इस ज़माने में भला कौन बुरा है मुझसे
डॉ. विनीत मोहन औदिच्य
इस ज़माने में भला कौन बुरा है मुझसे
जिसको देखो वो यहाँ रूठ गया है मुझसे
सीख अपनों से मिली सच पे अमल करने की
झूठ के पाँव नहीं होते कहा है मुझसे
इश्क़ की राह पे चलने का मज़ा है तब ही
जब कभी हुस्न कहे इश्क़ हुआ है मुझसे
वक़्त के साथ चलो इसमें समझदारी है
उसकी फ़ितरत भी ज़रा आज जुदा है मुझसे
'फ़िक्र’ मत अश्क बहाओ कि किसे है परवा
इम्तिहां सख़्त ख़ुदा लेता रहा है मुझसे
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