फागुन और कोयल
नीरजा हेमेन्द्र
मेरे घर से निकलने वाली
सड़क अब
आम और महुए की गंध से
सराबोर होने लगी है
कोयल की कूक का अर्थ
अब ऋतुएँ समझने लगी हैं
नदी की लहरों में
श्वेत बगुले
अपनी परछाइयों को देखे हुए
उड़ जाते हैं
फागुन की हवाओं में
रंगों के साथ तुम्हारी
स्मृतियाँ भी घुलने लगी हैं।
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