नीलांबरी

15-05-2024

नीलांबरी

डॉ. विनीत मोहन औदिच्य (अंक: 253, मई द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 
(सॉनेट) 
 
तन सुकोमल कुमुदिनी सा रूप राशि का लिए सघन जाल
चंद्रमा झुककर आसमां से चूम लेता है तेरे गोरे लाल गाल
सलिल भी पाकर तेरा प्रतिबिंब प्रेमी अति निहाल है होता
यौवन करता अठखेली जैसे बहता कल कल जल का सोता। 
 
चपला सा परिहास उज्ज्वल केश राशि भी नभ घटा सी
ठहर जाता काल भी लख अप्रतिम सौंदर्य की छटा सी
देहयष्टि सुपुष्ट सी है अधर रक्तिम नयन जैसे पंछी खंजन
स्वयं पुष्प थाल सजा कर मनसिज करता दुखों का भंजन। 
 
वन, पवन, उपवन मुदित मन, झूमते है मानो सभी संग में
और प्रकृति भी आ गई, सजीले भव्य रूप के रुपहले रंग में
श्रद्धा के प्रसून अंजुरी में भर भरकर करें प्रेमी सब अर्पित
पर मैंने ये मेरा जीवन किया है ए प्रिया तुझको ही समर्पित। 
 
सौंदर्य से परिपूर्ण हो तुम जैसे बाण भट्ट नायिका कादंबरी
झील से नीलवर्ण नयनों से झाँकती है दैवीय सी नीलांबरी॥

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