तुम मारी नहीं जा सकीं फूलन
हत्यारों की तमाम कोशिशों के बावजूद
चंबल के उबड़ खाबड़ पठारों से लेकर
कठुआ के हरे भरे पहाड़ों तक
मणिपुर के सघन गहन वनों से लेकर
मरूभूमि के तपते गाँव भटेरी तक
असमानता की उर्वर भूमि खैरलांजी से लेकर
धान के कटोरे छत्तीसगढ़ तक
तुम जीवित हो हर स्त्री के सम्मान में।
तुम्हारे मान-मर्दन की तमाम कोशिशों के बावजूद
वह अट्टहासी क्रूर हिंसा तुम्हें तोड़ नहीं पाई
तुम टूट भी नहीं सकती थीं फूलन
तुमने जान लिया था स्त्री जीवन के डर का सच
जान लिया था कि स्त्री का मान योनि में नहीं बसता
वह बसता है स्त्री के जीवित रहने की उत्कट इच्छा में
यह जान लेना ही तुम्हारा साहस था
जिसे तुमने नहीं छोड़ा जीवन की आख़िरी साँस तक।
तुम एक भभके की तरह उठीं
जंगलों की बीहड़ता को चीरती हुई
भुरभुरे ढूहों को गिराती हुई
तुम एक बवंडर की तरह गहराईं
उबड़ खाबड़ धरतियों को समतल करती
तुम ईख की कटीली पत्तियों की तरह लहलहाईं
तुम वादियों में रवाब की गूँज की तरह उठीं
सर्द ख़ामोशी को बर्फ़ की तरह पिघलाती हुई
तुम एक चमकते सितारे की तरह उठीं
और स्त्री के सम्मान के आसमान में जा लगीं
तुमने उलट दिए प्रतिमान संस्कृति के
आज तुम ख़ुद एक मूल्य हो
तुम मारी नहीं जा सकीं फूलन
तुम मारी नहीं जा सकती थीं
एक स्त्री को मारा जा सकता है
स्त्री सम्मान के प्रतीक को नहीं।