जीवित रखना है सपनों को
नीरजा हेमेन्द्र
गाँव की माटी, जल, जंगल
उन्मुक्त दिशाओं, सौंधी हवाओं में
पला, पोषित और युवा हुआ वह
शहर की चकाचौंध से आकर्षित
रोटी और भूख के रिश्ते ने
विवश किया उसे
उसके क़दम बढ़ गये शहर की ओर
रिक्शा खींचते हुए
जीवन का आधा मार्ग तय कर चुका है
आज भी नाले के ऊपर
अपनी उसी झोंपड़ी में रहता है
जिसे शहर में आते ही उसने बनाई थी
गगनचुम्बी इमारतों में . . . चमचमाती गाड़ियों में
भीड़ भरे जगमगाते बाज़ारों में . . .
आज भी उसके सपने जीवित हैं
वह जानता है सपनों को मरने नहीं देना है
बचाकर रखना है जीवित आँखों में
वह रिक्शा खींच रहा है . . .
जीवन खींच रहा है . . .।