सुरसरि
डॉ. विनीत मोहन औदिच्य
(सॉनेट)
शिव शंकर की जटा से प्रगटी, देव मनुष्य सभी हरषाये
पितरों को तारने हेतु भगीरथ, गंगा को वसुधा पर लाये
सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग, हर युग में गुणगान हुआ
पाप मुक्त करने वाली माँ का हर हिन्दू घर सम्मान हुआ।
विविध भाँति की पूजा-अर्चन में प्रयोग में लाया जाता
तुलसी साथ डालते मुख में, मानव मृत्यु निकट जब आता
मोक्ष हेतु इस पुण्य सलिल का पान सभी हर्षित हो करते
लगा के डुबकी हर हर गंगे, मानव मन श्रृद्धा से भरते।
है बिडम्बना कैसी देखो, बनी जाह्नवी, पंडों का गोरख धन्धा
पुष्प-दीप, और भस्म बहा कर, किया जा रहा इसको गंदा
मृतक शवों और मल मूत्र से, दूषित करते रहते लोग निरंतर
मूक विवश, अश्रु बहाती गंगा की व्यथा देखकर जलता अंतर।
युगों युगों से पूजित सुरसरि, मानें जन-जन इसे महा पवित्र
पर कलिकाल में आज हमीं ने, कर डाला इसको अपवित्र॥
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