प्रश्न
डॉ. विनीत मोहन औदिच्य
(सॉनेट)
मत पूछो कौन हूँ मैं? अनुत्तरित रहा है यह शाश्वत प्रश्न
पूछता रहा हूँ स्वयं से, कौन हूँ मैं? कहाँ है मेरा ऐतिह्य चिह्न
मिथ्या गर्वोक्त, प्रतिज्ञाबद्ध भीष्म? सुविधा भोगी द्रोण या कृपाचार्य?
असहाय, भ्रमित शल्य? कामुक, अनाचारी जयद्रथ? नहीं हूँ मैं आर्य!
महत्वाकांक्षी मोह ग्रस्त अंध धृतराष्ट्र?
अति मदान्ध, हठी दुर्योधन?
तिरस्कृत-उपकृत, अज्ञात राधेय?
निर्लज्ज, क्रूर दुशासन?
द्यूत निपुण, कुटिल-शिरोमणि शकुनि? अथवा शिशुपाल-आतुर?
विधर्मियों की राजसभा में दाँतों के मध्य जिह्वा सा विवश विदुर?
व्रण पीड़ा भोगने भटकता हुआ मणि कांति विहीन अश्वत्थामा?
इन सभी का हूँ मैं समुच्चय यही है मेरा यथार्थ, नहीं है क्षमा
मैं हूँ मात्र भक्तिहीन, निर्गुण, स्वयं की कामनाओं के वशीभूत,
एक अभिशप्त यायावर! युगों की भित्ति भूमि पर एक अधिभूत।
इन प्रश्नों सहित प्रत्येक युग में प्रत्येक देह में लेता रहूँगा मैं जन्म
कभी नहीं होगा प्राप्त मुझे उत्तर, न कभी होगा समाधान सूक्ष्म?
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