यदि, प्रेम था तुम्हें 

15-08-2025

यदि, प्रेम था तुम्हें 

नीरजा हेमेन्द्र (अंक: 282, अगस्त प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

यदि, प्रेम था तुम्हें 
समाजवाद से
तो तुम्हें कहाँ मिला था वह 
कहाँ पर तुमने मित्रता कर ली थी उससे . . . 
गलबाहियाँ डाल तुम कब चले थे
उसके साथ . . .
मैंने भी उसे ढूँढ़ने का 
किया था प्रयत्न
गन्दे नाले के 
गीली मिट्टी पर बसी झुग्गी में . . .
फ़ुटपाथ पर ठिठुरते
मज़दूरों के झुंड में . . . 
दो टूटे ईंट के बने चूल्हे पर
सुलगती गीली लकड़ी से 
काले पड़ चुके बटुले में . . . 
मुझे भी तो बताओ उसका पता
तुम कहो तो मैं उसे ढूँढ़ूँ
बहुमंज़िली इमारतों में, मॉल्स में
या कि राजपथ पर
वह इस देश नहीं था . . . नहीं है . . . 
कदाचित् नहीं रहेगा . . . 
आयातित मित्रों के मध्य रहता है वह
तुम्हारे द्वारा बनाई जातिवादी . . . भाषावादी . . . 
नस्लवादी . . . सीमाओं पर खड़ा वह
लगाता है अट्टहास
करता है परिहास
तुम्हारा समाजवाद
अपने मित्र फ़ासीवाद से . . .

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