सभी पुरुष ऐसे ही होते हैं क्या?

15-09-2025

सभी पुरुष ऐसे ही होते हैं क्या?

नीरजा हेमेन्द्र (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

एक था मेरा पिता 
उच्च पद पर कार्यरत अधिकारी 
अपने पद के दम पर दूसरी औरतों से 
शारीरिक सम्बन्ध बनाना उसका खेल था 
गाँव में पली मेरी सीधी-सादी माँ
इस बात का पता लगने पर टूट जाती
प्रश्न उठाने पर मेरा पिता उन्हें
पशुओं की भाँति तरह मारता था
 
मेरे साथ पढ़ने वाली चाँदनी
बहुत दिनों बाद मुझे मिली
ढलती उम्र मेरी थी तो ढलती उम्र
चाँदनी की भी हो गयी थी
चाँदनी मुझे कॉलेज के दिनों वाली ही लग रही थी
चंचल, सपनीली आँखों वाली चहकती लड़की
मेरा हाल पूछते-पूछते चाँदनी
मुझसे लिपट कर रोने लगी
मैं भी तो चाँदनी के गले लग कर रोई
मेरी और चाँदनी की भावनाएँ 
बिना कुछ कहे एकाकार हो रही थीं
ढलती उम्र में एक कापुरुष . . .
एक धोखेबाज़ पुरुष दोनों के जीवन में था।  

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
कहानी
कविता-माहिया
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में

कहानी