विशेषांक: दलित साहित्य

19 Sep, 2020

नहीं चाहिए रामराज्य

कविता | सतीश खनगवाल

छीनना चाहते हो 
समस्त संसाधन
मान-सम्मान
और अधिकार
बनाना चाहते हो
एक बार फिर
अपने पैरों की जूती। 
 
डर है तुम्हें
फिर ना पैदा हो
चुनौती दे सकने वाला
कोई शंबूक
कोई एकलव्य
कबीर और रैदास
अम्बेडकर और बिरसा
डर लगता है तुम्हें
पेरियार और फूले से भी।
 
इसलिए लाना चाहते हो तुम
फिर एक बार 
रामराज्य
किंतु 
कैसे भूल गए तुम
हमारी संस्कृति के रक्षक
महाप्रतापी और बलशाली
महिषासुर और 
हिरण्याकश्यपु को
जिन्हें हर वर्ष मार कर भी
नहीं मार पाते तुम
अरे मूर्खो!
जिन्हें मार नहीं पाया
तुम्हारा भगवान भी
उन्हें तुम क्या मारोगे?
हम समझते हैं अब
तुम्हारे सब छल-कपट
नहीं चाहिए 
तुम्हारा रामराज्य
इसलिए सुझाव मानो
देश को संविधान से चलने दो
रामराज्य को 
रामायण में ही रहने दो।

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