पुरवाई

नीरजा हेमेन्द्र (अंक: 282, अगस्त प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

ग्रीष्म की अलसाई दोपहर
शनैः शनैः शनैः उतरता है सन्नाटा
भूरे खेतों में, 
गेहूँ की सुनहरी बालियों से भरे खलिहानों में
रक्ताभ पुष्पों से भरे सेंमल के वृक्षों पर
अपने पदचाप नहीं छुपा पाता वह 
पदचाप की ध्वनियाँ विह्वल करती हैं
आम्रकुंज में बैठे नीलकंठ के जोडे़ को
उड़ कर वे जा बैठते हैं
कदम्ब के वृक्ष पर
गाते हैं प्रणय गीत
सुन कर उनके गीत 
चल पड़ती है पुरवाई/मिलने 
नव वसंत में पल्लवित धानी पत्तों से . . . 

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