विशेषांक: दलित साहित्य

11 Sep, 2020

शिखरों पर चढ़ने की लालसा 
पैर फिसलने से नीचे खिसक आती है 
अदम्य उत्साह 
बुलंद हौसला 
मैं सरपट दौड़ना चाहता हूँ 
पहाड़ की चोटियों पर 
दुख, पीड़ा, दर्द, यंत्रणा, यातना 
मेरे सहयोगी हैं 
सच कहता हूँ सहयोगी हैं 
आज इतनी दूरी पर हूँ 
तुम देख रहे हो 
यही सहयोगियों की कृपा से 
यातना की रपटीली आग 
मुझे धू धू जलाती रही है 
मैं रपटीली आग में भी 
ठंड महसूस करता हूँ 
आओ तुम भी साथ मेरे 
नहीं आओगे तो 
देखो उजली आग
अब मत सोओ 
खुल रहा राग।

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