गाँधी: महात्मा एवं सत्यधर्मी (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)
कई सवालों के बीच महात्मा गाँधी
यह सवाल कई बार ख़ुद से पूछता हूँ: गाँधी हमारे पीछे पड़े हैं या हम उनके पीछे पड़े हैं? जवाब हर बार एक ही मिलता है: गाँधी का तो वे जानें, हम जानते हैं कि गाँधी के बिना न हमारा काम चलता है, न दुनिया का! इसलिए हम उनके पीछे पड़े हैं।
रास्ता जितना बेढब होता जाता है, अँधेरा जितना बढ़ता जाता है और एक-दूसरे को दबाते-छोड़ते-धकेलते-मारते आगे बढ़ने की अंधी दौड़ में हम जितनी तेज़ी से दौड़ते जाते हैं, उतना ही यह अहसास तीखा होता जाता है कि हम दौड़ तो रहे हैं लेकिन कहीं पहुँच नहीं रहे हैं! दुनिया भर के इंसान यदि क़दमताल कर रहे होते तो हम इसकी अनदेखी कर जाते, क्योंकि क़दमताल में ख़तरा नहीं होता है। बहुत होता है तो क़दमताल करने वालों के पाँव थकते हैं व पाँव के नीचे की घास कुचली जाती है। लेकिन यहाँ तो हर कोई दूसरे के कंधों पर पाँव रख कर आगे निकलने की आपाधापी में लगा है। इसलिए कोई संतुलन खो कर घायल हो रहा है, कोई अपना टूटा कंधा ले कर रो रहा है। सभी लुट भी रहे हैं और लूट भी रहे हैं। सभी घायल हैं, सभी तकलीफ़ में हैं। गाँधी कहते हैं: आँख के बदले आँख का यह दर्शन सारी दुनिया को अंधा बना देगा! तो क्या करें? गाँधी कहते हैं कि सारी दुनिया अंधी न हो जाए, इसके लिए चाहिए हमें फ़क़त एक आदमी: एक वह जो भीड़ से बाहर निकले और कहे कि मैं अपनी या अपनों की आँख के बदले किसी की आँख नहीं लूँगा! ऐसा कहने वाला एक वीर ही सारी मानवता की आँखें बचा लेगा!
सभ्यता के इतिहास में गाँधी वही ‘एक आदमी’ हैं—आँखें खोल कर इंसान को देखने-आँकने, सँभालने-प्यार करने वाला एक आदमी जिसके बारे में आइंस्टाइन को भरोसा नहीं है कि उस जैसा कोई हुआ होगा, इस पर आनेवाली दुनिया भरोसा करेगी। हम भी कहाँ करते हैं भरोसा कि कोई राम जैसा कि कोई कृष्ण जैसा इंसान धरती पर हुआ होगा! हम उनके नाम पर धरती बाँट कर मंदिर आदि बनाना ज़रूर चाहते हैं, धरती बनाना नहीं चाहते। गाँधी धरती बनाना चाहते हैं, इसलिए इंसान से छोटा कोई आदमी, कोई दर्शन, कोई धर्म, कोई मतवाद, कोई ग्रंथ उनके काम का नहीं है। प्रख्यात साहित्यकार स्व. निर्मल वर्मा इसे पहचान पाते हैं तो इस तरह लिखते हैं: “जब मैं गाँधीजी के बारे में सोचता हूँ, तो कौन-सी चीज़ सबसे पहले ध्यान में आती है? लौ जैसी कोई चीज़, अँधेरे में सफ़ेद, न्यूनतम जगह घेरती हुई, निष्कंप और स्थिर; इतनी स्थिर कि वह जल रही है इसका पता ही नहीं चलता। मोमबत्ती जल रही है, लेकिन लौ? मैं जब कभी उनका चित्र देखता हूँ तो मुझे अपनी हर चीज़ भारी व बोझ-लदी जान पड़ती है। अपने कपड़े, अपनी देह की मांस-मज्जा, अपनी आत्मा भी। और सबसे ज़्यादा अपना अब तक का सब लिखा हुआ।”
यह हो कर भी नहीं होना; लेकिन किसी ज़बर्दस्त शक्ति की भूमिका में हर जगह उपस्थित रहना गाँधी होने का मतलब है। यह किताब गाँधी का यही स्वरूप समेटती है। हिंदी-ओड़िया के लेखक-अनुवादक दिनेश कुमार माली की यह अनोखी उपलब्धि है। उनके ही मन में ही यह बात उगी कि गाँधीजी की जैसी छवि ओड़िया अख़बारों में प्रोफ़ेसर सुजित कुमार पृषेठ की लेखनी व संपादकीय संकलनों से बनी है, उसे हिंदी के विशाल-पाठकों तक पहुँचाया जाए। हिंदी के प्रख्यात कवि, लेखक, पत्रकार और संपादक डॉ. सुधीर सक्सेना की राष्ट्रीय पत्रिका ‘दुनिया इन दिनों’ इसका माध्यम बनी। अक्तूबर 2022 में ‘दुनिया इन दिनों’ ने अपना पूरा एक अंक ही दिनेशजी के माध्यम से प्रकाशित किया। यह किताब उसी अंक में प्रकाशित सामग्री से बनी है। यह गाँधी को नये सिरे से पहचानने की कोशिश है। हमें जब-जब गाँधी की ज़रूरत होती है, हम उन्हें खोज लेते हैं। जब अँधेरा बहुत घना होता है तब यह खोज ज़्यादा ज़रूरी हो जाती है। हम यह भी देखते ही आ रहे हैं कि जब खोजते हैं तो गाँधी ऐसी सहजता से मिल जाते हैं कि मानो कहीं गए ही नहीं थे। वह अंक और यह किताब इसकी गवाही देते हैं।
मेरी तीव्र अभिलाषा है कि इस किताब का हर पाठक गाँधी को पहचानने व पाने के लिए यहाँ से शुरू कर, अपनी आगे की यात्रा करे। यह ज़रूरी है। बिना यात्रा किए न मंज़िल मिलती है, न गाँधी! इस खोज-यात्रा के लिए मेरी मंगलकामना।
कुमार प्रशांत
अध्यक्ष, गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान
नई दिल्ली: 30 अक्तूबर 2023
विषय सूची
- समर्पित
- कई सवालों के बीच महात्मा गाँधी
- गाँधी: एक अलीक योद्धा
- मोहनदास से महात्मा की यात्रा
- 1. गाँधीजी: सत्यधर्मी
- 2. मोहन दास से महात्मा गाँधी: चेतना के ऊर्ध्वगामी होने की यात्रा
- 3. सत्यधर्मी गाँधी: शताब्दी
- 4. गाँधीजी: अद्वितीय रचनाकार
- 5. “चलो, फुटबॉल खेलते हैं” : गांधीजी
- 6. सौ वर्ष में दो अनन्य घटनाएँ
- 7. महात्मा गाँधी की क़लम
- 8. गाँधीजी और डॉ. कालेनबेक: अध्यात्म-रज्जु पर चलने वाले दो पथिक
- 9. इज़राइल में गाँधी की दोस्ती का स्मृति-चिह्न
- 10. मंडेला की धरती पर भीम भोई एवं गाँधी जी
- 11. एक किताब का जादुई स्पर्श
- 12. गाँधीजी के तीन अचर्चित ओड़िया अनुयायी
- 13. लंडा देहुरी, फ़्रीडा और गाँधीजी
- 14. पार्वती गिरि: ‘बाएरी’ से ‘अग्नि-कन्या’
- 15. गाँधीजी के आध्यात्मिक शिष्य: विनोबा
- 16. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम: विदेशी संग्रामी
- 17. अँग्रेज़ पुलिस को पीटने वाली बरगढ़ की सेनानी बहू: देमती देई शबर
- 18. ‘विद्रोही घाटी' के सेनानी चन्द्रशेखर बेहेरा के घर गाँधी जी का रात्रि प्रवास
- 19. रग-रग में शौर्य:गाँधीजी के पैदल सैनिक और ग्यारह मूर्तियाँ
- 20. पल-दाढ़भाव और आमको-सिमको नरसंहार: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक अनन्य घटना
- 21. “राजकुमार क़ानून” और परिपक्व भारतीय लोकतंत्र
- 22. गंगाधर की “भारती भावना“: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सारस्वत आलेख
- 23 अंतिम जहलिया: जुहार
लेखक की कृतियाँ
- साहित्यिक आलेख
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- अमेरिकन जीवन-शैली को खंगालती कहानियाँ
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की ‘विज्ञान-वार्ता’
- आधी दुनिया के सवाल : जवाब हैं किसके पास?
- कुछ स्मृतियाँ: डॉ. दिनेश्वर प्रसाद जी के साथ
- गिरीश पंकज के प्रसिद्ध उपन्यास ‘एक गाय की आत्मकथा’ की यथार्थ गाथा
- डॉ. विमला भण्डारी का काव्य-संसार
- दुनिया की आधी आबादी को चुनौती देती हुई कविताएँ: प्रोफ़ेसर असीम रंजन पारही का कविता—संग्रह ‘पिताओं और पुत्रों की’
- धर्म के नाम पर ख़तरे में मानवता: ‘जेहादन एवम् अन्य कहानियाँ’
- प्रोफ़ेसर प्रभा पंत के बाल साहित्य से गुज़रते हुए . . .
- भारत के उत्तर से दक्षिण तक एकता के सूत्र तलाशता डॉ. नीता चौबीसा का यात्रा-वृत्तान्त: ‘सप्तरथी का प्रवास’
- रेत समाधि : कथानक, भाषा-शिल्प एवं अनुवाद
- वृत्तीय विवेचन ‘अथर्वा’ का
- सात समुंदर पार से तोतों के गणतांत्रिक देश की पड़ताल
- सोद्देश्यपरक दीर्घ कहानियों के प्रमुख स्तम्भ: श्री हरिचरण प्रकाश
- पुस्तक समीक्षा
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- उद्भ्रांत के पत्रों का संसार: ‘हम गवाह चिट्ठियों के उस सुनहरे दौर के’
- डॉ. आर.डी. सैनी का उपन्यास ‘प्रिय ओलिव’: जैव-मैत्री का अद्वितीय उदाहरण
- डॉ. आर.डी. सैनी के शैक्षिक-उपन्यास ‘किताब’ पर सम्यक दृष्टि
- नारी-विमर्श और नारी उद्यमिता के नए आयाम गढ़ता उपन्यास: ‘बेनज़ीर: दरिया किनारे का ख़्वाब’
- प्रवासी लेखक श्री सुमन कुमार घई के कहानी-संग्रह ‘वह लावारिस नहीं थी’ से गुज़रते हुए
- प्रोफ़ेसर नरेश भार्गव की ‘काक-दृष्टि’ पर एक दृष्टि
- वसुधैव कुटुंबकम् का नाद-घोष करती हुई कहानियाँ: प्रवासी कथाकार शैलजा सक्सेना का कहानी-संग्रह ‘लेबनान की वो रात और अन्य कहानियाँ’
- सपनें, कामुकता और पुरुषों के मनोविज्ञान की टोह लेता दिव्या माथुर का अद्यतन उपन्यास ‘तिलिस्म’
- बात-चीत
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- अनूदित कहानी
- अनूदित कविता
- यात्रा-संस्मरण
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- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 2
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 3
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 4
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 5
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 1
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