विस्थापन
नीरजा हेमेन्द्र
धीरे . . . धीरे . . . धीरे . . .
वृक्षों कर जड़ें
गहरी हो जाती हैं
वे मिट्टी में जा कर
ढूँढ़ ही लेती हैं
स्वयं के लिए जीवन तत्त्व
वृक्ष स्थापित कर लेते हैं
एक सम्बन्ध मिट्टी से
आत्मा का . . . जन्म का . . . मृत्यु का
मेरे गाँव की परिवर्तित ऋतुओं ने
हवाओं में भर दी है
एक अनजानी-सी गन्ध
पत्तों की सरसराहट में संगीत नहीं
कुछ कोलाहल, कुछ भय-सा व्याप्त होता जा रहा है
ज़मीनें जड़ों का करने लगी हैं उत्सर्जन
वृक्ष अपनी जड़ें
विस्तृत करने लगे हैं
खोखली सतहों पर
आधारहीन जड़ें
विस्थापित हो सकती हैं कहीं भी . . .
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