उसे बढ़ते जाना है
नीरजा हेमेन्द्रभीड़ भरी सड़क पर, अनेक चेहरों में
एक चेहरे उसका भी है
सदियों से संघर्ष करती वह
आज खड़ी हो गयी है सुदृढ़ क़दमों से
तलाश ली है उसने अपने
पैरो के नीचे ज़मीन
उसे अब नहीं कहना है . . .
दया करो मुझ पर
वह भी हाड़-मांस से बनी है
संवेदनाओं से पूर्ण स्त्री है वह
वह भी है अपने परिवार की पालिता
बैट्रीचालित रिक्शा चलाते हुए
भीड़ भरी सड़कों पर
तीव्र गति से आगे बढ़ रही है
अन्ततः बना ही लिया है
उसने अपने लिए
सीधा व अबाध आत्मनिर्भरता का मार्ग
जिस पर उसे बढ़ते जाना है
चलते जाना है।
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