भीग रही है धरती
नीरजा हेमेन्द्र
अभी-अभी हुई है तेज़ बारिश
धरती हो गयी है तरबतर
हरे खेत, नर्म दूब से ढकीं पगडंडियाँ
असंख्य लताएँ
बंजर ज़मीन लहलहा उठी है
उस आरामदायक, वतानुकूलित कक्ष की
खिड़की से
सब कुछ कितना मनोरम लग रहा है
आह्लादित बादलों ने
बरसा दिया है पूरी सृष्टि पर
हरे, सुखद सपनों का संजाल
आज इस भीगे बारिश में
सोनवा गाँव की रामपति
कैसे बचाएगी
उन सूखी लकड़ियों को भीगने से
जिन पर बनानी हैं उसे अभी कुछ रोटियाँ
कैसे बचाएगी भीगन से
उस एक मात्र वस्त्र को
जो उसने पहन रखा है
झोंपड़ी की छत व आसमान
आज क्यों एक जैसे हो रहे हैं . . .?
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