दुख और पीड़ा के अग्नि स्नान के बाद गीले अनुभवों की तौलिया लिए पोंछता हूँ मानस पटल कंकड़नुमा चुभन रेत भरे घाव टीसते हैं हाय! अपनी विवशता घिसती है कोई भी क्षण अंदर में आ कर फुंफकार दे कोई भी क्षण।