्रभाव डाला। उन्होंने रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में शारीरिक गतिविधियों, अनुशासन् और खेल भावना पर भी ज़ोर दिया। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि गाँधीजी इन सिद्धांतों पर सदैव अडिग रहे।
गाँधीजी की सशक्त व्यक्तिगत अपील थी, जिसने हेनरी पोलाक, मिली पोलक, डॉ. कालेनबैक, सीएफ एंड्रयूज को न केवल अपने अंतरंग मित्र बनाया, बल्कि उनके पक्के अनुयायी और समर्थक भी। वे उन कुछ सौभाग्यशाली लोगों में से थे, जिन्होंने कस्तूरबा गाँधी के अलावा मोहनदास करमचंद गाँधी से महात्मा गाँधी बनने तक सफ़र में अविश्वसनीय परिवर्तन देखे।
संक्षेप में कहा जाए, सरल मेहनती व्यक्ति से महात्मा बनने की यात्रा मानवता की पथप्रदर्शक यात्रा थी। गाँधीजी द्वारा अपनाए गए शाश्वत सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध रहकर दृढ़ संकल्प के माध्यम से इतिहास को बदला जा सकता है। और आज भी गाँधी जी की यह अपील हमेशा की तरह प्रासंगिक बनी हुई है।
महात्मा गाँधी के जीवन से जुड़े कई दुर्लभ और अज्ञात पहलुओं को ‘दुनिया इन दिनों’ के विशेष संस्करण को प्रकाशित करतेआशा ही नहीं, बल्कि पूर्ण विश्वास हैं कि ‘दुनिया इन दिनों’ का यह प्रयास नई पीढ़ी के जीवन में गाँधीजी के दर्शन को अपनाने के लिए प्रेरित करेगी।
दिनेश कुमार माली,
तालचेर, ओड़िशा
विषय सूची
- समर्पित
- कई सवालों के बीच महात्मा गाँधी
- गाँधी: एक अलीक योद्धा
- मोहनदास से महात्मा की यात्रा
- 1. गाँधीजी: सत्यधर्मी
- 2. मोहन दास से महात्मा गाँधी: चेतना के ऊर्ध्वगामी होने की यात्रा
- 3. सत्यधर्मी गाँधी: शताब्दी
- 4. गाँधीजी: अद्वितीय रचनाकार
- 5. “चलो, फुटबॉल खेलते हैं” : गांधीजी
- 6. सौ वर्ष में दो अनन्य घटनाएँ
- 7. महात्मा गाँधी की क़लम
- 8. गाँधीजी और डॉ. कालेनबेक: अध्यात्म-रज्जु पर चलने वाले दो पथिक
- 9. इज़राइल में गाँधी की दोस्ती का स्मृति-चिह्न
- 10. मंडेला की धरती पर भीम भोई एवं गाँधी जी
- 11. एक किताब का जादुई स्पर्श
- 12. गाँधीजी के तीन अचर्चित ओड़िया अनुयायी
- 13. लंडा देहुरी, फ़्रीडा और गाँधीजी
- 14. पार्वती गिरि: ‘बाएरी’ से ‘अग्नि-कन्या’
- 15. गाँधीजी के आध्यात्मिक शिष्य: विनोबा
- 16. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम: विदेशी संग्रामी
- 17. अँग्रेज़ पुलिस को पीटने वाली बरगढ़ की सेनानी बहू: देमती देई शबर
- 18. ‘विद्रोही घाटी' के सेनानी चन्द्रशेखर बेहेरा के घर गाँधी जी का रात्रि प्रवास
- 19. रग-रग में शौर्य:गाँधीजी के पैदल सैनिक और ग्यारह मूर्तियाँ
- 20. पल-दाढ़भाव और आमको-सिमको नरसंहार: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक अनन्य घटना
- 21. “राजकुमार क़ानून” और परिपक्व भारतीय लोकतंत्र
- 22. गंगाधर की “भारती भावना“: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सारस्वत आलेख
- 23 अंतिम जहलिया: जुहार
लेखक की कृतियाँ
- साहित्यिक आलेख
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- अमेरिकन जीवन-शैली को खंगालती कहानियाँ
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की ‘विज्ञान-वार्ता’
- आधी दुनिया के सवाल : जवाब हैं किसके पास?
- कुछ स्मृतियाँ: डॉ. दिनेश्वर प्रसाद जी के साथ
- गिरीश पंकज के प्रसिद्ध उपन्यास ‘एक गाय की आत्मकथा’ की यथार्थ गाथा
- डॉ. विमला भण्डारी का काव्य-संसार
- दुनिया की आधी आबादी को चुनौती देती हुई कविताएँ: प्रोफ़ेसर असीम रंजन पारही का कविता—संग्रह ‘पिताओं और पुत्रों की’
- धर्म के नाम पर ख़तरे में मानवता: ‘जेहादन एवम् अन्य कहानियाँ’
- प्रोफ़ेसर प्रभा पंत के बाल साहित्य से गुज़रते हुए . . .
- भारत के उत्तर से दक्षिण तक एकता के सूत्र तलाशता डॉ. नीता चौबीसा का यात्रा-वृत्तान्त: ‘सप्तरथी का प्रवास’
- रेत समाधि : कथानक, भाषा-शिल्प एवं अनुवाद
- वृत्तीय विवेचन ‘अथर्वा’ का
- सात समुंदर पार से तोतों के गणतांत्रिक देश की पड़ताल
- सोद्देश्यपरक दीर्घ कहानियों के प्रमुख स्तम्भ: श्री हरिचरण प्रकाश
- पुस्तक समीक्षा
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- उद्भ्रांत के पत्रों का संसार: ‘हम गवाह चिट्ठियों के उस सुनहरे दौर के’
- डॉ. आर.डी. सैनी का उपन्यास ‘प्रिय ओलिव’: जैव-मैत्री का अद्वितीय उदाहरण
- डॉ. आर.डी. सैनी के शैक्षिक-उपन्यास ‘किताब’ पर सम्यक दृष्टि
- नारी-विमर्श और नारी उद्यमिता के नए आयाम गढ़ता उपन्यास: ‘बेनज़ीर: दरिया किनारे का ख़्वाब’
- प्रवासी लेखक श्री सुमन कुमार घई के कहानी-संग्रह ‘वह लावारिस नहीं थी’ से गुज़रते हुए
- प्रोफ़ेसर नरेश भार्गव की ‘काक-दृष्टि’ पर एक दृष्टि
- वसुधैव कुटुंबकम् का नाद-घोष करती हुई कहानियाँ: प्रवासी कथाकार शैलजा सक्सेना का कहानी-संग्रह ‘लेबनान की वो रात और अन्य कहानियाँ’
- सपनें, कामुकता और पुरुषों के मनोविज्ञान की टोह लेता दिव्या माथुर का अद्यतन उपन्यास ‘तिलिस्म’
- बात-चीत
- ऐतिहासिक
- कार्यक्रम रिपोर्ट
- अनूदित कहानी
- अनूदित कविता
- यात्रा-संस्मरण
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- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 2
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