नदी की कराह
नीरजा हेमेन्द्र
ज़िन्दगी रोज़ यूँ ही
वक़्त की नदी में
घुलती रहेगी रेत होकर
मैं प्रतीक्षा कर रही हूँ
उस दिन का जब
नदी में उठेगा एक तूफ़ान
नदी का पानी उफन कर
दूर-दूर तक फैल जाएगा
किनारों को जोड़ता हुआ
बह जाएगी ढेर सारी रेत
एक ही दिन में।
उसके बाद तुम्हें
स्वच्छ शान्ति दिखाई देगी
नदी में, किनारों में
सर्वत्र
तुम नहीं सुनते
प्रतिक्षण, धीरे . . . धीरे . . .
रेत को बहाती हुई
नदी की दुख भरी कराह।
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