वीर गति
डॉ. विनीत मोहन औदिच्य
(सॉनेट)
यह जीवन तुम ले लो . . दे दो मुझे आत्म-स्वाभिमान
यह हृदय पीड़ा में रहा वर्षों से कर दो इसका अवसान।
मैं कहता रहा . . मुझे स्वतंत्र कर दो . . तुमने नहीं सुना
शीतल समीरण नहीं तुमने सदा घोर झंझानिल ही चुना॥
सीमा मेरी मैं जानता हूँ . . शेष रुधिर कण का करूँ त्याग
त्याग सारे सम्बन्ध . . मैं चला जाऊँगा जब भोर जाएगी जाग।
मिट्टी की सुगंध से जब मैं महकता रहूँगा बरसेगा सावन
होगा मुखर . . नगर गाँव किन्तु सूना रहेगा मेरा घर-आँगन॥
कहानी मेरे शौर्य की यह संसार एक दिन भूलता जाएगा
किन्तु शून्य आँचल मुझे . . याद कर नितदिन रोएगा।
गर्व से कहेगा शून्य सीमांत, देखो वीरपथ हुआ है उन्मुक्त
एक योद्धा ने देश को किया सदा के लिए शत्रुओं से मुक्त॥
यह प्रेम का ज्वार मेरे मन में जब रह रह कर हो रहा प्रबल।
क्या कहूँ . . देश की मिट्टी से आत्मा घुल रही देह रही जल॥
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