तुम जो हो ऐसी . . . 

01-10-2023

तुम जो हो ऐसी . . . 

डॉ. विनीत मोहन औदिच्य (अंक: 238, अक्टूबर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

(सॉनेट) 
 
ख़ुशियाँ पायीं जग में अनंत
जीवन में जब आया बसंत
अति रंग बिरंगे फूल खिले
दो दीवानों से हृदय मिले। 
 
पीछा करती जब परछाईं
अधरों पर स्मित सी लाई
शायद पीछे प्रियतम होगा
जिसके संग मधुरिम रस भोगा। 
 
लाया मधुमास प्रणय बेला
तो यौवन का छाया मेला
फिर साँसों के तूफ़ान उठे 
तम बिखरा बेबस दीप बुझे। 
 
सुंदर मुखड़ा, बिखरे कुंतल
सीने से ढलक गया आँचल॥

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