कोयल तब करती है कूक
नीरजा हेमेन्द्र
गयी शीत ऋतु, खिल गयी धूप
मोहक हुआ प्रकृति का रूप
खिल गयी पीली सरसों।
नयी कोंपलें, नये हैं पत्ते
बौर आ गए शाखों पर
चहक उठे हैं पक्षी सारे
जो थे अब तक गुपचुप
खिल गयी पीली सरसों।
हुई गुलाबी धूप सुबह की
ओस बन गए मोती
मन्द पवन जब चले भोर में
कोयल तब करती है कूक
खिल गयी पीली सरसों।
पुष्पित-पल्लवित हुई प्रकृति
सृष्टि सजी है दुल्हन-सी
देख प्रकृति का सृजन मनभावन
हृदय में उठती है हूक
खिल गयी पीली सरसों।
उत्साहित हैं सब नर-नारी
कर्म कर रहे कृषक,
छाई मादकता चहुँ ओर
देख वसंत का सुन्दर रूप
खिल गयी पीली सरसों।