भावना 

डॉ. विनीत मोहन औदिच्य (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

(सॉनेट) 
 
नहीं होगा वंचित यह दुःख अबसे 
समग्रता से ले जाऊँगा मैं एकांत 
तुम देखना, जल की छाया तबसे 
होगा सबकुछ यहाँ कितना अशांत
 
मन को आकाश से कर तुलना सदा 
भर लेता हूँ सारे अभेद्य रहास्यों को 
मोह नहीं जैसे सूखे पत्ते से पेड़ों का 
देखा है पहाड़ों में लीन होती बूँदों को 
 
अनेक भावनाएँ दौड़ती हैं हो उन्मत्त 
सुनता हूँ शोर जब होते असहाय सब 
मूर्तियों में कर प्राण संचार अनवरत 
रश्मियाँ होतीं अंतर्धान रोती हुई तब। 
 
है जीवन कितना सुंदर सफल सपना 
नाटक की पात्र है मानव की भावना। 

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