सिक्त स्वरों के सॉनेट
डॉ. विनीत मोहन औदिच्य
(सॉनेट)
उठा नभ में चाँद मंद मंद . . . गायें तारिकाएँ संगीत मंजुल
शीतल हिम-बूँद से हुईं सिक्त . . . कलिकाएँ मोगरे की
सौम्य हृदय की सुरभि आयी लेकर प्रीति संदेश मृदुल
खुल जाए मन की गाँठें, मिट जाए परतें कोहरे की।
अतीत की कथा . . . अनछुई व्यथा . . . उसने लिखी कहानी
अधरों से लगाये सिसकियाँ पर तन से रहती वह मौन
मेरी भी कविता . . . शब्दों की गाथा . . . रची स्मृति पुरानी
चंचल वर्षा . . . उनींदी आँखों से पूछे . . . स्वप्न चुराये कौन?
इन मेघों को पिघलने दो . . . सुनो! इन पंखुरियों के गीत
सौंधी सुगंध मिट्टी की . . . लिपट जाती है देह से दहन तक
उन्माद की सेज पर तड़पती . . . विस्मृत कर सारी रीत
छूने दो अनंत वाहित प्राण स्रोत को जन्म से जीवन तक।
सिक्त स्वरों के सॉनेट से मिटती है हृदय की अंतिम तृष्णा
मानो होते बृज कुंज प्रफुल्लित जब बजाता बाँसुरी कृष्णा॥
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