कोयल के गीत
नीरजा हेमेन्द्र
चैत की सूनी दोपहर में
गीत गाने नहीं आती अब कोई कोयल
आँगन में खड़ा नीम का वृक्ष
गा रहा है उदासी के गीत
धूप भरी दोपहरी में
नीम के झरते पत्ते
कोई अनसुना गीत गाना चाहते हैं
झरते पीले पत्तों में न जाने कहाँ
बिखर गयी हैं उनकी स्वरलहरियाँ
कोई कोयल नहीं आती अब
बिखरी हुई स्वरलहरियों को चुनने
कोई सुरीला गीत गढ़ने
धूप भरे इस मौसम में
उदासी और गहारती जा रही है
इस भयाक्रान्त दोपहरी में
कहीं से फूटेगा कोई नवपल्लव
कोयल गुनगुनाएगी नवगीत
टूटेगा आँगन में पसरा सन्नाटा।