विशेषांक: दलित साहित्य

10 Sep, 2020

प्रेम में घर से भागी लड़कियों की सहेली होना...

कविता | डॉ. टेकचंद

यूँ तो दोस्त सहेलियाँ
घर कुनबे गाँव के
सदा निशाने पर रहते आए हैं
बिगाड़ने वाले 
दिमाग़ ख़राब करने वाले
माने जाते रहे हैं
मगर प्रेम में घर से भागी
लड़की की सहेली होना
जैसे तलवार पर चलना
जैसे तीर की नोक
दिल के पार
गाँव भर की नज़रों में
जैसे तोप के मुँह पर
अड़ा होना
तमाम नैतिकताओं 
मर्यादाओं रिवाज़ों के लिये
ज़िम्मेदार होना
और खोजा जाना अंग अंग में
सुराग़ भेद राज़
मार मुलक के अते पते
दब जाना सवालों तोहमतों
हिदायतों के तले
सबसे मुश्किल काम है
प्रेम में घर से भागी लड़की की
सहेली या दोस्त होना

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