विशेषांक: दलित साहित्य

10 Sep, 2020

कर्तव्य भर नफ़रत

कविता | डॉ. मुसाफ़िर बैठा

बहुत चली मुहब्बत की बातें उनकी ओर से 
नफ़रतें उगाते रहे ज़मीं पर जबकि 
वे भीतर बाहर लगातार
 
नफ़रतें पालीं उन ने एकतरफ़ा
हमारी तो पहुँच ही नहीं रही उन तक
कि उनके प्रति हम नफ़रत रखें अथवा प्रेम
सब कुछ तय होता रहा उनकी तरफ़ से
हमारी ओर से कुछ भी नहीं तो! 
वे ही जज रहे हमारे मुजरिम भी जबकि वे ही

हममें नफ़रत करने का माद्दा कहाँ
हम तो बस, कर्तव्य भर 
उनकी नफ़रतों के जवाब पर होते हैं!

 

अंग्रेज़ी अनुवाद में 'कर्तव्य भर नफरत' :
Just a duty-bound Hatred

(Translated by Mridula Nath Chakraborty) 


Ran the gamut of love talk from their side
Even as they kept sowing hatred in the soil
Inside Outside Ceaseless
They nurtured hatreds one-sidedly
We could not reach them one bit
Whether we extend love towards them or hate?
It was all always already decided by them
Nothing from our end at all!
They were our judge all the while our transgressors too

 

Where lies our potential to hate?
We remain but just duty-bound
To respond on their hatreds.

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