उद्विग्न आकाश 

01-05-2023

उद्विग्न आकाश 

डॉ. विनीत मोहन औदिच्य (अंक: 228, मई प्रथम, 2023 में प्रकाशित)


(सॉनेट) 
 
निरंतर गोलियों की बौछार, वीभत्स ढंग से मारे जाते लोग
रक्त रंजित पड़े असंख्य शव, कहीं कराहते मनुज पीड़ा भोग
बर्बरता की सीमाओं को लाँघकर, आतंकी ठहाके लगाते
कहीं भूखे प्यासे गिद्ध चीलों के समूह आकाश में मँडराते। 
 
कारखानों का धुआँ, जलती पराली, वाहनों का निरंतर शोर
गंदगी के ढेर से उठती दुर्गंध, शीत के कुहासे से भरी भोर
दम घोंट देता है अनवरत वातावरण में बढ़ता हुआ प्रदूषण
वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से खोता धरा का हरित आभूषण। 
 
स्वार्थ के वशीभूत लालच की चौखट पर दम तोड़ते सम्बन्ध
सहनशीलता के अभाव में विफल होते प्रीति के अनुबंध
अर्थ और स्वातंत्र्य की प्रधानता में समाज का बिखराव
भौतिक विलासिता की चाह का समन्वय से होता टकराव। 
 
वेदना की चादर ओढ़े मानव, स्वयं के एकाकीपन से जूझता
मानसिक यंत्रणा से त्रस्त, उद्विग्न आकाश अश्रुओं में भीगता॥

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