चादरों पर बिछे गये सपने

15-09-2025

चादरों पर बिछे गये सपने

नीरजा हेमेन्द्र (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)


वो बच्ची 
माता-पिता के प्यार-दुलार में पली बढ़ी
गाँव क़स्बे में बड़ी हुई
पेड़-पौधों, बादलों, हवाओं से बातें करती
बसंत में अमलतास व मोगरे के पुष्प
बालों में सजाती
समय आगे बढ़ा, वो भी बड़ी हुई
शरीर बढ़ा तो बचपन हृदय में कहीं छुप गया
वे बच्ची इतनी बड़ी नहीं हुई थी कि
उस बड़े शहर के छल से सतर्क रह सके 
जहाँ वह व्याह दी गयी थी 
बड़े शहर ने उसे छला
मोंगरे के पुष्प बालों में नहीं
उसे कई चादरों पर कुचला, 
मोगरे के फूल धूल में पैरों से रौंदे गये। 

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