गाँधी: महात्मा एवं सत्यधर्मी (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)
10. मंडेला की धरती पर भीम भोई एवं गाँधी जी
सितंबर 2021, पूरी दुनिया में कोरोना महामारी से वर्ष बर्बाद होने के बाद हर किसी के मन में कुछ उम्मीद जगी। हालाँकि, यह समय सभी से प्रश्न पूछ रहा था। यह वह था, मनुष्य समाज किस ओर जा रहा है? लैटिन में एक मुहावरा है Quo VADIS? जिसका अर्थ है ‘हम कहाँ जा रहे है? हमारी यात्रा किस ओर हो रही है?’ महामारी के कारण दुर्दशा और महामारी के कारण मृत्यु विभीषिका को आँखों के सामने देखकर सभी को लगा कि यह प्रश्न बहुत प्रासंगिक है।
सितंबर 21, आज विश्व शान्ति दिवस है। दक्षिण अफ़्रीका के डरबन में स्थित भारत के महावाणिज्य दूतावास के कार्यालय से शाम के समय ‘प्रेम और करुणा की परंपरा’ पर भाषण देने के लिए मुझे निमंत्रण मिला। उस ऑनलाइन सम्मेलन में दक्षिण अफ़्रीका के कुछ वक्ता होंगे। निमंत्रण पाकर मेरे मन में ख़ुशी की लहर दौड़ने लगी। तभी याद आने लगी मुझे संत कवि भीमभोई शाश्वत अमर पंक्तियाँ: ‘प्राणीक आर्त्त दुख अपरिमित, देखू देखू केवा सहू, मो जीवन पछे नरक पड़िथाऊ जगत उद्धार हेऊ।’
मेरे मन में ख़्याल आया कि मंडेला की धरती दक्षिण अफ़्रीकी में संत कवि भीमभोई का संदेश पहुँचाने का ऐतिहासिक अवसर आ गया है। प्रेम और करुणा की एक अनूठी परंपरा में एक और कवि का नाम सामने आया, वह थे आदिकवि वाल्मीकि।
एक दिन उन्होंने देखा कि तमसा नदी के किनारे एक शबर के तीर से नर क्रोंच पक्षी की मृत्यु हो गई थी और उसकी लाश पर मादा क्रोंच पक्षी विलाप कर रही थी। यह देखकर ऋषि वाल्मीकि के मुँह से अनायास ही निकल पड़ाः “मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम्” इस श्लोक का अर्थ है: हे निषाद, तुम अनंत वर्षों तक प्रतिष्ठा प्राप्त न कर सको, क्योंकि तुमने क्रौंच पक्षियों के जोड़े में से कामभावना से ग्रस्त एक का वध कर डाला है।”
यह पद मनुष्य समाज की पहली रचना थी और इसमें मनुष्य का जितना आवेग भरा हुआ था, उतना ही मनुष्य की संवेदना, करुणा को भी उजागर करता है।
जो किसी और का दर्द समझ पाता है और अपने हृदय में महसूस कर पाता है वही मनुष्य है। भारतीय दर्शन, भारतीय सभ्यता मानवता के इसी महान पहलू से संचालित होती रही है। यह शाश्वत चिंतन भारत की सांस्कृतिक पहचान कराने के साथ-साथ पृथ्वी के समस्त मनुष्यों को सही रास्ता दिखाता रहा है। परवर्ती काल में इन महान विचारों और चेतना का प्रचार किया और लोकाभिमुखी बनाया गौतम बुद्ध ने, अपने उपदेशों के द्वारा। वह करुणा, प्रेम और अहिंसा की प्रतिमूर्ति थे। गौतम बुद्ध के चेहरे पर आप असीम शान्ति, करुणा और प्रेम के उज्ज्वल भाव को अनंत रूप से चमकते हुए देख सकते हैं।
दया नदी के किनारे कलिंग युद्ध के बाद युद्ध के नशे में मशग़ूल राजा अशोक के हिंसा के उन्माद को मृतकों के छाती फटने वाला क्रंदन और हॄदय विदारक विलाप ने मानसिक तौर पर अस्थिर कर दिया था। गौतम बुद्ध की करुणा, प्रेम की वार्ता ने हिंसा के पुजारी अशोक को शान्तिदूत में परिवर्तित कर दिया था।
आधुनिक काल में मनुष्य की संवेदना, दूसरों के दुख को हल्का करने की चिंता और प्रयास की ज़िम्मेदारी को उठाया महात्मा गाँधी ने। गाँधीजी के पसंदीदा भजन की पंक्तियाँ थीं गुजराती कवि नरसी मेहता द्वारा लिखी गई: ‘वैष्णव जन तो तेनो कहियो, जो पीर परायी जाने रे . . .’ इसका का मतलब है, जो दूसरों के दुख को महसूस कर सकते हैं, वे भगवान के लोग हैं। गाँधी जी ने महान चेतना को व्यवहारिक रूप दिया। गाँधी जी के दिखाए इस रास्ते को आगे बढ़ाया अमेरिका के मार्टिन लूथर किंग और दक्षिण अफ़्रीका में नेल्सन मंडेला ने। मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला दोनों ने अन्याय, उत्पीड़न और हिंसा के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ते हुए समाज पर मानवता की अमिट छाप छोड़ी। दक्षिण अफ़्रीकी की धरती पर मोहनदास करमचंद गाँधी, महात्मा गाँधी बन गये। यह थी उनकी महान चेतना को उर्ध्वगामी बनाने की प्रक्रिया, जिसकी पृष्ठभूमि में अहिंसा, प्रेम और करुणा की बलवती परंपरा थी। 2021 के सितंबर महीने में, दक्षिण अफ़्रीकी सरकार और भारत सरकार के संयुक्त प्रयास से ओड़िशा संतकवि भीमभोई के अमर चिंतन को दक्षिण अफ़्रीका की धरती पर पहुँचाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया था। मेरे मन में कृतज्ञ भाव पैदा हुए कि एक ऐतिहासिक दायित्व को भलीभाँति निभा पाया।
जब-जब मानव समाज पर कोई विपदा आएगी और समाधान के लिए आगे कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा होगा, उस समय भारतीय सभ्यता और संस्कृति की शाश्वत चेतना-प्रेम, करुणा, संवेदना आदि एक-एककर उज्ज्वल आलोक बिंदु के रूप में मानव समाज को सही रास्ता दिखाता रहेगा।
<< पीछे : 9. इज़राइल में गाँधी की दोस्ती… आगे : 11. एक किताब का जादुई स्पर्श >>विषय सूची
- समर्पित
- कई सवालों के बीच महात्मा गाँधी
- गाँधी: एक अलीक योद्धा
- मोहनदास से महात्मा की यात्रा
- 1. गाँधीजी: सत्यधर्मी
- 2. मोहन दास से महात्मा गाँधी: चेतना के ऊर्ध्वगामी होने की यात्रा
- 3. सत्यधर्मी गाँधी: शताब्दी
- 4. गाँधीजी: अद्वितीय रचनाकार
- 5. “चलो, फुटबॉल खेलते हैं” : गांधीजी
- 6. सौ वर्ष में दो अनन्य घटनाएँ
- 7. महात्मा गाँधी की क़लम
- 8. गाँधीजी और डॉ. कालेनबेक: अध्यात्म-रज्जु पर चलने वाले दो पथिक
- 9. इज़राइल में गाँधी की दोस्ती का स्मृति-चिह्न
- 10. मंडेला की धरती पर भीम भोई एवं गाँधी जी
- 11. एक किताब का जादुई स्पर्श
- 12. गाँधीजी के तीन अचर्चित ओड़िया अनुयायी
- 13. लंडा देहुरी, फ़्रीडा और गाँधीजी
- 14. पार्वती गिरि: ‘बाएरी’ से ‘अग्नि-कन्या’
- 15. गाँधीजी के आध्यात्मिक शिष्य: विनोबा
- 16. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम: विदेशी संग्रामी
- 17. अँग्रेज़ पुलिस को पीटने वाली बरगढ़ की सेनानी बहू: देमती देई शबर
- 18. ‘विद्रोही घाटी' के सेनानी चन्द्रशेखर बेहेरा के घर गाँधी जी का रात्रि प्रवास
- 19. रग-रग में शौर्य:गाँधीजी के पैदल सैनिक और ग्यारह मूर्तियाँ
- 20. पल-दाढ़भाव और आमको-सिमको नरसंहार: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक अनन्य घटना
- 21. “राजकुमार क़ानून” और परिपक्व भारतीय लोकतंत्र
- 22. गंगाधर की “भारती भावना“: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सारस्वत आलेख
- 23 अंतिम जहलिया: जुहार
लेखक की कृतियाँ
- साहित्यिक आलेख
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- अमेरिकन जीवन-शैली को खंगालती कहानियाँ
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की ‘विज्ञान-वार्ता’
- आधी दुनिया के सवाल : जवाब हैं किसके पास?
- कुछ स्मृतियाँ: डॉ. दिनेश्वर प्रसाद जी के साथ
- गिरीश पंकज के प्रसिद्ध उपन्यास ‘एक गाय की आत्मकथा’ की यथार्थ गाथा
- डॉ. विमला भण्डारी का काव्य-संसार
- दुनिया की आधी आबादी को चुनौती देती हुई कविताएँ: प्रोफ़ेसर असीम रंजन पारही का कविता—संग्रह ‘पिताओं और पुत्रों की’
- धर्म के नाम पर ख़तरे में मानवता: ‘जेहादन एवम् अन्य कहानियाँ’
- प्रोफ़ेसर प्रभा पंत के बाल साहित्य से गुज़रते हुए . . .
- भारत के उत्तर से दक्षिण तक एकता के सूत्र तलाशता डॉ. नीता चौबीसा का यात्रा-वृत्तान्त: ‘सप्तरथी का प्रवास’
- रेत समाधि : कथानक, भाषा-शिल्प एवं अनुवाद
- वृत्तीय विवेचन ‘अथर्वा’ का
- सात समुंदर पार से तोतों के गणतांत्रिक देश की पड़ताल
- सोद्देश्यपरक दीर्घ कहानियों के प्रमुख स्तम्भ: श्री हरिचरण प्रकाश
- पुस्तक समीक्षा
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- उद्भ्रांत के पत्रों का संसार: ‘हम गवाह चिट्ठियों के उस सुनहरे दौर के’
- डॉ. आर.डी. सैनी का उपन्यास ‘प्रिय ओलिव’: जैव-मैत्री का अद्वितीय उदाहरण
- डॉ. आर.डी. सैनी के शैक्षिक-उपन्यास ‘किताब’ पर सम्यक दृष्टि
- नारी-विमर्श और नारी उद्यमिता के नए आयाम गढ़ता उपन्यास: ‘बेनज़ीर: दरिया किनारे का ख़्वाब’
- प्रवासी लेखक श्री सुमन कुमार घई के कहानी-संग्रह ‘वह लावारिस नहीं थी’ से गुज़रते हुए
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- सपनें, कामुकता और पुरुषों के मनोविज्ञान की टोह लेता दिव्या माथुर का अद्यतन उपन्यास ‘तिलिस्म’
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- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 2
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 3
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