दूसरे का घर बनाने में
अपना ही घर नेस्तनाबूत कर देना
कितना बेमानी है
सच को सच नहीं कह
झूठ को चूमना है कसैले फल जैसा
फल के कसैलेपन से
पिच सा थूक फेंकना
मगर फेंकते नहीं घोट लेते हैं
यही झूठ की मूठ से
पूरा घर मटमैला हुआ पड़ा है।
मैंने कई बार अपने अंतर्मन को
दबाकर
बिना दीवारों के घर को
घर बनाया है
सजाया है
लोगों को दिखाया है
अपना मन
मगर, विचित्र साथ है
अनमेल भाव का
बिना खेल का खेले ही हमसे
हमारे घर को
मिस1 देती भावना
भला इतिहास क्या माफ़ कर देगा
नहीं! नहीं!
मैं भीतर की घुटन को
लीलता हूँ
सूँघता हूँ अपने घर को
ताकि लोगों को लगे
मैंने घर की मटमैली दीवार को
ओढ़ लिया है
और ओढ़ता ही रहता हूँ हर क्षण
यद्यपि कई दाग़ हैं उनपर
बल्कि दाग़ ही दाग़ हैं
फिर भी अपना घर है
1.चुटकी से मसल देना