गाँधी: महात्मा एवं सत्यधर्मी (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)
1. गाँधीजी: सत्यधर्मी
ग्रीस का एथेंस।
सर्दी शुरू हो गई थी। जिसके कारण एथेंस शहर कोहरे की चादर से ढक गया था। इथा देखने के बाद, सूरज एथेंस शहर में आने में देर कर रहा था। एथेंस के बाहर, एक जेल के अंदर, अँधेरा बहलिया होकर बिखरा हुआ था। जेल की उस अँधेरी कोठरी के अंदर एक छेद से सूरज की किरणें और हवा आ-जा रही थी। लेकिन, उस दिन सूरज की किरणें और हवा दोनों थम-सी गई थी। अँधेरी कोठरी के अंदर, एक छोटा-सा दीपक सारी रात जल-जलकर बुझ रहा था। बाहर गहन अँधेरा और अंदर और भी घना अँधेरा देखजर एक वयस्क आदमी अपना हाथ अपनी घनी रोएँदार दाढ़ी पर रखकर मुस्कुराने लगा। हँसने का कारण यह था कि वह समझ गया था कि अज्ञानता, अंधविश्वास और अविश्वास ने समाज और मनुष्य के निजी जीवन को अंधकारमय कर दिया है। और उन सभी के विरुद्ध, वह छोटा दीपक सुबह होने तक अँधेरा दूर करने के लिए लड़ता रहा। और उसे भी इस लड़ाई में शामिल होना होगा। उन्हें अपनी शर्तों पर अडिग रहना होगा। क्योंकि लड़ने वाले अँधियारे पर उजाले से, अन्याय पर न्याय से और असत्य पर सत्य की विजय सुनिश्चित करनी होगी। वैसे लोग ही समाज को सही राह पर ले जायेंगे। वे लोग ही कहलाएँगे ‘सत्यधर्मी’।
इतनी बड़ी सैद्धान्तिक बात मोटी रोयेंदार दाढ़ी पर हाथ रखकर सुकरात ने समझ ली थी। वे ग्रीस के सबसे प्रसिद्ध दार्शनिक थे। वे स्वयं ‘सत्यधर्मी’ थे। वे एथेंस की अँधेरी कोठरी में निडरता से ताक रहे थे कि कब सुबह होगी और उन्हें ‘हेमलॉक’ नामक विष पीने के लिए दिया जाएगा। सुकरात को अपनी निर्भीक मान्यताओं और सच बोलने के लिए दंडित किया गया था। उन पर यह आरोप लगाया गया था कि सुकरात ग्रीस राष्ट्र के विरुद्ध अभियान चला रहे थे और यूनानी युवा समाज को ग़लत रास्ते पर ले जा रहे थे। तब सुकरात अपने मत, नीति और आदर्शों पर क़ायम रहे और ‘हेमलॉक’ ज़हर पीकर अपने प्राण त्याग कर ‘सत्यधर्मी’ हो गए।
सत्यधर्मी सुकरात ने अपने जीवन के बारे में कुछ नहीं लिखा है, लेकिन उनके शिष्य प्लेटो ने उनके विचारों और दर्शन को लिपिबद्ध किया। उनमें से ‘क्रिटो’ एक है, जिसे बोलचाल की शैली में लिखा गया था। प्लेटो के ‘क्रिटो’ में सुकरात और उनके घनिष्ठ मित्र ‘क्रिटो’ के बीच हो रही वार्तालाप का संग्रह है, जिसमें सुकरात ‘सत्यधर्मी’ पात्रों की विशेषताओं और उनकी ज़िम्मेदारियों के बारे में समझाते हैं। सुकरात के दर्शन पर प्लेटो ने ‘द अपोलॉजी’ लिखी। इन दो पुस्तकों ने एक और महामानव को बहुत प्रभावित किया, जिससे वे ‘सत्यधर्मी’ बन गये और उन्होंने मानव समाज और विश्व इतिहास को एक नए रास्ते की ओर ले गए।
वे थे एक और ‘सत्यधर्मी’, नाम था: महात्मा गाँधी। सत्य के प्रति उनके समर्पण और दृढ़ संकल्प के कारण, सामान्य मनुष्य मोहन दास करमचंद गाँधी असाधारण मनुष्य महात्मा गाँधी में बदल गए। 1893 में चले गए थे दक्षिण अफ़्रीका, 105 पाउंड की तनख़्वाह में। यदि वह विलासिता का जीवन जीना चाहता तो अधर्म और अनीति के विरुद्ध अहिंसात्मक ढंग से नहीं लड़ता। 1893 में वे स्वयं रंगभेद नीति का शिकार हुए। सेंट पीटरमार्टिज़बर्ग स्टेशन पर ट्रेन से जबरन फेंके जाने के बाद उन्होंने ख़ुद अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ने का संकल्प किया।
गाँधीजी ने 1896 में दक्षिण अफ़्रीका में तीन फुटबॉल क्लबों की स्थापना की थी! नाम दिया गया था ‘पैसिव रजिस्टर्स क्लब’। गाँधीजी ने फुटबॉल क्लबों और फुटबॉल खेलों के माध्यम से रंगभेद नीति के ख़िलाफ़ जनमत तैयार किया। दक्षिण अफ़्रीका के जोहान्सबर्ग, डरबन और प्रिटोरिया में फुटबॉल क्लब स्थापित करके गाँधीजी ने अन्याय और अराजकता के ख़िलाफ़ लड़ाई शुरू की।
1904 में, जोहान्सबर्ग-डरबन ट्रेन में यात्रा करते समय, गाँधीजी को हेनरी पोलक द्वारा भेंट की गई ‘अन टू द लास्ट’ नामक पुस्तक पढ़ने का मौक़ा मिला था। उस पुस्तक के लेखक थे, जॉन रस्किन। इस पुस्तक में ‘शारीरिक श्रम का मूल्य’ और ‘समाज का सामूहिक विकास और व्यक्ति का विकास’ आदि के सिद्धांत शामिल थे। गाँधीजी ने ट्रेन में यात्रा के दौरान इन आदर्शों को अपने जीवन में लागू करने का निर्णय लिया। बाद में गाँधीजी ने इस पुस्तक का गुजराती भाषा में अनुवाद किया और जिसका शीर्षक रखा ‘सर्वोदय’।
गाँधीजी ने अपने जीवन में श्रम के मूल्य, नैतिकता, अहिंसा और सत्य के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को प्राथमिकता दी और बन गये ‘सत्यधर्मी’। इसके व्यावहारिक अनुप्रयोग के लिए दक्षिण अफ़्रीका में गाँधी जी ने ‘फीनिक्स बस्ती’ का निर्माण किया। ‘फीनिक्स’ एक चिड़िया का नाम है, जिसकी मृत्यु नज़दीक जानकर सूर्य की ओर उड़ता है। सूरज की किरणों से झुलस कर वह राख होकर नीचे गिर जाता है। और उस राख से नई ‘फीनिक्स’ चिड़िया का जन्म होता हैं। ‘फीनिक्स’ शब्द का अर्थ मृत्यु के ऊपर जीवन से लिया जाता है। असत्य पर सत्य और अन्याय पर न्याय चिरन्तन एवं शाश्वत विजय का प्रतीक है। गाँधीजी ने हिंसा पर अहिंसा को और असत्य पर सत्य की विजय शाश्वत एवं चिरंतन समझा। और इसी वजह से दक्षिण अफ़्रीका में उन्होंने अपने पहले आश्रम का नाम ‘फीनिक्स सेटलमेंट' रखा।
सन् 1893 से 1914 तक 21 वर्ष तक दक्षिण अफ़्रीका में रहने के बाद गाँधीजी भारत लौट आये। 1914 के सात साल बाद 1921 में उन्होंने अपनी पत्रिका ‘यंग इंडिया’ में तीन लेख लिखे। इस वजह से ब्रिटिश सरकार ने गाँधीजी को राजद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया।
1922 में गाँधीजी पर अहमदाबाद में मुक़द्दमा चला और गाँधीजी ने स्वयं न्यायाधीश के सामने अपनी दलीलें पेश कीं। गाँधीजी ने 100 मिनट तक बहस की और अपने तर्क में उन्होंने सतधर्मी सुकरात की कहानी और असत्य पर सत्य की शाश्वत जीत का उल्लेख किया। गाँधीजी द्वारा अपने तर्क रखने के बाद कोर्ट में एक घटना घटी। कवयित्री सरोजिनी नायडू अदालत कक्ष में थीं। उनके सुंदर शब्दों में, “गाँधीजी के तर्क रखने के कोर्ट में नीरवता छा गई थी। गाँधीजी के चेहरे पर दिव्य आभा झलक रही थी और गाँधीजी के अपनी जगह पर बैठने के बाद, पूरा कोर्ट उनके सम्मान में खड़ा हो गया था क्योंकि गाँधीजी ‘सत्यधर्मी’ के रूप में उभरे थे।”
2021 और 2022 में गाँधीजी की ‘सत्यधर्मिता’ पर आधारित दो बहुचर्चित पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। एक है प्रोफ़ेसर रामचन्द्र गुहा की “रिबेल्स अगेंस्ट द राज” और दूसरी है गोपालकृष्ण गाँधी की “गाँधी: रेस्टलेस ऐज़ मर्करी।”
1922 से 2022 तक सौ साल हो गए, जब गाँधीजी को ‘देशद्रोह’ के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था और गिरफ़्तारी के बाद उन्होंने अपने तर्कों के आधार पर ‘सत्यधर्मी’ होने के घटना के सौ साल पूरे हो गए। हिंसा पर अहिंसा, अन्याय पर न्याय और असत्य पर सत्य की जीत होगी, गाँधीजी के इस अडिग विश्वास ने मानव समाज और दुनिया के सम्मुख और अधिक प्रासंगिक बना दिया है।
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- समर्पित
- कई सवालों के बीच महात्मा गाँधी
- गाँधी: एक अलीक योद्धा
- मोहनदास से महात्मा की यात्रा
- 1. गाँधीजी: सत्यधर्मी
- 2. मोहन दास से महात्मा गाँधी: चेतना के ऊर्ध्वगामी होने की यात्रा
- 3. सत्यधर्मी गाँधी: शताब्दी
- 4. गाँधीजी: अद्वितीय रचनाकार
- 5. “चलो, फुटबॉल खेलते हैं” : गांधीजी
- 6. सौ वर्ष में दो अनन्य घटनाएँ
- 7. महात्मा गाँधी की क़लम
- 8. गाँधीजी और डॉ. कालेनबेक: अध्यात्म-रज्जु पर चलने वाले दो पथिक
- 9. इज़राइल में गाँधी की दोस्ती का स्मृति-चिह्न
- 10. मंडेला की धरती पर भीम भोई एवं गाँधी जी
- 11. एक किताब का जादुई स्पर्श
- 12. गाँधीजी के तीन अचर्चित ओड़िया अनुयायी
- 13. लंडा देहुरी, फ़्रीडा और गाँधीजी
- 14. पार्वती गिरि: ‘बाएरी’ से ‘अग्नि-कन्या’
- 15. गाँधीजी के आध्यात्मिक शिष्य: विनोबा
- 16. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम: विदेशी संग्रामी
- 17. अँग्रेज़ पुलिस को पीटने वाली बरगढ़ की सेनानी बहू: देमती देई शबर
- 18. ‘विद्रोही घाटी' के सेनानी चन्द्रशेखर बेहेरा के घर गाँधी जी का रात्रि प्रवास
- 19. रग-रग में शौर्य:गाँधीजी के पैदल सैनिक और ग्यारह मूर्तियाँ
- 20. पल-दाढ़भाव और आमको-सिमको नरसंहार: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक अनन्य घटना
- 21. “राजकुमार क़ानून” और परिपक्व भारतीय लोकतंत्र
- 22. गंगाधर की “भारती भावना“: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सारस्वत आलेख
- 23 अंतिम जहलिया: जुहार
लेखक की कृतियाँ
- साहित्यिक आलेख
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- अमेरिकन जीवन-शैली को खंगालती कहानियाँ
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की ‘विज्ञान-वार्ता’
- आधी दुनिया के सवाल : जवाब हैं किसके पास?
- कुछ स्मृतियाँ: डॉ. दिनेश्वर प्रसाद जी के साथ
- गिरीश पंकज के प्रसिद्ध उपन्यास ‘एक गाय की आत्मकथा’ की यथार्थ गाथा
- डॉ. विमला भण्डारी का काव्य-संसार
- दुनिया की आधी आबादी को चुनौती देती हुई कविताएँ: प्रोफ़ेसर असीम रंजन पारही का कविता—संग्रह ‘पिताओं और पुत्रों की’
- धर्म के नाम पर ख़तरे में मानवता: ‘जेहादन एवम् अन्य कहानियाँ’
- प्रोफ़ेसर प्रभा पंत के बाल साहित्य से गुज़रते हुए . . .
- भारत के उत्तर से दक्षिण तक एकता के सूत्र तलाशता डॉ. नीता चौबीसा का यात्रा-वृत्तान्त: ‘सप्तरथी का प्रवास’
- रेत समाधि : कथानक, भाषा-शिल्प एवं अनुवाद
- वृत्तीय विवेचन ‘अथर्वा’ का
- सात समुंदर पार से तोतों के गणतांत्रिक देश की पड़ताल
- सोद्देश्यपरक दीर्घ कहानियों के प्रमुख स्तम्भ: श्री हरिचरण प्रकाश
- पुस्तक समीक्षा
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- डॉ. आर.डी. सैनी का उपन्यास ‘प्रिय ओलिव’: जैव-मैत्री का अद्वितीय उदाहरण
- डॉ. आर.डी. सैनी के शैक्षिक-उपन्यास ‘किताब’ पर सम्यक दृष्टि
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