कोयल तब करती है कूक
नीरजा हेमेन्द्र
गयी शीत ऋतु, खिल गयी धूप
मोहक हुआ प्रकृति का रूप
खिल गयी पीली सरसों।
नयी कोंपलें, नये हैं पत्ते
बौर आ गए शाखों पर
चहक उठे हैं पक्षी सारे
जो थे अब तक गुपचुप
खिल गयी पीली सरसों।
हुई गुलाबी धूप सुबह की
ओस बन गए मोती
मन्द पवन जब चले भोर में
कोयल तब करती है कूक
खिल गयी पीली सरसों।
पुष्पित-पल्लवित हुई प्रकृति
सृष्टि सजी है दुल्हन-सी
देख प्रकृति का सृजन मनभावन
हृदय में उठती है हूक
खिल गयी पीली सरसों।
उत्साहित हैं सब नर-नारी
कर्म कर रहे कृषक,
छाई मादकता चहुँ ओर
देख वसंत का सुन्दर रूप
खिल गयी पीली सरसों।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- आग
- कोयल के गीत
- कोयल तब करती है कूक
- गायेगी कोयल
- जब भी ऋतुओं ने ली हैं करवटें
- जीवित रखना है सपनों को
- दस्तक
- धूप और स्त्री
- नदी की कराह
- नीला सूट
- परिवर्तन
- पुरवाई
- प्रेम की ऋतुएँ
- फागुन और कोयल
- भीग रही है धरती
- मौसम के रंग
- यदि, प्रेम था तुम्हें
- रंग समपर्ण का
- लड़कियाँ
- वासंती हवाएँ
- विस्थापन
- शब्द भी साथ छोड़ देते हैं
- संघर्ष एक तारे का
- कहानी
- कविता-माहिया
- विडियो
-
- ऑडियो
-