पन्द्रह अगस्त
डॉ. विनीत मोहन औदिच्य
(सॉनेट)
पन्द्रह अगस्त पन्द्रह अगस्त आ गया पुनः पन्द्रह अगस्त
ध्वज स्वतंत्रता का फहराने निकला सूरज कर तिमिर पस्त
इस दिन के लिए ही वीरों ने कर ख़ून स्वयं कामनाओं का
अपना सर्वस्व न्योछावर कर इतिहास लिखा बलिदानों का।
गाँधी, सुभाष, आज़ाद, तिलक, सरदार, भगत सिंह, मौलाना
गोखले, जवाहर, मालवीय, सबने पहना था एक बाना
सन् सैंतालिस पीछे छूटा पर जंग अभी तक जारी है
इस देश से ज़्यादा, अब अपनी आज़ादी सबको प्यारी है।
जनसंख्या बढ़ती दिन प्रति दिन है रोज़गार आसान नहीं
विकराल समस्याओं से घिर, खोयी मानव पहचान कहीं
अनुभूति है यद्यपि कड़वी ये क्यों मिली देश को आज़ादी
जिनको सँवारना था भविष्य वो ही कर बैठे बरबादी।
परमार्थ स्वार्थ से गौण हुआ हक़ कर्त्तव्यों पर भारी है
है भ्रष्ट व्यवस्था अधिकारी जनता बेहद दुखियारी है॥