गाँधी: महात्मा एवं सत्यधर्मी

गाँधी: महात्मा एवं सत्यधर्मी  (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)

4. गाँधीजी: अद्वितीय रचनाकार

 

सन्‌ 1893। 

भारतीय सार्वजनिक जीवन, राजनीति और आध्यात्मिक चिंतन का एक अविस्मरणीय वर्ष। 1893 में अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद के संबोधन ने भारत को पूरी दुनिया से परिचित कराकर एक नूतन रूप प्रदान किया था। एक प्रसिद्ध साधक और ‘योगी का आत्मकथा’ पुस्तक के लेखक श्री योगानंद परमहंस सन्‌ 1893 में भूमिष्ठ हुए थे। 

इसके अलावा, सन्‌ 1893 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक और विद्वान योगी, कालजयी महाकाव्य ‘सावित्री’ के लेखक श्री अरविंद भारत लौट आए और उनकी रचनाधर्मिता और आध्यात्मिक चिंतन याद आने लगता है। इससे भी बढ़कर, सन्‌ 1893 में गुजरात के एक चौबीस वर्षीय युवक मोहनदास करमचंद गाँधी ने दक्षिण अफ़्रीका की अपनी यात्रा पर रवाना हुए थे। उस यात्रा को स्थूल दृष्टि से एक साधारण यात्रा के रूप में देखा जा सकता है। लेकिन दूसरे दृष्टिकोण से वह यात्रा मोहन दास करमचंद गाँधी से महात्मा गाँधी में तब्दील होने की एक असाधारण, अलौकिक और ऐतिहासिक यात्रा थी। 

गाँधीजी के दक्षिण अफ़्रीका के प्रवास के दौरान उनकी हेनरी पोल्क नामक एक व्यक्ति के साथ गहरी दोस्ती हो गई थी। एक बार गाँधी अपने कुछ काम के लिए जोहान्सबर्ग से डरबन रेल से यात्रा कर रहे थे। हेनरी पोल्क अपने मित्र गाँधी को विदा करने के लिए रेलवे स्टेशन तक गए थे। अलविदा करते समय उन्होंने गाँधी जी को जॉन रस्किन की पुस्तक ‘ऑन टू दिस लास्ट’ भेंट की थी। गाँधीजी उस किताब से बहुत प्रभावित हुए थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ’ के एक परिच्छेद में ‘द मैजिक स्पेल ऑफ़ ए बुक’ में रस्किन की महान रचना के प्रभाव का वर्णन किया है। गाँधीजी के शब्दों में “इस किताब पढ़ने के बाद उसे दूर रखना नामुमकिन था। किताब ने मुझे पूरी तरह से अपने आग़ोश में ले लिया था। जोहान्सबर्ग से डरबन जाने के लिए रेल में चौबीस घंटे लगते है। रेल शाम को डरबन पहुँची थी। चौबीस घंटे के सफ़र में इस पुस्तक ने मेरी आँखों को नींद उड़ा दी थी। पुस्तक के प्रेरणादायी आलेखों का अध्ययन कर मैंने अपने जीवन को तदनुसार बदलने का दृढ़-संकल्प किया था।”1

गाँधी जी ने इस किताब के सम्बन्ध में लिखा था, “ऑन टू दिस लास्ट’ पुस्तक ने मेरे भीतर एक स्वतःस्फूर्त एवं वास्तविक परिवर्तन ला दिया था। बाद में मैंने इस पुस्तक का गुजराती में अनुवाद किया था, जिसका नाम था ‘सर्वोदय’2 

गाँधी जी के चिंतन को गंभीरता से प्रभावित किया था रस्किन की इस किताब ने। इसी दौरान गाँधी जी को ग्रीक दार्शनिक सुकरात का दर्शन और चिंतन बहुत ज़्यादा प्रभावित करने लगा था। उनके शब्दों में रस्किन की ‘ऑन टू दिस लास्ट’ सुकरात के भावों का परिवर्धित संस्करण प्रतीत हो रहा था। 

दक्षिण अफ़्रीका पहुँचने के बाद मोहनदास करमचंद गाँधी के जीवन में जिस व्यापक परिवर्तन का सूत्रपात हुआ था, उसकी पृष्ठभूमि में तीन पुस्तकें थीं, जिनमें से पहली पुस्तक थी रस्किन की ‘ऑन टू दिस लास्ट’ और दूसरी, ग्रीक दार्शनिक प्लेटो की पुस्तक ‘एपोलॉजी', जो सुकरात के चिंतन से ओत-प्रोत थी है और तीसरी पुस्तक टॉल्स्टॉय की ‘द किंगडम ऑफ़ गॉड विदिन यू’ थी। इसके अलावा धार्मिक पुरुष रायचंद्र और ‘श्रीमद्भगवद् गीता’ ने भी गाँधी को विशेष रूप से प्रेरित किया।3

गाँधी के जीवन में कई अजीबोग़रीब हालात आए, मगर वे हर स्थिति में अडिग थे और उनके मन में अदम्य साहस के साथ सत्य और न्याय के लिए दृढ़ निष्ठा और इच्छाशक्ति विद्यमान थी। ‘गाँधी मनीष’ पुस्तक के लेखक शरत कुमार मोहंती ने गाँधी की इस असाधारण शक्ति के सम्बन्ध में लिखते हैं, “. . . शर्मीले युवा बैरिस्टर में इतना तेज और आत्मविश्वास कहाँ छिपा हुआ था? यह बाद में देखा गया है, जब कभी गाँधीजी किसी संकट में पड़ते थे; उनके भीतर यह शक्ति किसी गुप्त स्रोत से पैदा होने लगती थी। परिस्थितियों का सामना करने की ताक़त उस शक्ति से मिलती थी। जब-जब बापू ने आग में प्रवेश किया, वे शुद्ध सोने की तरह पहले से ज़्यादा चमकते हुए बाहर निकले हैं।”4

गाँधी के जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं में से एक उनकी रचनाधर्मिता है। गाँधी की भाषा परिमार्जित है; विवरण वर्णन तो बहुत ज़्यादा सरल। ‘रचनाकार गाँधी’ ने अपने लेखन के माध्यम से आम आदमी के मन की पीड़ा को मार्मिक तरीक़े से व्यक्त किया है। रचनाकार बनने के बाद गाँधी ने अपने जीवन के 70 वर्ष पत्रकार और संपादक के रूप में बिताए। दक्षिण अफ़्रीका में, गाँधी ने ‘इंडियन ओपिनियन’, ‘सत्याग्रह’, ‘यंग इंडिया’, ‘नवजीवन’, ‘हरिजन’ आदि का सशक्त संपादन कर अपनी रचनात्मक चेतना का परिप्रकाश किया था। सन्‌ 1907 में उन्होंने ‘इंडियन ओपिनियन’ पत्रिका शुरू की, जो दक्षिण अफ़्रीका में रहने वाले तत्कालीन भारतीयों की आशा का प्रतीक बन गई थी। 

गाँधी जी की आत्मकथा ‘माई एक्सपेरिमेंट विद ट्रुथ’ और एक अन्य पुस्तक ‘अनासक्ति योग’ उनके जीवन में प्रबल आध्यात्मिकता को दर्शाती है। ‘अनासक्ति योग’ में श्रीमद्भगवद गीता का मार्मिक भावानुवाद भारतीय साहित्य और दर्शन का एक अमूल्य ग्रंथ है। इस पुस्तक में मनुष्य जीवन को किस प्रकार संयमित और शुद्ध किया जा सकता है– का प्रेरक वर्णन है। फिर गाँधीजी ने अपने जीवन में नैतिकता के व्यावहारिक पहलू का एक मज़बूत प्रमाण दिखाया है, जिसे उनकी आत्मकथा ‘माई एक्सपेरिमेंट विद ट्रुथ’ में आसानी से देखा जा सकता है। 

यदि हम गाँधी की रचना-संसार पर विचार करें, तो हम सत्य, अहिंसा और अन्य मानवीय मूल्यों की व्यापकता देख सकते हैं, जो चिर प्रासंगिक हैं। दक्षिण अफ़्रीका में अपने प्रवास के दौरान समय-समय पर इन मूल्यों का गाँधीजी की विचारधारा और चेतना पर गहरा प्रभाव पड़ा था। परवर्ती समय में दक्षिण अफ़्रीका से भारत वापसी और भारतीय सार्वजनिक जीवन में सक्रिय भागीदारी के कारण उनकी चेतना में परिवर्धन और गुणात्मक परिवर्तन आया। अपने लेखन में चेतना और विचारधारा में परिवर्तन के कारण कुछ विसंगतियों के बारे में गाँधीजी ने टिप्पणी की:
“मैं मेरे निष्ठावान पाठकों को बताना चाहूँगा कि वे मेरे विषय विसंगति के बारे में ध्यान नहीं दें। सत्य अन्वेषण प्रक्रिया में मैंने कुछ विचारों को त्यागा है और कई नए विचारों को अपनाया है। एक पल से दूसरे पल में मैं सत्य की अपील को स्वीकार करता हूँ और ईश्वर के निर्देशों का सादर पालन करता हूँ। और इसलिए श्रद्धावान पाठकों को कुछ विसंगति नज़र आ सकती है।”5 

गाँधीजी की रचनाएँ आध्यात्मिकता, राजनीति, अर्थशास्त्र और समृद्ध समाज के निर्माण पर व्यावहारिक विचारों का एक असाधारण-संग्रह हैं। 
[गाँधी विविधता (दूसरा खंड), ओड़िशा साहित्य अकादमी, भुवनेश्वर में प्रकाशित पटनायक अरविंद, दास बेनहुर, चंद्रशेखर होता (2020)] 

  1. गाँधी, मोहनदास करमचंद, (1927, 1940, 1995) ऐन ऑटोबायोग्राफी या द स्टोरी ऑफ़ माई एक्सपेरिमेंट विद ट्रुथ': नवजीवन पब्लिशिंग हाउस, अहमदाबाद

  2. गाँधी, मोहनदास करमचंद, (1927, 1940, 1995) ऐन ऑटोबायोग्राफी या द स्टोरी ऑफ़ माई एक्सपेरिमेंट विद ट्रुथ': नवजीवन पब्लिशिंग हाउस, अहमदाबाद 

  3. गाँधी मोहनदास करमचंद, (1956) ‘रस्किन ऑन दिस लास्ट, ए पैराफ्रेज़’ नवजीवन पब्लिशिंग हाउस, अहमदाबाद, पेज 8

  4. मोहंती, शरत कुमार, (2000) गाँधी मणिष, मीता बुक्स, कटक, पेज–71

  5. गाँधी, मोहनदास करमचंद, (29.4.1933) हरिजन, पृष्ठ-2

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