जब भी ऋतुओं ने ली हैं करवटें
नीरजा हेमेन्द्र
जब भी ऋतुओें ने ली हैं करवटें
बदल लिए हैं हवाओं ने भी अपने मार्ग
ज़मीन पर उगने वाली फ़सलों ने भी
कदाचित् तय कर लिया है फ़ैसला
बदलाव का
फ़सलें व्यापारियों के गोदाम में पहुँच
समायोजित करने लगी हैं स्वयं को
कृषकों की सूखी हथेलियाँ
ढूँढ़ने लगी हैं बंजर मिट्टी में
बीज के दाने
बुक शेल्फ़ में रखीं
महान विचारकों की पुस्तकों ने
बिखेर दिये हैं शब्दों को दिशाओं में
चहुँ ओर
पुस्तकें कभी ख़ाली नहीं होती
असंख्य बार पढ़ लेने के पश्चात् भी
मिट्टी में दबे बीजों को . . . विचारों को
स्पन्दित करते शब्दों ने
खुली हवाओं में देखना बन्द नहीं किया है
अब भी . . .
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