हर शब ख़याले-यार के इज़हार में रहा
डॉ. विनीत मोहन औदिच्य
हर शब ख़याले-यार के इज़हार में रहा
जो कह न सका उससे वो अश्आर में रहा
उसको ख़बर हुई न सही मेरे हाल की
चर्चा मगर मरीज़ का अख़बार में रहा
वो अपनी उलझनों में ही खोया रहा मगर
मैं हुस्न के क़रीब से दीदार में रहा
आया नज़र जो चाँद तो दिल ने यही कहा
तू किसलिए शरीफ़ के किरदार में रहा
उसको मिली जहाँ की यहाँ हर ख़ुशी मगर
मैं बारहा ही अश्क की बौछार में रहा
करता रहा मैं प्यार उसे उम्र-भर तो क्या
शीरी ज़ुबान मुझसे ही तकरार में रहा
अब मौत की तलाश में रहता है ‘फ़िक्र’ भी
क्यों ज़िन्दगी की आस में बेकार में रहा